May 17, 2013

Garlic लहसुन Allium Sativum रशुण, लेशुन

 
Garlic लहसुन Allium Sativum रशुण, लेशुन

लहसुन - लहसुन प्याच की बीरादरी का है, पर उससे कहीँ अधिक तीक्षण एवं गरम है | इसकी मात्रा थोड़ी ही ली जाती है | गंध भी उससे तीव्र होती है | यह उत्तेजक है | चाय काफी की तरह लहसुन खाने से भी उत्तेजना आती है | उससे नपुंसकता जैसे रोग दूर होते हैँ | गले मेँ घेँघा फुल जाने की स्थिति मेँ लहसुन का अपयोग लाभदायक सिद्ध होता है |

लहसुन कच्चा नहीँ खाया जाता | उसे किसी खाद्य पदार्थ मेँ मिलाकर खाते हैँ, ताकि गंध एवँ तीक्ष्णता हल्की पड़ जाए | लहसुन को मेवा एवँ मावा मिलाकर उसकी कतली व लड् डू भी बनाए जाते हैँ | उनका सेवन जाड़े के दिनोँ मेँ उत्तम है | गर्मी के दिनोँ मेँ अधिक लहसुन खाने से जलन होने लगती है | प्यास कि बड़ोत्तरी हो जाती है | आमाशय की झिल्ली कड़ी होने एवँ अल्सर मेँ लहसुन का उपयोग अच्छा है | दाँत का दर्द मसूड़े फूलने पर लहसुन को पीसकर उसकी धीरे-धीरे मालिस करनी चाहिए |

लहसुन को तिल्ली केँ तेल मेँ पकावेँ | एक पाव तेल मेँ आधी छटांक लहसुन पीसकर धीमी आग पर पकने देँ | लहसुन जब काला पड़ जाए, तो उसे छान लेँ | यह लहसुन का तेल तैयार हो गया | कान के दर्द मेँ इसकी कुछ बूँदेँ डालकर रुई से बंद कर देना चाहिए | इस प्रकार कई दिन प्रयोग करने से कान मेँ फुंसी भी उठी हो तो, वह साफ हो जाती है | जमा हुआ मैल भी फूलकर निकल जाता है, और उसे सालाई के सहारे बाहर निकाल देने से कान साफ हो जाता है | बहरापन बड़ रहा हो, तो उसमेँ भी इसके प्रयोग से लाभ होता है |

जोड़ोँ के, रीड़ के दर्द मेँ लहसुन के तेल की मालिस की जा सकती है | चमड़ी मेँ पंजा गड़ाकर बैठने वाली छोटे किस्म की जुएँ भी इसकी मालिस से मर जाती हैँ | उठते हुए फोड़ोँ पर लहसुन की पुल्टिस बाँधने से वह जल्दी पक कर फूट जाता है या बैठ जाता है | हैजा मेँ पीने के लिए लहसुन के साथ उबला पानी देने से आराम होता है |

मुख मार्ग से देने श्वांस व डकार मेँ दुर्गन्ध आने कारण इसका बाह्म प्रयोग ही बहुधा अपने उपचार मेँ मान्यता प्रप्त है |

लहसुन को पीसकर छाती पर लेप करने से , फेफड़ोँ की पुरानी बीमारी-राजयक्ष्मा मेँ कफ जल्दी निकलता है | सभी प्रकार के घावोँ, सूजन आदि के लिए यह एक श्रेष्ठ एण्टीसेप्टिक है | सारे वात रोग, संधि शोथोँ मेँ उसके तेल की मालिस करते हैँ | खुजली मेँ लहसुन की कली को पीसकर राई के तेल मेँ गरम कर उस तेल से मालास करते हैँ | बाह्म प्रयोग मेँ यह ध्यान रखना चाहिए कि यह एक बहुत ही तीव्र जलन करने वाली चर्मदाह औबधि है | अधिक समय तक लेप करने पर छाला उठ सकता है | अंतरंग प्रयोग मेँ इसका हृदय रोगोँ मेँ (कोरोनरी नलिकाओँ मे रक्तावरोध) एवं कोलेस्ट्राल को घटाने हेतु, फेफड़ोँ के क्षय एब्सेस आदि मेँ प्रयोग तो अब वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित है एवं उसके तेल की 'गार्लिक पर्ल्स' भी बाजार मेँ उपलब्ध है | इसकी तीक्ष्ण गंध तामसिक वृत्ति एवं उत्तेजक गुण वाला होने के कारण, जहाँ इसके सेवन को उचित न समझा जाए, वहाँ बाह्म प्रयोग तो किया ही जा सकता है |

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