हमारे भारत में आज हर कहीं पश्चिम के
अन्धानुकरण के कारण 'जन्मदिन' के दिन केक के
ऊपर जलती हुई मोमबत्तियों को बुझाकर फिर
खुश होने की परंपरा चल पड़ी है-
हमारी भारतीय संस्कृति में हमें इस तरह
जन्मदिन
मनाना शोभा नहीं देता क्योंकि हमारी संस्कृति
हम दिया तब बुझाते है जब घर में
किसी की मौत हो जाती है, भारत में आज
भी कई संस्कारी और परंपरागत घरों में यह
किया जाता है, ज़रा सोचिये कि हम अपने
ही जन्मदिन के दिन अपने ही हाथों से
जलती हुई मोमबत्तियों जो कि दीपक
का ही एक प्रतीक है, उसे बुझा रहे है, यह हम
सब जानते हे कि जलते हुए दीपक या और
किसी अन्य प्रकाश के प्रतीक का बुझना मृत्यु
का प्रतीक होता है जन्म का नहीं,......
यानि हम अपने जन्मदिन के दिन वो कर रहे है
जो मृत्यु का प्रतीक है.......
हमेशा दिया जलाने में और प्रकाश करने में
ख़ुशी मिलती है, अँधेरा करने में नहीं! लेकिन आज
ये कैसा दौर है कि लोग अँधेरा करने में खुश
हो रहे है... हमें ये
शोभा नहीं देता क्योंकि हम भारतीय संस्कृति के
संवाहक है और हमें चाहिए कि हम भी दीपक
कि तरह इस जगत को प्रकाशमान करें और
औरों के जीवन में भी प्रकाश लायें!
कृपया अँधेरा करने वाली इस परंपरा को बंद करें!
और दूसरों को भी प्रेरित करें!
जन्मदिन मनाने के और भी तरीके हैं जैसे हम
यज्ञ या हवन करें जिससे आस-पास का वातावरण
सुगन्धित और उर्जमायी हो जाये! या फिर हम
किसी मंदिर पर दीप-मालिकायें प्रजवलित कर
सकते है जो अपने आप में एक अनुपम ख़ुशी है और
पुरे वातावरण को रौशनी से भर देती है!
अपनी संस्कृति को पहचाने! जय हिन्द ..... जय
भारत
......धन्यवाद
अपने और परिवार के कोई भी सदस्य के
जन्मदिवस पर यझ (हवन) करके वैदिक
संस्कृति की ज्योत जलती रखे
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