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Nov 4, 2013

D2h Dvr-Quick Guide!!!

D2h Dvr-Quick Guide!!!
I'm trying to give some features & functions of Videocon D2h-dvr.
Hope it will be useful for the Indian DTH members.
1}Universal remote control features...(Remote key functions)

Power(tv):To switch ur tv on or to make it standby.
Power:to switch satellite box on or standby.
Menu:gets u to the D2h menu.
Language:Helps in changing the language.
Favourite:To preset ur favourite programmes.
Tv/Av:To select between tv & av.
Mosaic:Shortcut key
Active:To open active service menu.
Guide:Gets u programme listings & schedules.
Mute:Switches sound on/off.
Info bar:To get information bar.
Ok:Helps u confirm the desired function.
Navigation keys:Helps u in navigate up,down,right&left.
Volume up/down:To adjust the volume level.
Channel up/down:Helps u in navigate through channels.
Back key:Helps in undo any function.
Exit:To exit from any menu.
Red,Green,Yellow,&Blue:Specific function pads.
Ff:To fast forward a live paused program or a recorded programme.
Rewind:To rewind live or recorded programme.
Play/pause:To play & pause live tv.
Record:To record live content.
Stop:Stops the programme.
Slow:Plays programme in slow motion.
Skip back:Instant replay.
Skip forw:Jump forward.
Live:Jumps back to live tv.
Alpha num.keys:Offers different functions in different modes.
Home:Gets u to the home channel.
Help:Gets u to the help menu.

2}Process to configure Universal remote with normal tv remote:

Step1>Keeps the two remote with their front facing each other at a distance of 2 to 3 cm.
Step2>Press & hold 'OK'key & 'Digit 2'key on universal remote for a moment till 'OK'key starts blinking.
Step3>Now the universal remote is ready to learn the Tv remote keys.(e.g. If u want to programme 'STANDBY'key then first press'TV'(standby)key on universal remote & then press'STANDBY'key on the Tv remote.
Step4>'OK'key stops blinking & glows constantly,press'STANDBY'key on Tv remote.
Step5>'OK'key again starts blinking,it means the Universal remote has learnt the Standby function of Tv remote.
Step6>Repeat above steps 3 to 4 for programming other keys like,
Tv/av,Vol(+) & Vol(-) also Mute.


Note:To reset universal remote press'OK'key & 'Digit 1'key simultaneously for 2-3 seconds.

**छोटी दीपावली नरक चतुर्दशी**

**छोटी दीपावली नरक चतुर्दशी**
छोटी दीपावली नरक चतुर्दशी को कहा जाता है। इसे कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है।

कारण या कथा- इस दिन के व्रत और पूजा के विषय मेँ कथा यह है कि रन्तिदेव नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उन्होने कभी अनजाने मेँ भी कोई पाप नहीँ किया था लेकिन जब उनकी मृत्यु का समय आया तो यमदूत उनके प्राण लेने आ पहुँचें। उन्हेँ सामने देख राजा आश्चर्यचकित होकर बोले - हे दूत! "मैने कभी कोई पाप कर्म नहीँ किया है फिर आप लोग मुझे लेने क्योँ आए है?" राजा दूतोँ से बोले कि आपके यहाँ आने का तात्पर्य है कि मुझे नरक जाना होगा।अतः आप मुझ पर कृपा करके बताएँ कि मुझसे क्या अपराध हुआ है। राजा की विनयपूर्ण वाणी सुनकर यमदूत ने कहा कि एक बार आपके द्धार से एक ब्राह्राण भूखा लौट गया था। यह उसी पाप का फल है।
यह सुनकर राजा ने यमदूतोँ से कहा कि उन्हेँ अपनी भूल को सुधारने का एक मौका दिया जाए। यमदूत ने राजा की प्रार्थना पर उन्हेँ एक वर्ष की मोहलत दे दी। इसके बाद राजा ब्राह्राणोँ के पास गए और उन्हेँ अपनी परेशानी से अवगत कराया। राजा के पूछने पर बाह्राण बोले -हे राजन्! आपको कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करके ब्राह्राणोँ को भोजन कराना होगा। इसके बाद उनसे अपने अपराध की क्षमा याचना करनी होगी। राजा ने वैसा ही किया और वे अपने पाप कर्म से मुक्त होकर बैकुंठ को गए।
इस प्रकार उस दिन से पाप और नरक से मुक्ति हेतु मृत्युलोक मेँ कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का व्रत प्रचलित है।

क्रियाएँ- इस दिन संध्या के पश्चात् दीपक जलाकर यमराज जी से अकाल मृत्यु से मुक्ति व स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए उपासना की जाती है।
इसके अतिरिक्त इस दिन सुबह शरीर पर उबटन लगाकर पानी मेँ चिचड़ी की पत्तियोँ को डालकर स्नान किया जाता है। इससे सुंदरता प्राप्त होती है।

ॐ नमो नारायण ~~

Nov 3, 2013

ओके का कैसे हुआ चलन?

ओके का कैसे हुआ चलन?

ओके
हेलो (Hello) के बाद अंग्रेज़ी का सब से ज़्यादा प्रयोग में आने वाला शब्द शायद ‘ओके’ (OK) है. और अगर इस शब्द की पृष्ट-भूमि खंगालिए तो विचित्र कहानियाँ सुनने को मिलती हैं.
हालांकि आज कल ओके को छोटा बड़ा हर कोई बिना हिचक बड़ी सहजता से प्रयोग में लाता है, लेकिन हम अपने नवयुवक पाठकों को इस बात से अवगत करा दें कि कुछ दशक पहले इस शब्द के साथ ऐसी स्थिति नहीं थी.
ख़ुद मेरे छात्र-जीवन के समय इस शब्द को बाज़ारी समझा जाता था.
हमें याद है कि हमारे दर्शनशास्त्र की कक्षा के प्रोफ़ेसर शाहिद अली ने एक छात्र को एक सौ बार ‘All Right’ लिखने और फिर उसको सौ बार बोलने की सज़ा दी थी, क्योंकि उस छात्र ने प्रोफ़ेसर साहेब की आज्ञा के पालन के लिए ‘OK Sir’ कह दिया था.
बाद में प्रो. शाहिद अली ने सारी क्लास को चेतावनी देते हुए कहा था कि ‘अगर किसी और ने भी अधिक ‘YANKEE’ बनने की कोशिश की तो उसकी भी वैसी ही दुर्दशा होगी’.
वैसे तो ‘यांकी’ शब्द ख़ुद भी अपना एक दिलचस्प इतिहास रखता है लेकिन उस पर आगे कभी बात करेंगे, आज हम अपनी बात ओके तक ही सीमित रखते हैं.

शुरुआत

ऐंड्रियु जैकसन
कहा जाता है कि अमरीकी राष्ट्रपति जैकसन ने इसका प्रयोग किया था.
इस शब्द की शुरूआत के बारे में सबसे आम ख़्याल तो यह है कि अमरीकी राष्ट्रपति ऐड्रू जैक्सन ने All Correct के स्थान पर उसके संक्षिप्त रूप oll correct के ग़लत हिज्जे अथवा ओके का चलन किया.
यह कहानी जब भारत और पाकिस्तान तक पहुंची तो लोगों ने राष्ट्रपति का पात्र बदल कर वहां जार्ज वाशिंगटन या अब्राहम लिंकन को ला बिठाया.
यह कहानी जितनी पॉपुलर है उतनी ग़लत भी है क्योंकि किसी अमरीकी राष्ट्रपति के संदर्भ में इस प्रकार की किसी हरकत का प्रमाण नहीं मिलता है.
इस से ज़रा अच्छी और विश्वसनिय कहानी राष्ट्रपति पद के एक उम्मीदवार के बारे में है जिसका चुनाव अभियान सन 1800 ई. के क़रीब शुरू हुआ था.
उम्मीदवार का पुश्तैनी गांव न्युयार्क राज्य में था और उसका नाम था Old Kinderhook. इसलिए उसके समर्थकों ने उसी नाम के प्रारंभ के अक्षरों को लेकर एक OK ग्रुप बना लिया, और हर ओर इसी शब्द को ख्याति दी.
अमरीकी रेलवे के शुरू के समय में एक पोस्टल कलर्क की भी दास्तान मिलती है जिसका नाम Obaidiah Kelly था और हर पार्सल पर निशानी के लिए वह अपने नाम के प्रारंभ के अक्षर OK दर्ज कर देता था और वहीं से इस शब्द ने प्रसिद्धि प्राप्त की.

मज़बूत दलील

रेड इंडियन
एक मज़बूत दलील ये भी है कि ओके किसी रेड इंडियन भाषा से आया है.
लेकिन इन कहानियों से कहीं अधिक सशक्त दलील यह मालूम होती है कि OK किसी रेड इंडियन भाषा का शब्द है.
ज्ञात रहे कि अमेरिका में आज तक रेड इंडियन भाषा के बहुत से शब्द प्रयोग किए जाते हैं. ख़ुद अमेरीकी राज्यों में से आधे राज्यों का नाम रेड इंडियन है. उदाहरणस्वरूप ओकलाहामा, डकोटा, उडाहो, विस्किनसन, उहायो, टेनेसी—यह सब रेड इंडियन नाम हैं.
कहा जाता है कि रेड इंडियन क़बीले चटकाव का सरदार एक दिन क़बीले के प्रतिनिधियों की बात सुन रहा था और हर बात पर ‘ओके, ओके’ कहता जाता था जिस का अर्थ था ‘हां ठीक है’.
किसी अमेरीकी पर्यटक ने इस घटना को देख लिया और फिर अपने साथियों में इस शब्द को प्रचलित कर दिया.
OK एक ऐसा शब्द है जिसे अमरीका वाले शुद्ध अमरीकी शब्द मानेते हैं क्योंकि यह शब्द अंग्रेज़ी भाषा के साथ इंगलिस्तान से वहां नहीं पहुंचा था बलकि यह अमेरीका की अपनी पैदावार है.
अगरचे पिछले तीस-चालीस वर्षों में इस शब्द को बाज़ारी बोलचाल से संजीदा लेखन में आने का रुतबा मिल चुका है और अब कोई शिक्षक उसके प्रयोग करने पर किसी क्षात्र को सज़ा नहीं देता है लेकिन कुछ शरारती क्षात्रों ने उस्तादों को गुस्सा दिलाने के लिए इस की बिगड़ी हुई शक्ल ‘ओकी’ और ‘ओकी.डोकी’ जैसे ऊटपटांग शब्द गढ़ लिए हैं.

Oct 26, 2013

उपवास

उपवास


विषय वासना निवृत्ति का अचूक साधन
अन्न में भी एक प्रकार का नशा होता है। भोजन करने के तत्काल बाद आलस्य के रूप में इस नशे का प्रायः सभी लोग अनुभव करते हैं। पके हुए अन्न के नशे में एक प्रकार की पार्थिव शक्ति निहित होती है, जो पार्थिव शरीर का संयोग पाकर दुगनी हो जाती है। इस शक्ति को शास्त्रकारों ने आधिभौतिक शक्ति कहा है।
इस शक्ति की प्रबलता में वह आध्यात्मिक शक्ति, जो हम पूजा उपासना के माध्यम से एकत्रित करना चाहते हैं, नष्ट हो जाती है। अतः भारतीय महर्षियों ने सम्पूर्ण आध्यात्मिक अनुष्ठानों में उपवास का प्रथम स्थान रखा है।
विषय विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।
गीता के अनुसार उपवास, विषय-वासना की निवृत्ति का अचूक साधन है। जिसका पेट खाली हो उसे फालतू की मटरगस्ती नहीं सझती। अतः शरीर, इन्द्रियों और मन पर विजय पाने के लिए जितासन और जिताहार होने की परम आवश्यकता है।
आयुर्वेद तथा आधुनिक विज्ञान दोनों का एक ही निष्कर्ष है कि व्रत और उपवासों जहाँ अनेक शारीरिक व्याधियाँ समूल नष्ट हो जाती हैं, वहाँ मानसिक व्याधियों के शमन का भी यह एक अमोघ उपाय है। इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है व शरीरशुद्धि होती है।
फलाहार का तात्पर्य उस दिन आहार में सिर्फ कुछ फलों का सेवन करने से है लेकिन आज इसका अर्थ बदलकर फलाहार में से अपभ्रंश होकर फरियाल बन गया है और इस फरियाल में लोग ठूँस-ठूँसकर साबुदाने की खिचड़ी या भोजन से भी अधिक भारी, गरिष्ठ, चिकना, तला-गुला व मिर्च मसाले युक्त आहार का सेवन करने लगे हैं। उनसे अनुरोध है कि वे उपवास न ही करें तो अच्छा है क्योंकि इससे उपवास जैसे पवित्र शब्द की तो बदनामी होती है, साथ ही साथ शरीर को और अधिक नुक्सान पहुँचता है। उनके इस अविवेकपूर्ण कृत्य से लाभ के बदले उन्हें हानि ही हो रही है।
सप्ताह में एक दिन तो व्रत रखना ही चाहिए। इससे आमाशय, यकृत एवं पाचनतंत्र को विश्राम मिलता है तथा उनकी स्वतः ही सफाई हो जाती है। इस प्रक्रिया से पाचनतंत्र मजबूत हो जाता है तथा व्यक्ति की आंतरिक शक्ति के साथ-साथ उसकी आयु भी बढ़ती है।
भारतीय जीवनचर्या में व्रत एवं उपवास का विशेष महत्त्व है। उनका अनुपालन धार्मिक दृष्टि से किया जाता है परंतु व्रतोपवास करने से शरीर भी स्वस्थ रहता है।
उप यानी समीप और वास यानी रहना। उपवास का आध्यात्मिक अर्थ है – ब्रह्म-परमात्मा के निकट रहना। उपवास का व्यावहारिक अर्थ है – निराहार रहना। निराहार रहने से भगवदभजन और आत्मचिंतन में मदद मिलती है। वृत्ति अंतर्मुख होने लगती है। उपवास पुण्यदायी, आमदोषहर, अग्निप्रदीपक, स्फूर्तिदायक तथा मन को प्रसन्नता देने वाला माना गया है। अतः यथाकाल, यथाविधि उपवास करके धर्म तथा स्वास्थ्य लाभ करना चाहिए।
आहारं पचति शिखी दोषान् आहारवर्जितः।
अर्थात् पेट की अग्नि आहार को पचाती है और उपवास दोषों को पचाता है। उपवास से पाचनशक्ति बढ़ती है। उपवासकाल में शरीर में क्या मल उत्पन्न नहीं होता और जीवनशक्ति को पुराना जमा मल निकालने का अवसर मिलता है। मल-मूत्र विसर्जन सम्यक होने लगता है, शरीर में हलकापन आता है तथा अति निद्रा-तन्द्रा का नाश होता है।
इसी कारण भारतवर्ष के सनातन धर्मावलम्बी प्रायः एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा या पर्वों पर उपवास किया करते हैं, क्योंकि उन दिनों जठराग्नि मंद होती है और सहज ही प्राणों का ऊर्ध्वगमन होता है। शरीर-शोधन के लिए चैत्र, श्रावण एवं भाद्रपद महीने अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। नवरात्रियों के दिनों में भी व्रत करने का बहुत प्रचलन है। यह अनुभव से जाना गया है कि एकादशी से पूर्णिमा तथा एकादशी से अमावस्या तक का काल रोग की उग्रता में भी अधिक सहायक होता है, क्योंकि जैसे सूर्य एवं चन्द्रमा के परिभ्रमण के परिणामस्वरूप समुद्र में उक्त तिथियों के दिनों में विशेष उतार-चढ़ाव होता है, उसी प्रकार उक्त क्रिया के परिणामस्वरूप हमारे शरीर में रोगों की वृद्धि होती है। इसीलिए इन चार तिथियों में उपवास का विशेष महत्त्व है।
शारीरिक विकारः अजीर्ण, उलटी, मंदाग्नि, शरीर में भारीपन, सिरदर्द, बुखार, यकृत-विकार, श्वास रोग, मोटापा, संधिवात, सम्पूर्ण शरीर में सूजन, खाँसी, दस्त लगना, कब्जियत, पेटदर्द, मुँह में छाले, चमड़ी के रोग, गुर्दे के विकार, पक्षाघात आदि व्याधियों में रोग के अनुसार छोटे या बड़े रूप में उपवास रखना लाभकारी होता है।
मानसिक विकारः मन पर भी उपवास का बहुमुखी प्रभाव पड़ता है। उपवास से चित्त की वृत्तियाँ रुकती हैं और मनुष्य जब अपनी चित्त की वृत्तियों को रोकने लग जाता है, तब देह रहते हुए भी सुख-दुःख, हर्ष-विषाद पैदा नहीं होते। उपवास से सात्त्विक भाव बढ़ता है, राजस और तामस भाव का नाश होने लगता है। मनोबल तथा आत्मबल में वृद्धि होने लगती है। अतः अति निद्रा, तन्द्रा, उन्माद(पागलपन), बेचैनी, घबराहट, भयभीत या शोकातुर रहना, मन की दीनता, अप्रसन्नता, दुःख, क्रोध, शोक, ईर्ष्या आदि मानसिक रोगों में औषधोपचार सफल न होने पर उपवास विशेष लाभ देता है। इतना ही नहीं अपितु नियमित उपवास के द्वारा मानसिक विकारों की उत्पत्ति भी रोकी जा सकती है।
उपवास पद्धतिः इन दिनों पूर्ण विश्राम लेना चाहिए। मौन रह सके तो उत्तम। उपवास में हमेशा पहले एक दो दिन ही कठिन लगते हैं। कड़क उपवास एक दो बार ही कठिन ही लगता है फिर तो मन और शरीर, दोनों का औपवासिक स्थिति का अभ्यास हो जाता है उसमें आनंद आने लगता है।
सामान्यतः चार प्रकार के उपवास प्रचलित हैं- निराहार, फलाहार, दुग्धाहार और रूढ़िगत।
निराहारः निराहार व्रत श्रेष्ठ है। यह दो प्रकार का होता है – निर्जल एवं सजल। निर्जल व्रत में पानी का भी सेवन नहीं किया जाता। सजल व्रत में गुनगुना पानी अथवा गुनगुने पानी में नींबू का रस मिलाकर ले सकते हैं। इससे पेट में गैस नहीं बन पाती। ऐसा उपवास दो या तीन दिन रख सकते हैं। अधिक समय तक ऐसा उपवास करना हो तो चिकित्सक की देख-रेख में ही करना चाहिए। शरीर में कहीं भी दर्द हो तो नींबू का सेवन न करें।
फलाहारः इसमें केवल फल अथवा फलों के रस पर ही निर्वाह किया जाता है। उपवास के लिए अनार, अंगूर, सेब और पपीता ठीक हैं। इसके साथ गुनगुने पानी में नींबू का रस मिलाकर ले सकते हैं। नींबू से पाचन-तंत्र की सफाई में सहायता मिलती है। ऐसा उपवास 6-7 दिन से ज्यादा नहीं करना चाहिए।
दुग्धाहारः ऐसे उपवास में दिन में 3 से 8 बार मलाई-विहीन दूध 250 से 500 मि.ली. मात्रा में लिया जाता है। गाय का दूध उत्तम आहार है। मनुष्य को स्वस्थ व दीर्घजीवी बनानेवाला गाय के दूध जैसा दूसरा कोई श्रेष्ठ आहार नहीं है।
गाय का दूध जीर्णज्वर, ग्रहणी, पांडुरोग, यकृत के रोग, प्लीहा के रोग, दाह, हृदयरोग, रक्तपित्त आदि में श्रेष्ठ है। श्वास(दमा), क्षयरोग तथा पुरानी सर्दी के लिए बकरी का दूध उत्तम है।
रूढ़िगतः 24 घंटों में एक बार सादा, हलका, नमक, चीनी व चिकनाईरहित भोजन करें। इस एक बार के भोजन के अतिरिक्त किसी भी पदार्थ का सेवन न करें। केवल सादा पानी अथवा गुनगुने पानी में नींबू ले सकते हैं।
विशेषः जिन लोगों को हमेशा कफ, जुकाम, दमा, सूजन, जोड़ों में दर्द, निम्न रक्तचाप रहता हो वे नींबू का उपयोग न करें।
उपरोक्त उपवासों में केवल एक बात का ही ध्यान रखना आवश्यक है कि मल-मूत्र व पसीने का निष्कासन ठीक तरह से होता रहे, अन्यथा शरीर के अंगों से निकली हुई गंदगी फिर से रक्तप्रवाह में मिल सकती है। आवश्यक हो तो बाद में एनिमा का प्रयोग करें।
लोग उपवास तो कर लेते हैं, लेकिन उपवास छोड़ने के बाद क्या खाना चाहिए इस बात पर ध्यान नहीं देते, इसीलिए अधिक लाभ नहीं होता। जितने दिन उपवास करें, उपवास छोड़ने के बाद उतने ही दिन मूँग का पानी लेना चाहिए तथा उसके दुगने दिन तक मूँग उबालकर लेनी चाहिए। तत्पश्चात खिचड़ी, चावल आदि तथा बाद में सामान्य भोजन करना चाहिए।
उपवास के नाम पर व्रत के दिन आलू, अरबी, साग, केला, सिंघाड़े आदि का हलवा, खीर, पेड़े, बर्फी आदि गरिष्ठ भोजन भरपेट करने से रोगों की वृद्धि होती है। अतः इनका सेवन न करें।
सावधानीः गर्भवती स्त्री, क्षयरोगी, अल्सर व मिर्गी के रोगी को व अति कमजोर व्यक्ति को उपवास नहीं करना चाहिए। मधुमेह के मरीजों को वैद्यकीय सलाह से ही उपवास करने चाहिए।

शास्त्रों में अग्निहोत्री तथा ब्रह्मचारी को अनुपवास्य माना गया है।

अपामार्ग (चिचड़ी) के प्रयोग

अपामार्ग (चिचड़ी) के प्रयोग




"विष पर :- *जानवरों के काटने व सांप, बिच्छू, जहरीले कीड़ों के काटे स्थान पर अपामार्ग के पत्तों का ताजा रस लगाने और पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में 2 बार पिलाने से विष का असर तुरंत घट जाता है और जलन तथा दर्द में आराम मिलता है। 

*
इसके पत्तों की पिसी हुई लुगदी को दंश के स्थान पर पट्टी से बांध देने से सूजन नहीं आती और दर्द दूर हो जाता है। सूजन चढ़ चुकी हो तो शीघ्र ही उतर जाती है

*ततैया, बिच्छू तथा अन्य जहरीले कीड़ों के दंश पर इसके पत्ते का रस लगा देने से
जहर उतर जाता है। काटे स्थान पर बाद में 8-10 पत्तों को पीसकर लुगदी बांध देते हैं। इससे व्रण (घाव) नहीं होता है"

दांतों का दर्द :- *अपामार्ग की शाखा (डाली) से दातुन करने पर कभी-कभी होने वाले तेज दर्द खत्म हो जाते हैं तथा मसूढ़ों से खून का आना बंद हो जाता है।
*अपामार्ग के फूलों की मंजरी को पीसकर नियमित रूप से दांतों पर मलकर मंजन करने से दांत मजबूत हो जाते हैं। पत्तों के रस को दांतों के दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है। तने या जड़ की दातुन करने से भी दांत मजबूत होते हैं एवं मुंह की दुर्गन्ध नष्ट होती है।
*इसके 2-3 पत्तों के रस में रूई का फोया बनाकर दांतों में लगाने से दांतों के दर्द में लाभ पहुंचता है तथा पुरानी से पुरानी गुहा को भरने में मदद करता है।
*अपामार्ग की ताजी जड़ से प्रतिदिन दातून करने से दांत मोती की तरह चमकने लगते हैं। इससे दांतों का दर्द, दांतों का हिलना, मसूढ़ों की कमजोरी तथा मुंह की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।"

प्रसव सुगमता से होना :- *प्रसव में ज्यादा विलम्ब हो रहा हो और असहनीय पीड़ा महसूस हो रही हो, तो रविवार या पुष्य नक्षत्र वाले दिन जड़ सहित उखाड़ी सफेद अपामार्ग की जड़ काले कपड़े में बांधकर प्रसूता के गले में बांधने या कमर में बांधने से शीघ्र प्रसव हो जाता है। प्रसव के तुरंत बाद जड़ शरीर से अलग कर देनी चाहिए, अन्यथा गर्भाशय भी बाहर निकल सकता है। जड़ को पीसकर पेड़ू पर लेप लगाने से भी यही लाभ मिलता है। लाभ होने के बाद लेप पानी से साफ कर दें।

*चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ को स्त्री की योनि में रखने से बच्चा आसानी से पैदा होता है।
*पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग इनमें से किसी एक औषधि की जड़ के तैयार लेप को नाभि, नाभि के नीचे के हिस्से पर लेप करने से प्रसव सुखपूर्वक होता है। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ होने से पहले अपामार्ग के जड़ को एक धागे में बांधकर कमर में बांधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है, परंतु प्रसव होते ही उसे तुरंत हटा लेना चाहिए।
*अपामार्ग की जड़ तथा कलिहारी की जड़ को लेकर एक पोटली मे रखें। फिर स्त्री की कमर से पोटली को बांध दें। प्रसव आसानी से हो जाता है।"

स्वप्नदोष :- अपामार्ग की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर की मात्रा में पीसकर रख लें। 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार 1-2 हफ्ते तक सेवन करें।
मुंह के छाले :- अपामार्ग के पत्तों का रस छालों पर लगाएं।


शीघ्रपतन :- अपामार्ग की जड़ को अच्छी तरह धोकर सुखा लें। इसका चूर्ण बनाकर 2 चम्मच की मात्रा में लेकर 1 चम्मच शहद मिला लें। इसे 1 कप ठंडे दूध के साथ नियमित रूप से कुछ हफ्तों तक सेवन करने से वीर्य बढ़ता है।

संतान प्राप्ति के लिए :- अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्मधारण होता है। दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

मोटापा :- अधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन बढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों को चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी।

कमजोरी :- अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। 1 कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।

सिर में दर्द :- अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।

मलेरिया से बचाव :- अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें, फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का दो-चार दिन सेवन पर्याप्त होता है।

गंजापन :- सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। इसे गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुन: बाल उगने की संभावना होगी।

खुजली :- अपामार्ग के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों में खुजली दूर जाएगी।

आधाशीशी (आधे सिर में दर्द) :- इसके बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से ही आधाशीशी, मस्तक की जड़ता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं।

बहरापन :- अपामार्ग की साफ धोई हुई जड़ का रस निकालकर उसमें बराबर मात्रा में तिल को मिलाकर आग में पकायें। जब तेल मात्र शेष रह जाये तब छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की 2-3 बूंद गर्म करके हर रोज कान में डालने से कान का बहरापन दूर होता है।
आंखों के रोग :- *आंख की फूली में अपामार्ग की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर दो-दो बूंद आंख में डालने से लाभ होता है।
*धुंधला दिखाई देना, आंखों का दर्द, आंखों से पानी बहना, आंखों की लालिमा, फूली, रतौंधी आदि विकारों में इसकी स्वच्छ जड़ को साफ तांबे के बरतन में, थोड़ा-सा सेंधानमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसकर अंजन रूप में लगाने से लाभ होता है।"

खांसी :- *अपामार्ग की जड़ में बलगमी खांसी और दमे को नाश करने का चामत्कारिक गुण हैं। इसके 8-1
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सूखे पत्तों को बीड़ी या हुक्के में रखकर पीने से खांसी में लाभ होता है।
*अपामार्ग के चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम चटाने से बच्चों की श्वासनली तथा छाती में जमा हुआ कफ दूर होकर बच्चों की खांसी दूर होती है।
*खांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो, इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम *अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 ग्राम गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत ही लाभ होता है।
*श्वास रोग की तीव्रता में अपामार्ग की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम व 7 कालीमिर्च का चूर्ण, दोनों को सुबह-शाम ताजे पानी के साथ लेने से बहुत लाभ होता है।

विसूचिका (हैजा) :- *अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को 2 से 3 ग्राम तक दिन में 2-3 बार शीतल पानी के साथ सेवन करने से तुरंत ही विसूचिका नष्ट होती है। अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस निकालकर थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर देने से विसूचिका में अच्छा लाभ मिलता है।
*अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़, 4 कालीमिर्च, 4 तुलसी के पत्तें। इन सबको पीसकर तथा पानी में घोलकर इतनी ही मात्रा में बार-बार पिलाएं।
*कंजा की जड़, अपामार्ग की जड़, नीम की अंतरछाल, गिलोय, कुड़ा की छाल-इन सबको समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें। शीतल होने पर 10-10 ग्राम की मात्रा में 3 दिन सेवन कराने से हैजा का प्रभाव शांत हो जाता है।"

बवासीर :- *अपामार्ग के बीजों को पीसकर उनका चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चावलों के धोवन के साथ देने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।
*अपामार्ग की 6 पत्तियां, कालीमिर्च 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है। 
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पित्तज या कफ युक्त खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल के धोवन के साथ पीस-छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी हैं।
*अपामार्ग की जड़, तना, पत्ता, फल और फूल को मिलाकर काढ़ा बनायें और चावल के धोवन अथवा दूध के साथ पीयें। इससे खूनी बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है।
*अपामार्ग का रस निकालकर या इसके 3 ग्राम बीज का चूर्ण बनाकर चावल के धोवन (पानी) के साथ पीने से बवासीर में खून का निकलना बंद हो जाता है।"

उदर विकार (पेट के रोग) :- *अपामार्ग पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को 20 ग्राम लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें, जब चौथाई शेष रह जाए तब उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर चूर्ण तथा एक ग्राम कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है। 
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पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 50-60 ग्राम भोजन के पूर्व सेवन से पाचन रस में वृद्धि होकर दर्द कम होता है। भोजन के दो से तीन घंटे पश्चात पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का गर्म-गर्म 50-60 ग्राम काढ़ा पीने से अम्लता कम होती है तथा श्लेष्मा का शमन होता है। यकृत पर अच्छा प्रभाव होकर पित्तस्राव उचित मात्रा में होता है, जिस कारण पित्त की पथरी तथा बवासीर में लाभ होता है।"

भस्मक रोग (भूख का बहुत ज्यादा लगना) :- *भस्मक रोग जिसमें बहुत भूख लगती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है परंतु शरीर कमजोर ही बना रहता है, उसमें अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में 2 बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे निश्चित रूप से भस्मक रोग मिट जाता है। 
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अपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बनाकर खिलाने से भस्मक रोग मिट जाता है। यह प्रयोग अधिक से अधिक 3 बार करने से रोग ठीक होता है। इसके 5-10 ग्राम बीजों को खाने से अधिक भूख लगना बंद हो जाती है
*अपामार्ग के बीजों को कूट छानकर, महीन चूर्ण करें तथा बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर, तीन-छ: ग्राम तक सुबह-शाम पानी के साथ प्रयोग करें। इससे भी भस्मक रोग ठीक हो जाता है।"

वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) :- अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।

योनि में दर्द होने पर :- अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पीसकर रस निकालकर रूई को भिगोकर योनि में रखने से योनिशूल और मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।

गर्भधारण करने के लिए :- *अनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव होने के कारण से जो स्त्रियां गर्भधारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें ऋतुस्नान (मासिक-स्राव) के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न अपामार्ग के 10 ग्राम पत्ते, या इसकी 10 ग्राम जड़ को गाय के 125 ग्राम दूध के साथ पीस-छानकर 4 दिन तक सुबह, दोपहर और शाम को पिलाने से स्त्री गर्भधारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक तीन बार करें।
*अपामार्ग की जड़ और लक्ष्मण बूटी 40 ग्राम की मात्रा में बारीक पीस-छानकर रख लेते हैं। इसे गाय के 250 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह के समय मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद से लगभग एक सप्ताह तक सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।"

रक्तप्रदर :- *अपामार्ग के ताजे पत्ते लगभग 10 ग्राम, हरी दूब पांच ग्राम, दोनों को पीसकर, 60 ग्राम पानी में मिलाकर छान लें, तथा गाय के दूध में 20 ग्राम या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह-सुबह 7 दिन तक पिलाने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित करें, इससे निश्चित रूप से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। यदि गर्भाशय में गांठ की वजह से खून का बहना होता हो तो भी गांठ भी इससे घुल जाता है।
*10 ग्राम अपामार्ग के पत्ते, 5 दाने कालीमिर्च, 3 ग्राम गूलर के पत्ते को पीसकर चावलों के धोवन के पानी के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।"

व्रण (घावों) पर :- घावों विशेषकर दूषित घावों में अपामार्ग का रस मलहम के रूप में लगाने से घाव भरने लगता है तथा घाव पकने का भय नहीं रहता है।

संधिशोथ (जोड़ों की सूजन) :- जोड़ों की सूजन एवं दर्द में अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर गर्म करके बांधने से लाभ होता है। संधिशोथ व दूषित फोड़े फुन्सी या गांठ वाली जगह पर पत्ते पीसकर लेप लगाने से गांठ धीरे-धीरे छूट जाती है।

बुखार :- अपामार्ग (चिरचिटा) के 10-20 पत्तों को 5-10 कालीमिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बनाकर 1-1 गोली बुखार आने से 2 घंटे पहले देने से सर्दी से आने वाला बुखार छूटता है।

श्वासनली में सूजन (ब्रोंकाइटिस) :- जीर्ण कफ विकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग (चिरचिटा) की क्षार, पिप्पली, अतीस, कुपील, घी और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में पूर्ण लाभ मिलता है।

दमा या श्वास रोग :- *अपामार्ग के बीजों को चिलम में भरकर इसका धुंआ पीते हैं। इससे श्वास रोग में लाभ मिलता है।
*अपामार्ग का चूर्ण लगभग आधा ग्राम को शहद के साथ भोजन के बाद दोनों समय देने से गले व फेफड़ों में जमा, रुका हुआ कफ निकल जाता है।
*अपामार्ग (चिरचिटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ छूटकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है।
*चिरचिटा की जड़ को किसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाहिए। ध्यान रहे कि जड़ में लोहा नहीं छूना चाहिए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूर्ण लगभग एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएं इससे श्वास रोग दूर हो जाता है।
*अपामार्ग (चिरचिटा) 1 किलो, बेरी की छाल 1 किलो, अरूस के पत्ते 1 किलो, गुड़ दो किलो, जवाखार 50 ग्राम सज्जीखार लगभग 50 ग्राम, नौसादर लगभग 125 ग्राम सभी को पीसकर एक किलो पानी में भरकर पकाते हैं। पांच किलो के लगभग रह जाने पर इसे उतार लेते हैं। डिब्बे में भरकर मुंह बंद करके इसे 15 दिनों के लिए रख देते हैं फिर इसे छानकर सेवन करें। इसे 7 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें। इससे श्वास, दमा रोग नष्ट हो जाता है।