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Apr 30, 2013

नारी

निय अहार देखिय दिव गुण,लाज चतुरगुन जान

षतगुन तेहि व्यवसाय तिय,काम अष्टगुन मान------------

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भावार्थ-सत्रियो मे पुरुष की अपेक्षा दुना आहार चौगुनी लज्जा

छगुना साहस और अठ गुना काम का वेग होता है।


Apr 24, 2013

आयुर्वेदिक दोहे

 
 
आयुर्वेदिक दोहे

1.जहाँ कहीं भी आपको,काँटा कोइ लग जाय। दूधी पीस लगाइये, काँटा बाहर आय।।

2.मिश्री कत्था तनिक सा,चूसें मुँह में डाल। मुँह में छाले हों अगर,दूर होंय
... तत्काल।।

3.पौदीना औ इलायची, लीजै दो-दो ग्राम। खायें उसे उबाल कर, उल्टी से आराम।।

4.छिलका लेंय इलायची,दो या तीन गिराम। सिर दर्द मुँह सूजना, लगा होय आराम।।

5.अण्डी पत्ता वृंत पर, चुना तनिक मिलाय। बार-बार तिल पर घिसे,तिल बाहर आ जाय।।

6.गाजर का रस पीजिये, आवश्कतानुसार। सभी जगह उपलब्ध यह,दूर करे अतिसार।।

7.खट्टा दामिड़ रस, दही,गाजर शाक पकाय। दूर करेगा अर्श को,जो भी इसको खाय।।

8.रस अनार की कली का,नाकबूँद दो डाल। खून बहे जो नाक से, बंद होय तत्काल।।

9.भून मुनक्का शुद्ध घी,सैंधा नमक मिलाय। चक्कर आना बंद हों,जो भी इसको खाय।।

10.मूली की शाखों का रस,ले निकाल सौ ग्राम। तीन बार दिन में पियें,पथरी से
आराम।।

11.दो चम्मच रस प्याज की,मिश्री सँग पी जाय। पथरी केवल बीस दिन,में गल बाहर
जाय।।

12.आधा कप अंगूर रस, केसर जरा मिलाय। पथरी से आराम हो, रोगी प्रतिदिन खाय।।

13.सदा करेला रस पिये,सुबहा हो औ शाम। दो चम्मच की मात्रा, पथरी से आराम।।

14.एक डेढ़ अनुपात कप, पालक रस चौलाइ। चीनी सँग लें बीस दिन,पथरी दे न दिखाइ।।

15.खीरे का रस लीजिये,कुछ दिन तीस ग्राम। लगातार सेवन करें, पथरी से आराम।।

16.बैगन भुर्ता बीज बिन,पन्द्रह दिन गर खाय। गल-गल करके आपकी,पथरी बाहर आय।।

17.लेकर कुलथी दाल को,पतली मगर बनाय। इसको नियमित खाय तो,पथरी बाहर आय।।

18.दामिड़(अनार) छिलका सुखाकर,पीसे चूर बनाय। सुबह-शाम जल डालकम, पी मुँह बदबू
जाय।।

19. चूना घी और शहद को, ले सम भाग मिलाय। बिच्छू को विष दूर हो, इसको यदि
लगाय।।

20. गरम नीर को कीजिये, उसमें शहद मिलाय। तीन बार दिन लीजिये, तो जुकाम मिट
जाय।।

21. अदरक रस मधु(शहद) भाग सम, करें अगर उपयोग। दूर आपसे होयगा, कफ औ खाँसी
रोग।।

22. ताजे तुलसी-पत्र का, पीजे रस दस ग्राम। पेट दर्द से पायँगे, कुछ पल का
आराम।।

23.बहुत सहज उपचार है, यदि आग जल जाय। मींगी पीस कपास की, फौरन जले लगाय।।

24.रुई जलाकर भस्म कर, वहाँ करें भुरकाव। जल्दी ही आराम हो, होय जहाँ पर घाव।।

25.नीम-पत्र के चूर्ण मैं, अजवायन इक ग्राम। गुण संग पीजै पेट के, कीड़ों से
आराम।।

26.दो-दो चम्मच शहद औ, रस ले नीम का पात। रोग पीलिया दूर हो, उठे पिये जो
प्रात।।

27.मिश्री के संग पीजिये, रस ये पत्ते नीम। पेंचिश के ये रोग में, काम न कोई
हकीम।।

28.हरड बहेडा आँवला चौथी नीम गिलोय, पंचम जीरा डालकर सुमिरन काया होय॥

29.सावन में गुड खावै, सो मौहर बराबर पावै॥

हवन में घी की आहूति क्यों डाली जाती है?

 
हवन में घी की आहूति क्यों डाली जाती है?

हवन से मन को शांति मिलती है साथ ही चारों ओर का वातावण सकारात्मकता ऊर्जा व सुगंध से भर जाता है। हवन में अग्रि जलाकर उसमें घी की आहूति देने की परंपरा हमारे यहां वैदिक काल से ही चली आ रही है। कहते हैं अग्रि में डाला हुआ पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता है। उदाहरण के लिए स्थुल मिर्च को यदि हवन में आहूति के रूप में डालेंगे तो। दूर-दूर तक बैठे लोग इससे परेशान हो जाएंगे। मतलब अग्रि का काम स्थूल वस्तु को तोड़कर सूक्ष्म कर देना है।

यज्ञ करते समय अग्रि में घी डाला जाता है। माना जाता है कि वह घी कभी नष्ट नहीं होता है। स्थुल घी परमाणुओं में बदल जाता है। घी की आहूति देने से एक कटोरी घी परमाणुओं में बदलकर पूरे वातावरण में फैल जाता है।

मनु ने ठीक कहा है आग में डालने से हवि सुक्ष्म होकर सूर्य तक फैल जाती है। हवन में घी के साथ अनेक जड़ी-बूटियां भी डाली जाती है। वैज्ञानिक मान्यता है घी की जड़ी-बूटियों के साथ आहूति देने पर सुक्ष्म परमाणुओं में विभक्त होने पर इनका औषधीय गुण बढ़ जाता है। आयुर्वेद व होम्योपेथी में भी इस सिध्दांत को माना गया है। इसीलिए हवन में घी की आहूति दी जाती है।

चावल के लाभ

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चावल लोगों के मुख्य भोजन में शामिल होता है, लेकिन क्या आपको पता है चावल सेहत के लिहाज से भी उपयोगी माना जा सकता है। यह पचने में आसान होता है। चावल जितना पुराना हो उतना ही स्वादिष्ट और ओज से भरा होता है। चावल को सब्जी, मछली और मांस के साथ खाया जाता है। चावल में प्रोटीन, विटामिन और खनिज होते हैं। आइए हम आपको चावल के गुणों के बारे में बताते हैं।

चावल के लाभ –

चावल के मांड यानी पकाते वक्त बचा हुआ सफेद गाढा पानी बहुत काम का होता है। उसमें प्रोटीन, विटामिन्स व खनिज होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। इसलिए चावल को मांड सहित खाना चाहिए।
कमजोर पेट वालों के लिए चावल का मांड बहुत फायदेमंद है। चावल का मांड खाने से खाना पचाने में आसानी होती है। चावल में दूध मिलाकर 20 मिनट तक ढंककर रख दीजिए, फिर उसके खाइए ज्यादा फायदा होगा।
यदि डिनर में रोटी कम खाई जाए और चावल को प्रयेग ज्यादा किया जाए, तो यह हल्का भोजन आपके स्वास्‍थ्‍य के लिए फायदेमंद होगा।
तीन साल पुराना चावल काफी स्वादिष्ट व ओजवर्धक होता है। इसलिए पुराने चावल का ज्यादा प्रयोग करना चाहिए।
अगर पेट की समस्या हो तो चावल की खिचडी का सेवन करना चाहिए।


आतिसार और पेचिश पडने पर चावल खाना चाहिए। अतिसार में चावल को आंटे की लेई की तरह पकाकर उसमें गाय का दूध मिलाकर रोगी को सेवन कराएं, इससे अतिसार में फायदा होगा।
चावल और मूंग के दाल की खिचडी खाने से दिमागी विकास होता है और शरीर शक्तिशाली होता है।
दस्त होने पर चावल का प्रयोग करना चाहिए। चावल को दही के साथ खाने से दस्त में फायदा होता है।
यदि भांग का नशा ज्यादा हो गया हो तो चावल धोकर निकाले पानी में खाने का सोडा दो चुटकी व शक्कर मिलाकर पिलाने से नशा उतर जाता है।
अगर पेशाब में कोई समस्या हो तो चावल के धुले पानी में सोडा और शक्कर मिलाकर पीने से पेशाब की समस्या दूर हो जाती है। यही पेय मूत्र विकार में भी काम आता है।
माइग्रेन या आधासीसी की समस्या हो तो रात को सोने से पहले चावल को शहद के साथ मिलाकर खाने से लाभ होता है। एक सप्ता‍ह ऐसा करने से सरदर्द की समस्या समाप्त हो जाएगी।
यदि महिलाएं गर्भ निरोधक प्रयोग नहीं करना चाहती हैं तो चावल धुले पानी में चावल के पौधे की जड़ पीसकर छान लें। इसमें शहद मिलाकर पिएं। यह हानिरहित सुरक्षित गर्भनिरोधक उपाय है।


सावधानी – डायबिटीज होने पर चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

चावल खाने में भले ही स्वादिष्ट न हो लेकिन यह बहुत ही गुणकारी औषधि है। चावल के फायदे को आजमाते वक्त किसी कुशल वैद्य या चिकित्सक की सलाह अवश्य ले लीजिए।
 

माँ बनाती थी रोटी पहली गाय की आखरी कुत्ते की एक बामणी दादी की एक मेहतरानी बाई की

Co-Operation Vs Competition : राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

माँ बनाती थी रोटी
पहली गाय की
आखरी कुत्ते की
एक बामणी दादी की
एक मेहतरानी बाई की
...
हर सुबह नंदी आ जाता
दरवाज़े पर गुड की डली के लिए

कबूतर का चुग्गा
कीड़ीयों का आटा
ग्यारस,अमावस,पूनम का सीधा
डाकौत का तेल
काली कुतिया के ब्याने पर तेल गुड का हलवा
सब कुछ निकल आता था
उस घर से जहाँ विलासिता के नाम पर
एक रेडिओ और टेबल पंखा था

आज सामान से भरे घर से
कुछ भी नहीं निकलता
सिवाय कर्कश आवाजों के

जब भारत Co-operation से चलता था
तब ना ही कोई भूखा सोता था
ना कोई बच्चा कुपोषण से मरता था,
आज competition का ज़माना है
शहर भरे हैं बर्गर पिज्जे की अन्तराष्ट्रीय दुकानों से
कोई दो वक्त की रोटी के लिए लड़ता है बेईमानों से
कोई भूख से मर रहा है कोई मर रहा है ज्यादा खाने से.....

दोस्तो अमेरिका की बड़ी बड़ी कंपनिया जो दवाइया भारत मे बेच रही है ! वो अमेरिका मे 20 -20 साल से बंद है ! आपको जो अमेरिका की सबसे खतरनाक दवा दी जा रही है ! वो आज कल दिल के रोगी (heart patient) को सबसे दी जा रही है !! भगवान न करे कि आपको कभी जिंदगी मे heart attack आए !लेकिन अगर आ गया तो आप जाएँगे डाक्टर के पास !

और आपको मालूम ही है एक angioplasty आपरेशन आपका होता है ! angioplasty आपरेशन मे डाक्टर दिल की नली मे एक spring डालते हैं ! उसको stent कहते हैं ! और ये stent अमेरिका से आता है और इसका cost of production सिर्फ 3 डालर का है ! और यहाँ लाकर वो 3 से 5 लाख रुपए मे बेचते है और ऐसे लूटते हैं आपको !

और एक बार attack मे एक stent डालेंगे ! दूसरी बार दूसरा डालेंगे ! डाक्टर को commission है इसलिए वे बार बार कहता हैं angioplasty करवाओ angioplasty करवाओ !! इस लिए कभी मत करवाए !

तो फिर आप बोलेंगे हम क्या करे ????!

आप इसका आयुर्वेदिक इलाज करे बहुत बहुत ही सरल है ! पहले आप एक बात जान ली जिये ! angioplasty आपरेशन कभी किसी का सफल नहीं होता !! क्यूंकि डाक्टर जो spring दिल की नली मे डालता है !! वो spring बिलकुल pen के spring की तरह होता है ! और कुछ दिन बाद उस spring की दोनों side आगे और पीछे फिर blockage जमा होनी शुरू हो जाएगी ! और फिर दूसरा attack आता है ! और डाक्टर आपको फिर कहता है ! angioplasty आपरेशन करवाओ ! और इस तरह आपके लाखो रूपये लूटता है और आपकी ज़िंदगी इसी मे निकाल जाती है ! ! !

अब पढ़िये इसका आयुर्वेदिक इलाज !!
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हमारे देश भारत मे 3000 साल एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे उनका नाम था महाऋषि वागवट जी !!
उन्होने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है अष्टांग हृदयम!! और इस पुस्तक मे उन्होने ने बीमारियो को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखे थे ! ये उनमे से ही एक सूत्र है !!

वागवट जी लिखते है कि कभी भी हरद्य को घात हो रहा है ! मतलब दिल की नलियो मे blockage होना शुरू हो रहा है ! तो इसका मतलब है कि रकत (blood) मे acidity(अमलता ) बढ़ी हुई है !

अमलता आप समझते है ! जिसको अँग्रेजी मे कहते है acidity !!

अमलता दो तरह की होती है !
एक होती है पेट कि अमलता ! और एक होती है रक्त (blood) की अमलता !!
आपके पेट मे अमलता जब बढ़ती है ! तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है !! खट्टी खट्टी डकार आ रही है ! मुंह से पानी निकाल रहा है ! और अगर ये अमलता (acidity)और बढ़ जाये ! तो hyperacidity होगी ! और यही पेट की अमलता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अमलता(blood acidity) होती !!

और जब blood मे acidity बढ़ती है तो ये अमलीय रकत (blood) दिल की नलियो मे से निकल नहीं पाता ! और नलिया मे blockage कर देता है ! तभी heart attack होता है !! इसके बिना heart attack नहीं होता !! और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं ! क्यूंकि इसका इलाज सबसे सरल है !!

इलाज क्या है ??
वागबट जी लिखते है कि जब रकत (blood) मे अमलता (acidty) बढ़ गई है ! तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करो जो छारीय है !

आप जानते है दो तरह की चीजे होती है !

अमलीय और छारीय !!
(acid and alkaline )

अब अमल और छार को मिला दो तो क्या होता है ! ?????
((acid and alkaline को मिला दो तो क्या होता है )?????

neutral होता है सब जानते है !!
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तो वागबट जी लिखते है ! कि रक्त कि अमलता बढ़ी हुई है तो छारीय(alkaline) चीजे खाओ ! तो रकत की अमलता (acidity) neutral हो जाएगी !!! और रक्त मे अमलता neutral हो गई ! तो heart attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं !! ये है सारी कहानी !!

अब आप पूछोगे जी ऐसे कौन सी चीजे है जो छारीय है और हम खाये ?????

आपके रसोई घर मे सुबह से शाम तक ऐसी बहुत सी चीजे है जो छारीय है ! जिनहे आप खाये तो कभी heart attack न आए ! और अगर आ गया है ! तो दुबारा न आए !!
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सबसे ज्यादा आपके घर मे छारीय चीज है वह है लोकी !! जिसे दुदी भी कहते है !! english मे इसे कहते है bottle gourd !!! जिसे आप सब्जी के रूप मे खाते है ! इससे ज्यादा कोई छारीय चीज ही नहीं है ! तो आप रोज लोकी का रस निकाल-निकाल कर पियो !! या कच्ची लोकी खायो !!

स्वामी रामदेव जी को आपने कई बार कहते सुना होगा लोकी का जूस पीयों- लोकी का जूस पीयों !
3 लाख से ज्यादा लोगो को उन्होने ठीक कर दिया लोकी का जूस पिला पिला कर !! और उसमे हजारो डाक्टर है ! जिनको खुद heart attack होने वाला था !! वो वहाँ जाते है लोकी का रस पी पी कर आते है !! 3 महीने 4 महीने लोकी का रस पीकर वापिस आते है आकर फिर clinic पर बैठ जाते है !

वो बताते नहीं हम कहाँ गए थे ! वो कहते है हम न्योर्क गए थे हम जर्मनी गए थे आपरेशन करवाने ! वो राम देव जी के यहाँ गए थे ! और 3 महीने लोकी का रस पीकर आए है ! आकर फिर clinic मे आपरेशन करने लग गए है ! और वो इतने हरामखोर है आपको नहीं बताते कि आप भी लोकी का रस पियो !!

तो मित्रो जो ये रामदेव जी बताते है वे भी वागवट जी के आधार पर ही बताते है !! वागवतट जी कहते है रकत की अमलता कम करने की सबे ज्यादा ताकत लोकी मे ही है ! तो आप लोकी के रस का सेवन करे !!

कितना करे ?????????
रोज 200 से 300 मिलीग्राम पियो !!

कब पिये ??

सुबह खाली पेट (toilet जाने के बाद ) पी सकते है !!
या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते है !!
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इस लोकी के रस को आप और ज्यादा छारीय बना सकते है ! इसमे 7 से 10 पत्ते के तुलसी के डाल लो
तुलसी बहुत छारीय है !! इसके साथ आप पुदीने से 7 से 10 पत्ते मिला सकते है ! पुदीना बहुत छारीय है ! इसके साथ आप काला नमक या सेंधा नमक जरूर डाले ! ये भी बहुत छारीय है !!
लेकिन याद रखे नमक काला या सेंधा ही डाले ! वो दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डाले !! ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है !!!!

तो मित्रो आप इस लोकी के जूस का सेवन जरूर करे !! 2 से 3 महीने आपकी सारी heart की blockage ठीक कर देगा !! 21 वे दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा !!!
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कोई आपरेशन की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी !! घर मे ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा !! और आपका अनमोल शरीर और लाखो रुपए आपरेशन के बच जाएँगे !!

और पैसे बच जाये ! तो किसी गौशाला मे दान कर दे ! डाक्टर को देने से अच्छा है !किसी गौशाला दान दे !! हमारी गौ माता बचेगी तो भारत बचेगा !!
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आपने पूरी post पढ़ी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!

इन बीमारियो के इलाज के लिए और अच्छी तरह समझने के लिए यहाँ
जरूर जरूर click करे !!

http://www.youtube.com/watch?v=C8NbDw4QGVM&feature=plcp
वन्देमातरम !!
अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की जय !


माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं, जानिए दुर्लभ रहस्य की बातें

माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं, जानिए दुर्लभ रहस्य की बातें........
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क्या आप जानते हैं पूजा में मंत्र जप के लिए उपयोग की जाने वाली माला में कितने मोती होते हैं?
पूजन में मंत्र जप के लिए जो माला उपयोग की जाती है उसमें 108 मोती होते हैं। माला में 108 ही मोती क्यों होते हैं इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण मौजूद हैं।
यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
यहां जानिए मंत्र जप की माला में 108 मोती होने के पीछे क्या रहस्य है...

भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्र जप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यह साक्षात् महादेव का प्रतीक ही है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। इसके साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।

शास्त्रों में लिखा है कि-
बिना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फलं भवेत्।।
इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। इनके साथ ही माला के बिना संख्याहीन किए गए जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र जप करें माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है उसकी मनोकामनएं बहुत जल्द पूर्ण होती है। माला से किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।
आगे जानिए कुछ अलग-अलग कारण जिनके आधार पर माला में 108 मोती रखे जाते हैं...

माला में 108 मोती रहते हैं। इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि...
षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा।।
इस श्लोक के अनुसार एक सामान्य पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है उसी से माला के मोतियों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है।
इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।

एक अन्य मान्यता के अनुसार माला के 108 मोती और सूर्य की कलाओं का संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता हैए छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मोती सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं।

ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
माला के मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 2 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108 ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।

माला के मोतियों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा मोती होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

सोरियासिस(अपरस), (छालरोग) भयानक चर्म रोग की चिकित्सा



 
सोरियासिस(अपरस), (छालरोग) भयानक चर्म रोग की चिकित्सा ::


सोरियासिस एक प्रकार का चर्म रोग है जिसमें त्वचा में सेल्स की तादाद बढने लगती है।चमडी मोटी होने लगती है और उस पर खुरंड और पपडियां उत्पन्न हो जाती हैं। ये पपडियां सफ़ेद चमकीली हो सकती हैं।इस रोग के भयानक रुप में पूरा शरीर मोटी लाल रंग की पपडीदार चमडी से ढक जाता है।यह रोग अधिकतर केहुनी,घुटनों और खोपडी पर होता है। अच्छी बात ये कि यह रोग छूतहा याने संक्रामक किस्म का नहीं है। रोगी के संपर्क से अन्य लोगों को कोई खतरा नहीं है। माडर्न चिकित्सा में अभी तक ऐसा परीक्षण यंत्र नहीं है जिससे सोरियासिस रोग का पता लगाया जा सके। खून की जांच से भी इस रोग का पता नहीं चलता है।

यह रोग वैसे तो किसी भी आयु में हो सकता है लेकिन देखने में ऐसा आया है कि १० वर्ष से कम आयु में यह रोग बहुत कम होता है। १५ से ४० की उम्र वालों में यह रोग ज्यादा प्रचलित है। लगभग १ से ३ प्रतिशत लोग इस बीमारी से पीडित हैं। इसे जीवन भर चलने वाली बीमारी की मान्यता है।

चिकित्सा विग्यानियों को अभी तक इस रोग की असली वजह का पता नहीं चला है। फ़िर भी अनुमान लगाया जाता है कि शरीर के इम्युन सिस्टम में व्यवधान आ जाने से यह रोग जन्म लेता है।इम्युन सिस्टम का मतलब शरीर की रोगों से लडने की प्रतिरक्षा प्रणाली से है। यह रोग आनुवांशिक भी होता है जो पीढी दर पीढी चलता रहता है।इस रोग का विस्तार सारी दुनिया में है। सर्दी के दिनों में इस रोग का उग्र रूप देखा जाता है। कुछ रोगी बताते हैं कि गर्मी के मौसम में और धूप से उनको राहत मिलती है। एलोपेथिक चिकित्सा मे यह रोग लाईलाज माना गया है। उनके मतानुसार यह रोग सारे जीवन भुगतना पडता है।लेकिन कुछ कुदरती चीजें हैं जो इस रोग को काबू में रखती हैं और रोगी को सुकून मिलता है। मैं आपको एसे ही उपचारों के बारे मे जानकारी दे रहा हूं---

१) बादाम १० नग का पावडर बनाले। इसे पानी में उबालें। यह दवा सोरियासिस रोग की जगह पर लगावें। रात भर लगी रहने के बाद सुबह मे पानी से धो डालें। यह उपचार अच्छे परिणाम प्रदर्शित करता है।



२) एक चम्मच चंदन का पावडर लें।इसे आधा लिटर में पानी मे उबालें। तीसरा हिस्सा रहने पर उतारलें। अब इसमें थोडा गुलाब जल और शकर मिला दें। यह दवा दिन में ३ बार पियें।बहुत कारगर उपचार है।

३) पत्ता गोभी सोरियासिस में अच्छा प्रभाव दिखाता है। उपर का पत्ता लें। इसे पानी से धोलें।हथेली से दबाकर सपाट कर लें।इसे थोडा सा गरम करके प्रभावित हिस्से पर रखकर उपर सूती कपडा लपेट दें। यह उपचार लम्बे समय तक दिन में दो बार करने से जबर्दस्त फ़ायदा होता है।

४) पत्ता गोभी का सूप सुबह शाम पीने से सोरियासिस में लाभ होते देखा गया है।प्रयोग करने योग्य है।
५) नींबू के रस में थोडा पानी मिलाकर रोग स्थल पर लगाने से सुकून मिलता है।

नींबू का रस तीन घंटे के अंतर से दिन में ५ बार पीते रहने से छाल रोग ठीक होने लगता है।

६)शिकाकाई पानी मे उबालकर रोग के धब्बों पर लगाने से नियंत्रण होता है।

७) केले का पत्ता प्रभावित जगह पर रखें। ऊपर कपडा लपेटें। फ़ायदा होगा।

८) कुछ चिकित्सक जडी-बूटी की दवा में steroids मिलाकर ईलाज करते हैं जिससे रोग शीघ्रता से ठीक होता प्रतीत होता है। लेकिन ईलाज बंद करने पर रोग पुन: भयानक रूप में प्रकट हो जाता है। ट्रायम्सिनोलोन स्टराईड का सबसे ज्यादा व्यवहार हो रहा है। यह दवा प्रतिदिन १२ से १६ एम.जी. एक हफ़्ते तक देने से आश्चर्यजनक फ़ायदा दिखने लगता है लेकिन दवा बंद करने पर रोग पुन: उभर आता है। जब रोग बेहद खतरनाक हो जाए तो योग्य चिकित्सक के मार्ग दर्शन में इस दवा का उपयोग कर नियंत्रण करना उचित माना जा सकता है।

९) इस रोग को ठीक करने के लिये जीवन शैली में बदलाव करना जरूरी है। सर्दी के दिनों में ३ लीटर और गर्मी के मौसम मे ५ से ६ लीटर पानी पीने की आदत बनावें। इससे विजातीय पदार्थ शरीर से बाहर निकलेंगे।

१०) सोरियासिस चिकित्सा का एक नियम यह है कि रोगी को १० से १५ दिन तक सिर्फ़ फ़लाहार पर रखना चाहिये। उसके बाद दूध और फ़लों का रस चालू करना चाहिये।


११) रोगी के कब्ज निवारण के लिये गुन गुना पानी पीना चाहिए

१२) अपरस वाले भाग को नमक मिले पानी से धोना चाहिये फ़िर उस भाग पर जेतुन का तेल लगाना चहिये।

१४) खाने में नमक वर्जित है।

१५) पीडित भाग को नमक मिले पानी से धोना चाहिये।

१६) धूम्रपान करना और अधिक शराब पीना विशेष रूप से हानि कारक है। ज्यादा मिर्च मसालेदार चीजें न खाएं।
 

आदिवासी खाने में करते हैं इन खास चीजों का USE, इसलिए बीमार नहीं होते

Photo: आदिवासी खाने में करते हैं इन खास चीजों का USE, इसलिए बीमार नहीं होते
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अनियंत्रित खाद्य शैली, रफ्तार भरी जीवन चर्या, पाश्चात्य भोज्य पदार्थों जिन्हें फ़ास्ट फ़ूड के तौर पर बाजार में बेचा जाता है, और तेजी से फ़ैलता पिज्जा कल्चर हमें तथाकथित रूप से "मार्डन" जरूर बना रहा है किन्तु सार सिर्फ एक बात पर निकाला जा सकता है कि मार्डन या विकसित समाज के हम जैसे लोगों की औसत जीवन आयु 60से 65 वर्ष है वहीं इन आदिवासियों की 80 से 85 वर्ष।
आखिर विकसित और स्वस्थ कौन हुआ? हम या वो, जो आज भी आदिवासी कहलाते है। ज्यादा विकसित और पैसा कमाने की दौड में हमने अपने और अपने परिवार के लालन-पालन में पोषक तत्वों को कहीं खो दिया है। आहार के नाम पर कृत्रिम रंगों से सजी सब्जियाँ और पाश्चात्य "फास्ट फूड" का आगमन हमारी सेहत की बर्बादी के लिए किसी झनझनाते अलार्म से कम नहीं है।

आदिवासियों के पारंपरिक खान-पान और उनके औषधीय महत्व जैसी रोचक जानकारियों का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले १५ सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित करने का काम कर रहे हैं और ऐसे विषय जानकार हैं जो अपने विषय को पहले विज्ञान की नजरों से देखते हैं और फिर परंपराओं के नजरिये से....

1. आदिवासियों के भोजन में हरी पत्तियों वाली साग-भाजियों की भरमार होती हैं। इनमें से अनेक भाजियाँ जैसे लाल-भाजी, कुल्थी, डोमा, पालक, मेथी और चौलाई आदि का व्यवसायीकरण भी हुआ है। आदिवासियों के अनुसार शरीर में ताकत और चपलता बढ़ाने के लिए लाल भाजी बडी ही महत्वपूर्ण है।

2. कुल्थी, डोमा और चौलाई जैसी भाजियाँ रक्त के लाल कणों (क्रक्चष्ट) की संख्या बढ़ाने के साथ ब्लड प्लेटलेट्स (बिम्बाणु) को भी बढ़ाते है यानि आपकी ताकत बढाने और आपको स्वस्थ रखने की ताकत इन भाजियों में समाहित है।

3. मध्यप्रदेश के पातालकोट के आदिवासी मुनगा/ सहजन की पत्तियों की चटनी तैयार कर भोजन के साथ बडे़ आनंद से खाते हैं साथ ही मुनगे की फ़ल्लियाँ भी दाल और सब्जी में डालते हैं। मुनगे की पत्तियों और फ़ल्लियों में विटामिन ए की प्रचुरता आधुनिक विज्ञान अच्छी तरह से साबित कर चुका है।

4. आँखों की बेहतर रौशनी के लिए मुनगे की फ़ल्लियों को अतिमहत्वपूर्ण माना जाता है।कच्ची पत्ता गोभी को आदिवासी बच्चों के लिए बहुत लाभदायक मानते हैं। 8-10 महीने की उम्र के जिन बच्चों का वजन कम होता है उन्हें आधा से एक कप मात्रा में पत्ता गोभी का रस पिलाया जाता है।

5. आदिवासी मुनगे की पत्तियों को बेसन के साथ मिलाकर पकौडे़ भी बनाते है। इन आदिवासियों के अनुसार पेट में कृमि (वर्म) होने की स्थिति में यदि मुनगे की चटनी अथवा पकौड़े खिलाए जाए तो कृमि मृत होकर शौच से बाहर निकल आते हैं।

6. कुन्दरू के फल में कैरोटीन प्रचुरता से पाया जाता है जो विटामिन ए का दूत कहलाता है। कुन्दरू में कैरोटीन के अलावा प्रोटीन, फाईबर और कैल्शियम जैसे महत्वपूर्ण तत्व भी पाए जाते है। गुजरात के डाँगी आदिवासियों के बीच कुंदरू की सब्जी बडी प्रचलित है। इन आदिवासियों के अनुसार इस फल की अधकच्ची सब्जी लगातार कुछ दिनों तक खाने से आखों से चश्मा तक उतर जाता है।

7. माना जाता है कि कुन्दरु की सब्जी के निरंतर उपभोग से बाल झडने का क्रम बंद हो जाता है, गंजेपन से भी बचा जा सकता है।

8. डाँग में आदिवासी कोमल बाँस की सब्जी बनाते हैं जो कि स्फ़ुर्तिदायक, रक्त शोधक, घाव सुखाने और मूत्रजनित रोगों के लिए उत्तम आहार हैं।पातालकोट के आदिवासी मक्के  के आटे से बनी चपातियों के साथ ही  लालमिर्च की चटनी खाते हैं। उनका मानना है कि इससे शरीर को भरपूर ऊर्जा और ताकत मिलती है।

9. पातालकोट में महुआ के फूलों को सुखाकर पाउडर/ आटा तैयार किया जाता है और इससे चपाती बनायी जाती है। वैसे आधुनिक शोधों के परिणामों को देखा जाए तो महुए के सूखे फूल मूत्रजनित रोगो के निवारण के लिए फायदेमंद है और ये टॉनिक की तरह भी कार्य करते हैं।

10. डाँग गुजरात में आदिवासी घुईयाँ या अरबी के पत्तों (200 ग्राम) को उबालते हैं, थोडी काली मिर्च डालकर इस उबले रस का सेवन दिन में दो बार करते हैं। पत्तियों को कम तेल में हल्का पकाकर सब्जी के तौर पर भी सेवन किया जाता है, माना जाता है कि हाईपरटेंशन या उच्च रक्तचाप के लिए ये एक बेहतर उपाय है।

11. घुईयाँ की पत्तियों से बने पकौडों के सेवन से आर्थरायटिस और अन्य जोड के रोगों में जबरदस्त फायदा होता है।डांग गुजरात के आदिवासी भोजन में वहां का स्थानीय अनाज जिसे रागी या नागली कहा जाता है के पापड़ तैयार कर खाते हैं। विज्ञान भी मानता है कि इसमें बहुत अधिक मात्रा में  प्रोटीन पाया जाता है।

12. पातालकोट जैसे दूरगामी आदिवासी अंचलों में प्रो-बायोटिक आहार "पेजा" दैनिक आहार के रूप में सदियों से हैं और इसका भरपूर सेवन भी किया जाता है। पेजा एक ऐसा व्यंजन है जो चावल, छाछ, बारली, निंबू और कुटकी को मिलाकर बनाया जाता है। आदिवासी हर्बल जानकार इस आहार को कमजोरी, थकान और बुखार आने पर रोगियों को देते है।

13. पेजा वास्तव में एक किण्वित (फरमेंटेड) आहार है जो बड़ा ही स्वादिष्ट होता हैं। लोग इसे उल्टी, दस्त, पेट दर्द और पेट से संबंधित अन्य विकारों के लिए रोगी को देते हैं। जो लोग लगातार एण्टीबायोटिक्स लेते हैं और इन दवाओं के नकारात्मक असर से परेशान हो तो पेजा सेहत को सामान्य करने में काफी मददगार साबित होता है।

14. तुरई के छिलकों की चटनी तैयार कर आदिवासी बुखार से निजात पाए व्यक्ति को जरूर देते हैं, इनका मानना है कि ये शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को पुन: स्थापित करने में मददगार होती है।

15. प्रतिदिन भोजन के साथ किसी न किसी रूप से टमाटर लिया जाना इन आदिवासियों में आवाश्यक माना जाता है। टमाटर फाईबर, कार्बोहाइड्रेड्स, पोटेशियम और लौह तत्वों से भरपूर होते हैं। टमाटर में वसा और सोडियम की मात्रा भी कम होती है और इसमें लाईकोपीन नामक प्रचलित एंटीओक्सीडेंट भी पाया जाता हैं।

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति 
आदिवासी खाने में करते हैं इन खास चीजों का USE, इसलिए बीमार नहीं होते
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अनियंत्रित खाद्य शैली, रफ्तार भरी जीवन चर्या, पाश्चात्य भोज्य पदार्थों जिन्हें फ़ास्ट फ़ूड के तौर पर बाजार में बेचा जाता है, और तेजी से फ़ैलता पिज्जा कल्चर हमें तथाकथित रूप से "मार्डन" जरूर बना रहा है किन्तु सार सिर्फ एक बात पर निकाला जा सकता है कि मार्डन या विकसित समाज के हम जैसे लोगों की औसत जीवन आयु 60से 65 वर्ष है वहीं इन आदिवासियों की 80 से 85 वर्ष।
खिर विकसित और स्वस्थ कौन हुआ? हम या वो, जो आज भी आदिवासी कहलाते है। ज्यादा विकसित और पैसा कमाने की दौड में हमने अपने और अपने परिवार के लालन-पालन में पोषक तत्वों को कहीं खो दिया है। आहार के नाम पर कृत्रिम रंगों से सजी सब्जियाँ और पाश्चात्य "फास्ट फूड" का आगमन हमारी सेहत की बर्बादी के लिए किसी झनझनाते अलार्म से कम नहीं है।

आदिवासियों के पारंपरिक खान-पान और उनके औषधीय महत्व जैसी रोचक जानकारियों का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले १५ सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित करने का काम कर रहे हैं और ऐसे विषय जानकार हैं जो अपने विषय को पहले विज्ञान की नजरों से देखते हैं और फिर परंपराओं के नजरिये से....

1. आदिवासियों के भोजन में हरी पत्तियों वाली साग-भाजियों की भरमार होती हैं। इनमें से अनेक भाजियाँ जैसे लाल-भाजी, कुल्थी, डोमा, पालक, मेथी और चौलाई आदि का व्यवसायीकरण भी हुआ है। आदिवासियों के अनुसार शरीर में ताकत और चपलता बढ़ाने के लिए लाल भाजी बडी ही महत्वपूर्ण है।

2. कुल्थी, डोमा और चौलाई जैसी भाजियाँ रक्त के लाल कणों (क्रक्चष्ट) की संख्या बढ़ाने के साथ ब्लड प्लेटलेट्स (बिम्बाणु) को भी बढ़ाते है यानि आपकी ताकत बढाने और आपको स्वस्थ रखने की ताकत इन भाजियों में समाहित है।

3. मध्यप्रदेश के पातालकोट के आदिवासी मुनगा/ सहजन की पत्तियों की चटनी तैयार कर भोजन के साथ बडे़ आनंद से खाते हैं साथ ही मुनगे की फ़ल्लियाँ भी दाल और सब्जी में डालते हैं। मुनगे की पत्तियों और फ़ल्लियों में विटामिन ए की प्रचुरता आधुनिक विज्ञान अच्छी तरह से साबित कर चुका है।

4. आँखों की बेहतर रौशनी के लिए मुनगे की फ़ल्लियों को अतिमहत्वपूर्ण माना जाता है।कच्ची पत्ता गोभी को आदिवासी बच्चों के लिए बहुत लाभदायक मानते हैं। 8-10 महीने की उम्र के जिन बच्चों का वजन कम होता है उन्हें आधा से एक कप मात्रा में पत्ता गोभी का रस पिलाया जाता है।

5. आदिवासी मुनगे की पत्तियों को बेसन के साथ मिलाकर पकौडे़ भी बनाते है। इन आदिवासियों के अनुसार पेट में कृमि (वर्म) होने की स्थिति में यदि मुनगे की चटनी अथवा पकौड़े खिलाए जाए तो कृमि मृत होकर शौच से बाहर निकल आते हैं।

6. कुन्दरू के फल में कैरोटीन प्रचुरता से पाया जाता है जो विटामिन ए का दूत कहलाता है। कुन्दरू में कैरोटीन के अलावा प्रोटीन, फाईबर और कैल्शियम जैसे महत्वपूर्ण तत्व भी पाए जाते है। गुजरात के डाँगी आदिवासियों के बीच कुंदरू की सब्जी बडी प्रचलित है। इन आदिवासियों के अनुसार इस फल की अधकच्ची सब्जी लगातार कुछ दिनों तक खाने से आखों से चश्मा तक उतर जाता है।

7. माना जाता है कि कुन्दरु की सब्जी के निरंतर उपभोग से बाल झडने का क्रम बंद हो जाता है, गंजेपन से भी बचा जा सकता है।

8. डाँग में आदिवासी कोमल बाँस की सब्जी बनाते हैं जो कि स्फ़ुर्तिदायक, रक्त शोधक, घाव सुखाने और मूत्रजनित रोगों के लिए उत्तम आहार हैं।पातालकोट के आदिवासी मक्के के आटे से बनी चपातियों के साथ ही लालमिर्च की चटनी खाते हैं। उनका मानना है कि इससे शरीर को भरपूर ऊर्जा और ताकत मिलती है।

9. पातालकोट में महुआ के फूलों को सुखाकर पाउडर/ आटा तैयार किया जाता है और इससे चपाती बनायी जाती है। वैसे आधुनिक शोधों के परिणामों को देखा जाए तो महुए के सूखे फूल मूत्रजनित रोगो के निवारण के लिए फायदेमंद है और ये टॉनिक की तरह भी कार्य करते हैं।

10. डाँग गुजरात में आदिवासी घुईयाँ या अरबी के पत्तों (200 ग्राम) को उबालते हैं, थोडी काली मिर्च डालकर इस उबले रस का सेवन दिन में दो बार करते हैं। पत्तियों को कम तेल में हल्का पकाकर सब्जी के तौर पर भी सेवन किया जाता है, माना जाता है कि हाईपरटेंशन या उच्च रक्तचाप के लिए ये एक बेहतर उपाय है।

11. घुईयाँ की पत्तियों से बने पकौडों के सेवन से आर्थरायटिस और अन्य जोड के रोगों में जबरदस्त फायदा होता है।डांग गुजरात के आदिवासी भोजन में वहां का स्थानीय अनाज जिसे रागी या नागली कहा जाता है के पापड़ तैयार कर खाते हैं। विज्ञान भी मानता है कि इसमें बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है।

12. पातालकोट जैसे दूरगामी आदिवासी अंचलों में प्रो-बायोटिक आहार "पेजा" दैनिक आहार के रूप में सदियों से हैं और इसका भरपूर सेवन भी किया जाता है। पेजा एक ऐसा व्यंजन है जो चावल, छाछ, बारली, निंबू और कुटकी को मिलाकर बनाया जाता है। आदिवासी हर्बल जानकार इस आहार को कमजोरी, थकान और बुखार आने पर रोगियों को देते है।

13. पेजा वास्तव में एक किण्वित (फरमेंटेड) आहार है जो बड़ा ही स्वादिष्ट होता हैं। लोग इसे उल्टी, दस्त, पेट दर्द और पेट से संबंधित अन्य विकारों के लिए रोगी को देते हैं। जो लोग लगातार एण्टीबायोटिक्स लेते हैं और इन दवाओं के नकारात्मक असर से परेशान हो तो पेजा सेहत को सामान्य करने में काफी मददगार साबित होता है।

14. तुरई के छिलकों की चटनी तैयार कर आदिवासी बुखार से निजात पाए व्यक्ति को जरूर देते हैं, इनका मानना है कि ये शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को पुन: स्थापित करने में मददगार होती है।

15. प्रतिदिन भोजन के साथ किसी न किसी रूप से टमाटर लिया जाना इन आदिवासियों में आवाश्यक माना जाता है। टमाटर फाईबर, कार्बोहाइड्रेड्स, पोटेशियम और लौह तत्वों से भरपूर होते हैं। टमाटर में वसा और सोडियम की मात्रा भी कम होती है और इसमें लाईकोपीन नामक प्रचलित एंटीओक्सीडेंट भी पाया जाता हैं।

Apr 23, 2013

केदारनाथ मंदिर

यहां स्थापित प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केदारनाथ मंदिर अति प्राचीन है। कहते हैं कि भारत की चार दिशाओं में चार धाम स्थापित करने के बाद जगद्गुरू शंकराचार्य ने ३२ वर्ष की आयु में यहीं श्री केदारनाथ धाम में समाधि ली थी। उन्हीं ने वर्तमान मंदिर बनवाया था। यहां एक झील है जिसमें बर्फ तैरती रहती है इस झील के बारे में प्रचलित है इसी झील से युधिष्ठिर स्वर्ग गये थे। श्री केदारनाथ धाम से छह किलोमीटर की दूरी चौखम्बा पर्वत पर वासुकी ताल है यहां ब्रह्म कमल काफी
होते हैं तथा इस ताल का पानी काफी ठंडा होता है। यहां गौरी कुण्ड, सोन प्रयाग, त्रिजुगीनारायण, गुप्तकाशी, उखीमठ, अगस्तयमुनि, पंच केदार आदि दर्शनीय स्थल हैं।

मुलेठी के फायदे

मुलेठी के फायदे ----------
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मुलेठी बहुत गुणकारी औषधि है। मुलेठी के प्रयोग करने से न सिर्फ आमाशय के विकार बल्कि गैस्ट्रिक अल्सर के लिए फायदेमंद है। इसका पौधा 1 से 6 फुट तक होता है। यह मीठा होता है इसलिए इसे यष्टिमधु भी कहा जाता है। असली मुलेठी अंदर से पीली, रेशेदार एवं हल्की गंधवाली होती है। यह सूखने पर अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है। मुलेठी की जड़ को उखाड़ने के बाद दो वर्ष तक उसमें औषधीय गुण विद्यमान रहता है। इसका औषधि के रूप में प्रयोग बहुत पहले से होता आया है। मुलेठी पेट के रोग, सांस संबंधी रोग, स्तन रोग, योनिगत रोगों को दूर करता है। ताजी मुलेठी में पचास प्रतिशत जल होता है, जो सुखाने पर मात्र दस प्रतिशत ही शेष रह जाता है। ग्लिसराइजिक एसिड के होने के कारण इसका स्वाद साधारण शक्कर से पचास गुना अधिक मीठा होता है। आइए हम आपको मुलेठी के गुणों के बारे में बताते हैं।

मुलेठी के गुण -

मुलेठी को काली-मिर्च के साथ खाने से कफ ढीला होता है। सूखी खांसी आने पर मुलेठी खाने से फायदा होता है। इससे खांसी तथा गले की सूजन ठीक होती है।
अगर मुंह सूख रहा हो तो मुलेठी बहुत फायदा करती है।
इसमें पानी की मात्रा 50 प्रतिशत तक होती है। मुंह सूखने पर बार-बार इसे चूसें। इससे प्‍यास शांत होगी।
गले में खराश के लिए भी मुलेठी का प्रयोग किया जाता है। मुलेठी अच्‍छे स्‍वर के लिए भी प्रयोग की जाती है।
मुलेठी महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है। मुलेठी का एक ग्राम चूर्ण नियमित सेवन करने से स्त्रियां, अपनी, योनि, सेक्‍स की भावना, सुंदरता को लंबे समय तक बनाये रख सकती हैं।
मुलेठी की जड़ पेट के घावों को समाप्‍त करती है, इससे पेट के घाव जल्‍दी भर जाते हैं। पेट के घाव होने पर मुलेठी की जड़ का चूर्ण इस्‍तेमाल करना चाहिए।

मुलेठी पेट के अल्‍सर के लिए फायदेमंद है। इससे न केवल गैस्ट्रिक अल्सर वरन छोटी आंत के प्रारम्भिक भाग ड्यूओडनल अल्सर में भी पूरी तरह से फायदा करती है। जब मुलेठी का चूर्ण ड्यूओडनल अल्सर के अपच, हाइपर एसिडिटी आदि पर लाभदायक प्रभाव डालता है। साथ ही अल्सर के घावों को भी तेजी से भरता है।
खून की उल्टियां होने पर दूध के साथ मुलेठी का चूर्ण लेने से फायदा होता है। खूनी उल्‍टी होने पर मधु के साथ भी इसे लिया जा सकता है।
हिचकी होने पर मुलेठी के चूर्ण को शहद में मिलाकर नाक में टपकाने तथा पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ खिला देने से लाभ होता है।
मुलेठी आंतों की टीबी के लिए भी फायदेमंद है।

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

तुलसी (Tulsi)

तुलसी (Tulsi) ---------
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तुलसी का पौधा यूं ही हर घर-आंगन की शोभा नहीं बनता। घरों तथा मंदिरों में तो इसका पौधा अनिवार्य माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से तो इसकी उपयोगिता है ही, स्वास्थ्य रक्षक के रूप में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

आज के जमाने में घरों में मनीप्लांट या अन्य सुन्दर सजावटी पौधे लगाये जाते हैं, वहीं तुलसी का पौधा भी जरूर नजर आता है। दरअसल, हम सभी जानते हैं कि तुलसी का पौधा लगा कर कई बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके रख-रखाव में भी विशेष परिश्रम नहीं करनी पड़ती। इसके पौधे के पास जाने से इससे स्पर्श हुई हवा से ही कई परेशानियां दूर हो जाती हैं।

स्पर्श और गंध में जादू
इसकी गंध युक्त हवा जहां-जहां जाती है, वहां का वायुमण्डल शुद्ध हो जाता है। इसे दूषित पानी एवं गंदगी से बचाना जरूरी होता है। धार्मिक दृष्टि से तुलसी पर पानी चढ़ाना नित्य नेम का हिस्सा माना जाता है। विद्वानों का मत है कि जल चढ़ाते समय इसका स्पर्श और गंध रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है। वैसे तो इसकी कई जातियां हैं, लेकिन श्वेत और श्याम या रामा तुलसी और श्यामा तुलसी ही प्रमुख हैं। पहचान के लिए श्वेत के पत्ते तथा शाखाएं श्वेताय (हल्की सफेदी) तथा कृष्णा के कृष्णाय (हल्का कालापन) लिये होते हैं।

काले पत्ते वाली तुलसी
कुछ विज्ञान काले पत्ते वाली तुलसी को औषधीय गुणों में उत्तम मानते हैं तो कुछ दोनों को ही सामान्य गुण वाली मानते हैं। इसके पत्ते मूल, बीज, जड़ तथा इसकी लकड़ी सभी उपयोगी होती है। इसके पत्तों की रस की मात्र बड़ों के लिए दो तोला (लगभग तीन चम्मच) तथा बीजों का चूर्ण एक से दो ग्राम की मात्रा में लिया जाता है।

औषधीय गुणों में यह हृदय को बल देने वाली, भूख बढ़ाने वाली, वायु, कफ, खांसी-हिचकी, उल्टी, कुष्ठ (कोढ़), रक्त विकार, अपस्भार हिस्टीरीया और सभी प्रकार के बुखारों में उपयोगी है।

जीवाणुओं को नष्ट करता है
तुलसी में एक उड़नशील तेल होता है, जो हवा में मिलकर मलेरिया बुखार फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट करता है। विद्वानों का मत है कि तुलसी के पत्तों के दो तोले रस में तीन माशे काली मिर्च का चूर्ण मिला कर पीने से मलेरिया में बहुत लाभ होता है।

और भी हैं औषधीय गुण
इसके पत्ते चाय के साथ या अनाज उबाल कर पिलाने से छाती की सर्दी में लाभ होता है। सर्दी के कारण जमा कफ बाहर निकल जाता है जिससे छाती के दर्द में आराम मिलता है।

बढ़े हुए कफ में इस का रस शहद में मिलाकर देना लाभकारी है। पुराने बुखार में इसके पत्तों का रस सारे शरीर पर मलने से लाभ होता है। आंतों में छिपे कीड़ों के लिये पत्तों का चूर्ण सेवन करना हितकर है। उल्टी में इसके पत्तों का रस और अदरख का रस मिला कर पिलाने से लाभ होता है। पेट साफ होता है।

दाद हो तो इसका रस लगाने से फायदा होता है। पुराना घाव हो तो इसके रस से घाव धोने से संक्रमण नहीं होता, उसमें कीड़े नहीं पड़ते, दुगर्न्ध दूर होती है। घाव भरता है।

इसका पाचांग फल-फूल पत्ते तना जड़ का चूर्ण बना कर नीबू के रस में घोल कर लगाने से दाद खाज एक्जिमा एवं अन्य चर्म रोगों में लाभकारी है।

शरीर के सफेद दाग, मुंह पर कील-मुहांसे, झाई पर इसका रस लगाना लाभकारी है। सांप काटे व्यक्ति को एक से दो मुट्ठी तुलसी के पत्ते चबवा दिये जाएं तो सांप का जहर मिट जाएगा। पत्ते खिलाने के साथ इसकी जड़ का चूर्ण मक्खन में मिला सांप काटी जगह पर लेप करना हितकर है। इसकी पहचान यह है कि लेप करते समय इसका रंग सफेद होगा लेकिन जैसे-जैसे जहर इस लेप से कम होगा, लेप का रंग काला होता जाएगा। तभी तुरन्त उस लेप को हटा दूसरा लेप लगा देना चाहिये। जब तक लेप का रंग काला होना बंद हो जाए तो समझना चाहिये ये जहर का असर खत्म हो गया।

बिच्छू या ततैया, बर्र आदि के डंक मारने पर तुलसी का रस लगाने से और पिलाने से दर्द दूर होता है।

खांसी, श्वास में तुलसी के पत्तों का रस वासा के पत्तों का रस एक से दो चम्मच मिला कर पीने से लाभ होता है। बल पौरुष बढ़ाने, शरीर को बलवान बनाने में तुलसी बीज का चूर्ण चमत्कारी है। यह बलवर्धक, शीघ्र पतन व नपुंसकता नाशक और पौष्टिक होता है। इसके सेवन से असमय वृद्धा अवस्था नहीं आती, शरीर बलवान चेहरा कान्तिमान होता है।

बच्चों के लिवर की कमजोरी में इसका काढ़ा पिलाना बहुत लाभकारी है। कान के दर्द में इसके पत्तों का रस गर्म कर कान में टपकाने से दर्द में चैन मिलता है।

इसकी मंजरी (फूल) सौंठ, प्याज रस और शहद मिलाकर चाटने से सूखी खांसी और दमा में लाभ होता है। इसे पत्तों का चूर्ण या मंजरी का चूर्ण सूंघने से जुकाम (सायनोसायटिस) नाक की दुर्गन्ध दूर होती है तथा मस्तक के कीड़े नष्ट होते हैं।

दांत दर्द में तुलसी के पत्ते तथा काली मिर्च साथ पीस कर गोली बना कर खाने से लाभ होता है। तुलसी के पत्ते और जीरा मिलाकर पीस कर शहद से लेने से मरोड़ और दस्त में लाभ होता है।

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

मधुमेह(डायबिटिज) का ईलाज

मधुमेह(डायबिटिज) का ईलाज::
http://www.youtube.com/watch?v=oiRf-LLSq0U

आजकल मधुमेह की बीमारी आम बीमारी है। डाईबेटिस भारत मे 5 करोड़ 70 लाख लोगोंकों है और 3 करोड़ लोगों को हो जाएगी अगले कुछ सालों मे सरकार ये कह रही है । हर दो मिनट मे एक मौत हो रही है डाईबेटिस से और complication Complications तो बहुत हो रहे है... किसी की किडनी ख़राब हो रही है, किसीका लीवर ख़राब हो रहा है किसीको ब्रेन हेमारेज हो रहा है, किसीको पैरालाईसीस हो रहा है, किसीको ब्रेन स्ट्रोक आ रहा है, किसीको कार्डियक अरेस्ट हो रहा है, किसी को हार्ट अटैक आ रहा है Complications बहुत है खतरनाक है ।

जब किसी व्यक्ति को मधुमेह की बीमारी होती है। इसका मतलब है वह व्यक्ति दिन भर में जितनी भी मीठी चीजें खाता है (चीनी, मिठाई, शक्कर, गुड़ आदि) वह ठीक प्रकार से नहीं पचती अर्थात उस व्यक्ति का अग्नाशय उचित मात्रा में उन चीजों से इन्सुलिन नहीं बना पाता इसलिये वह चीनी तत्व मूत्र के साथ सीधा निकलता है। इसे पेशाब में शुगर आना भी कहते हैं। जिन लोगों को अधिक चिंता, मोह, लालच, तनाव रहते हैं, उन लोगों को मधुमेह की बीमारी अधिक होती है। मधुमेह रोग में शुरू में तो भूख बहुत लगती है। लेकिन धीरे-धीरे भूख कम हो जाती है। शरीर सुखने लगता है, कब्ज की शिकायत रहने लगती है। अधिक पेशाब आना और पेशाब में चीनी आना शुरू हो जाती है और रेागी का वजन कम होता जाता है। शरीर में कहीं भी जख्म/घाव होने पर वह जल्दी नहीं भरता।
तो ऐसी स्थिति मे हम क्या करें ? राजीव भाई की एक छोटी सी सलाह है के आप इन्सुलिन पर जादा निर्भर न करे क्योंकि यह इन्सुलिन डाईबेटिस से भी जादा खतरनाक है, साइड इफेक्ट्स बहुत है ।

सामग्री:: 100 ग्राम मेथी दाना, 100 ग्राम तेज पत्र, 150 ग्राम जामुन की गुठली और 250 ग्राम बेल पत्र
बनाने की विधि:: इन सब को अलग अलग धूप में सुखाकर इन्हे पत्थर पर पीस ले और बाद में सबको मिलाले
इसका एक चम्म्च सुबह नाश्ता करने से पहले 1 गिलास गर्म पानी से ले ले और एक चम्म्च रात को खाना खाने से एक घण्टे पहले, इस दवा को ३ महिने लगातार लेने से मधुमेह(डायबिटिज) खत्म हो जाती है, इसके साथ रोजाना योग-प्राणायाम जरूर करे

प्रहेज और सावधानिया::

ज्यादा फ़ाईबर और कम फ़ैट वाली चीजे खाए जैसे सब्जीया खाए, दाल छिलके वाली ही खाए
चीनी न खाए, देसी गुड खा सकते है (बिना कैमीकल वाला)
फ़ल आदि जिसमें प्राक्रतिक शक्कर होती है वो सभी खा सकते है

स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ
स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयंगे.
छोड़ो मेहँदी खडग संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे.

कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो, दुशासन दरबारों से,
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं, वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयंगे.

कल तक केवल अँधा राजा, अब गूंगा बहरा भी है
होठ सी दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है,
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे, किसको क्या समझायेंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयंगे.....

साउथ अफ्रीका के सुद्वारा नामक गुफा में पाई गयी महादेव की ६००० साल पुराणी ये रुद्रावतार प्रतिमा

 
साउथ अफ्रीका के सुद्वारा नामक गुफा में
पाई गयी महादेव की ६००० साल
पुराणी ये रुद्रावतार प्रतिमा।
ये है हम हिन्दुओं के महादेव जो हर जगह
है,कितना भी छिपा लो मिल ही जायंगे।
इसे ग्रेनाइट नाम के अत्यंत कठोर चट्टान
को तराशकर बनायीं गयी है ,इसे खोजने
वाले पुरात्वेत्ता हैरान है
की इतनी पुराणी मूर्ति को इतने उन्नत
तरीके से कैसे बनायीं गयी।

बिच्छू काटने पर चिकित्सा

 
बिच्छू काटने पर चिकित्सा : आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:
http://www.youtube.com/watch?v=N4iEd5Ku9lQ

बिच्छू काटने पर बहुत दर्द होता है जिसको बिच्छू काटता है उसके सिवा और कोई जान नही सकता कितना भयंकर कष्ट होता है। तो बिच्छू काटने पर एक दावा है उसका नाम है Silicea 200 इसका लिकुइड 5 ml घर में रखे । बिच्छू काटने पर इस दावा को जीभ पर एक एक ड्रोप 10-10 मिनट अंतर पर तिन बार देना है । बिच्छू जब काटता है तो उसका जो डंक है न उसको अन्दर छोड़ देता है वोही दर्द करता है । इस डंक को बाहर निकलना आसान काम नही है, डॉक्टर के पास जायेंगे वो काट करेगा चीरा लगायेगा फिर खिंच के निकालेगा उसमे उसमे ब्लीडिंग भी होगी तकलीफ भी होगी । ये मेडिसिन इतनी बेहतरीन मेडिसिन है के आप इसके तिन डोस देंगे 10-10 मिनट पर एक एक बूंद और आप देखेंगे वो डंक अपने आप निकल कर बाहर आ जायेगा। सिर्फ तिन डोस में आधे घन्टे में आप रोगी को ठीक कर सकते है। बहुत जबरदस्त मेडिसिन है ये Silicea 200. और ये मेडिसिन मिट्टी से बनती है,वो नदी कि मिट्टी होती है न जिसमे थोड़ी बालू रहती है उसी से ये मेडिसिन बनती है ।

इस मेडिसिन को और भी बहुत सारी काम में आती है । अगर आप सिलाई मशीन में काम करती है तो कभी कभी सुई चुव जाती है और अन्दर टूट जाती है उस समय भी आप ये मेडिसिन ले लीजिये ये सुई को भी बाहर निकाल देगा। आप इस मेडिसिन को और भी कई केसेस में व्यवहार कर सकते है जैसे कांटा लग गया हो , कांच घुस गया हो, ततैया ने काट लिया हो, मधुमखी ने काट लिया हो ये सब जो काटने वाले अन्दर जो छोड़ देते है वो सब के लिए आप इसको ले सकते है । बहुत तेज दर्द निवारक है और जो कुछ अन्दर छुटा हुआ है उसको बाहर निकलने की मेडिसिन है ।
बहुत सस्ता मेडिसिन है 5 ml सिर्फ 10 रूपए की आती है इससे आप कम से कम 50 से 100 लोगों का भला कर सकते है ।

वन्देमातरम्

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
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