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Feb 26, 2013

त्राटक




त्राटक
एकाग्रता बढ़ाने की यह प्राचीन पद्धति है। पतंजलि ने 5000 वर्ष पूर्व इस पद्धति का विकास किया था। योगी और संत इसका अभ्यास परा-मनोवैज्ञानिक शक्ति के विकास के लिये भी करते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने भी यह सिद्ध कर दिया है। इससे आत्मविश्वास पैदा होता है, योग्यता बढ़ती है, और आपके मस्तिष्क की शक्ति का विकास कई प्रकार से होता है। यह विधि आपकी स्मरण-शक्ति को तीक्ष्ण बनाती है । प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रयोग की गई यह बहुत ही उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पद्धति है।

समय- अच्छा यह है कि इसका अभ्यास सूर्योदय के समय किया जाए। किन्तु यदि अन्य समय में भी इसका अभ्यास करें तो कोई हानि नहीं है।

स्थान- किसी शान्त स्थान में बैठकर अभ्यास करें। जिससे कोई अन्य व्यक्ति आपको बाधा न पहुँचाए।

प्रथम चरण- स्क्रीन पर बने पीले बिंदु को आरामपूर्वक देखें।

द्वितीय चरण - जब भी आप बिन्दु को देखें, हमेशा सोचिये – “मेरे विचार पीत बिन्दु के पीछे जा रहे हैं”। बिना पलकें झपकाए एक टक देखते रहे।इस अभ्यास के मध्य आँखों में पानी आ सकता है, चिन्ता न करें। आँखों को बन्द करें, अभ्यास स्थगित कर दें। यदि पुनः अभ्यास करना चाहें, तो आँखों को धीरे-से खोलें। आप इसे कुछ मिनट के लिये और दोहरा सकते हैं।

अन्त में, आँखों पर ठंडे पानी के छीटे मारकर इन्हें धो लें। एक बात का ध्यान रखें, आपका पेट खाली भी न हो और अधिक भरा भी न हो।

यदि आप चश्में का उपयोग करते हैं तो अभ्यास के समय चश्मा न लगाएँ। यदि आप पीत बिन्दु को नहीं देख पाते हैं तो अपनी आँखें बन्द करें एवं भौंहों के मध्य में चित्त एकाग्र करें । इसे अन्तःत्राटक कहते है । कम-से-कम तीन सप्ताह तक इसका अभ्यास करें। परन्तु, यदि आप इससे अधिक लाभ पाना चाहते हैं तो निरन्तर अपनी सुविधानुसार करते रहें।

त्राटक के लिए ॐ या अन्य चित्र का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
उगते हुए या अस्त होते हुए सूर्य का त्राटक चर्म रोगों और कई अन्य रोगों से छुटकारा दिलाता है।
जिनकी नजर कमजोर है या जिनके चश्मे का नंबर दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। उन्हें अपनी आँखों की रोशनी बढ़ाने के लिए योग में त्राटक की सलाह दी जाती है, जिन्हें हाई पावर का चश्मा लगा हो, उन्हें यहसप्ताह में तीन बार जरूर करना चाहिए। जिनकी नजर कमजोर नहीं है और चाहते हैं कि उनकी नजरें कमजोर न हो। उन्हें यह हफ्ते में एक बार आवश्यक रूप से करना चाहिए।

मिश्र में पिरामिड

 


सब तीर्थ बहुत ख्‍याल से बनाये गए है। अब जै कि मिश्र में पिरामिड है। वे मिश्र में पुरानी खो गई सभ्‍यता के तीर्थ है। और एक बड़ी मजे की बात है कि इन पिरामिड के अंदर….। क्‍योंकि पिरामिड जब बने तब, वैज्ञानिको का खयाल है, उस काल में इलैक्ट्रिसिटी हो नहीं सकती।

आदमी के पास बिजली नहीं हो सकती। बिजली का आविष्‍कार उस वक्‍त कहां, कोई दस हजार वर्ष पुराना पिरामिड है, कई बीस हजार वर्ष पुराना पिरामिड है। तब बिजली का तो कोई उपाय नहीं था। और इनके अंदर इतना अँधेरा कि उस अंधेरे में जाने का कोई उपाय नहीं है। अनुमान यह लगाया जा सकता है कि लोग मशाल ले जाते हों, या दीये ले जाते हो। लेकिन धुएँ का एक भी निशान नहीं है इतने पिरामिड में कहीं । इसलिए बड़ी मुश्‍किल है। एक छोटा सा दीया घर में जलाएगें तो पता चल जाता है। अगर लोग मशालें भीतर ले गए हों तो इन पत्‍थरों पर कहीं न कहीं न कहीं धुएँ के निशान तो होने चाहिए।

रास्‍ते इतने लंबे, इतने मोड़ वाले है, और गहन अंधकार है। तो दो ही उपाय हैं, या तो हम मानें कि बिजली रही होगी लेकिन बिजली की किसी तरह की फ़िटिंग का कहीं कोई निशान नहीं है। बिजली पहुंचाने का कुछ तो इंतजाम होना चाहिए। दूसरा आदमी सोच सकता है—तेल, धी के दीयों या मशालों का। पर उन सबसे किसी न किसी तरह के निशान पड़ते है, जो कहीं भी नहीं है। फिर उनके भीतर आदमी कैसे जाता रहा है, कोई कहं—नहीं जाता रहा होगा, तो इतने रास्‍ते बनाने की कोई जरूरत नहीं है। पर सीढ़ियाँ है, रास्‍ते है, द्वार है, दरवाजे है, अंदर चलने फिरने का बड़ा इंतजाम हे। एक-एक पिरामिड में बहुत से लोग प्रवेश कर सकते है, बैठने के स्‍थान है अंदर। वह सब किस लिए होंगे। यह पहेली बनी रह गई हे। और साफ नहीं हो पाएगी कभी भी। क्‍योंकि पिरामिड की समझ नहीं है साफ, कि ये किस लिए बनाए गए है? लोग समझते है, किसी सम्राट का फितूर होगा, कुछ और होगा।

लेकिन ये तीर्थ है। और इन पिरामिड में प्रवेश का सूत्र ही यही है, कि जब कोई अंतर अग्‍नि पर ठीक से प्रयोग करता है तो उसका शरीर आभा फेंकने लगता है। और तब वह अंधेरे में प्रवेश कर सकता है। तो न तो यहां बिजली उपयोग की गई है, न यहां कभी दीया उपयोग किया गया है। न मशाल का उपयोग किया गया है। सिर्फ शरीर की दीप्‍ति उपयोग कि गई थी। लेकिन वह शरीर की दीप्ति अग्‍नि के विशेष प्रयोग से ही होती है। इनमें प्रवेश ही वही करेगा। जो इस अंधकार में मजे से चल सके। वह उसकी कसौटी भी है। परीक्षा भी है, और उसको प्रवेश का हक भी है। वह हकदार भी है।

जब पहली बार 1905 या 10 में एक-एक पिरामिड खोजा जो रहा था तो जो वैज्ञानिक उस पर काम कर रहा था उसका सहयोगी अचानक खो गया। बहुत तलाश की गई कुछ पता न चला। यहीं डर हुआ कि वह किसी गलियारे में अंदर है। बहुत प्रकाश ओ सर्च लाईट ले जाकर खोजा,वह कोई चौबीस घंटे खोया रहा। चौबीस घंटे बाद, कोई रात दो बजे वह भागा हुआ आया, करीब पागल हालत में। उसने कहा, में टटोल कर अंदर जा रहा था। की कहीं मुझे दरवाजा मालूम पड़ा, मैं अंदर गया और फिर ऐसा लगा कि पीछे कोई चीज बंद हो गई। मैंने लौटकर देखा तो दरवाजा तो बंद हो चुका था। जब मैं आया तब खुला था। पर दरवाजा भी नहीं था कोई, सिर्फ खुला था। फिर इसके सिवाय कोई उपाय नहीं था कि में आगे चला जाऊँ, और मैं ऐसी अद्भुत चीजें देखकर लोटा हूं जिसका कोई हिसाब लगाना मुश्‍किल है।

वह इतनी देर गुम रहा, वह पक्‍का है, वह इतना परेशान लोटा है, पक्‍का है, लेकिन जो बातें वह कह रहा है वह भरोसे की नहीं है। कि ऐसी चीजें होंगी। बहुत खोजबीन की गई उस दरवाजे की,लेकिन दरवाजा दुबारा नहीं मिल सका। न तो वह यह बता पाया कि कहां से प्रवेश किया, न यह बता पाया कि वह कहां से निकला। तो समझा गया कि यहाँ तो वह बेहोश हो गया, या उसने कहीं सपना देखा। यहाँ वह कहीं सो गया। और कुछ समझने का चारा नहीं था।

लेकिन जो चीजें उसने कहीं थी वह सब नोट कर ली गयीं। उस साइकिक अवस्‍था में, स्वप्नवत् अवस्‍था में जो-जो उसने वहां देखीं। फिर खुदाई में कुछ पुस्‍तकें मिलीं जिनमें उन चीजों का वर्णन भी मिला, तब बहुत मुसीबत हो गई। उस वर्णन से लगा कि वह चीजें किसी कमरे में वहां बंद है, लेकिन उस कमरे का द्वार किसी विशेष मनोदशा में खुलता है। अब इस बात की संभावना है कि वह ऐ सांयोगिक घटना थी कि इसकी मनोदशा वैसी रही हो। क्‍योंकि इसे तो कुछ पता नहीं था। लेकिन द्वार खुला अवश्‍य।

तो जिन गुप्‍त तीर्थों की मैं बात कर रहा हूं उनके द्वार है, उन तक पहुंचने की व्‍यवस्‍थाएं है। लेकिन उस सबके आंतरिक सूत्र है। इन तीर्थों में ऐसा सारा इंतजाम है कि जिनका उपयोग करके चेतना गतिमान हो सके। जैसे कि पिरामिड के सारे कमरे, उनका आयतन एक हिसाब में हे। कभी आपने ख्‍याल किया, कहीं छप्‍पर बहुत नीचा हो, यद्यपि आपके सिर को नहीं छू रहा हो, और यही छप्‍पर थोड़ा सरक कर नीचे आने लगे। हमको दबाए गा नहीं हम से अभी दो फिट ऊँचा है, लेकिन हमें भास होगा कि हमारे भीतर कोई चीज दबने लगी।

जब नीचे छप्‍पर में आप प्रवेश करते है, तो आपके भीतर कोई चीज सिकुड़ती है। और आप जब ऐ बड़े छप्‍पर के नीचे प्रवेश करते है तो आपके भीतर कोई चीज फैलती हे। कमरे का आयतन इस ढंग से निर्मित किया जा सकता है , ठीक उतना किया जा सकता है जितने में आपको ध्यान आसान हो जाए। सरलतम हो जाए ध्‍यान आपको,उतना आयतन निर्मित किया जा सकता है। उतना आयतन खोज लिया गया था। उस आयतन का उपयोग किया जा सकता है। आपके भी सिकुडने ओर फैलने के लिए। उस कमरे के भीतर रंग, उस कमरे के भीतर गंध, उस कमरे के भीतर ध्‍वनि—इस सबका इंतजाम किया जा सकता है। जो आपके ध्‍यान के लिए सहयोगी हो जाए।

सब तीर्थों का अपना संगीत था। सच तो यह है कि सब संगीत, तीर्थों में पैदा हुए। और सब संगीत साधकों ने पैदा किए। सब संगीत किसी दिन मंदिर में पैदा हुए,सब नृत्‍य किसी दिन मंदिर में पैदा हुए। सब सुगंध पहली दफा मंदिर में उपयोग की गई। एक दफा जब यह बात पता चल गई कि संगीत के माध्‍यम से कोई व्‍यक्‍ति परमात्‍मा की तरफ जा सकता है। तो संगीत के माघ्‍यम से परमात्‍मा के विपरीत भी जा सकता है, यह भी ख्‍याल में आ गया। और तब बाद में दूसरे संगीत खोजें गए। किसी गंध से जब कि परमात्‍मा की तरफ जाया जा सकता है। तो विपरीत किसी गंध से कामुकता की तरफ जाया जा सकता है। गंधें भी खोज ली गई। किसी विशेष आयतन में ध्‍यानस्‍थ हो सकता है तो किसी विशेष आयतन में ध्‍यान से रोका जा सकता है। वह भी खोज लिया गया।

जैसे अभी चीन में ब्ररेन वाश के लिए जहां कैदियों को खड़ा करते है, उस कोठरी का एक विशेष आयतन है। उस विशेष आयतन में ही खड़ा करते है। और उन्‍होंने अनुभव किया कि उस आयतन में कभी-बेशी करने से ब्ररेन वाश करने में मुसीबत पड़ती है। एक निश्चित आयतन , हजारों प्रयोग करके तय हो गया कि इतनी ऊंची, इतनी चौड़ी इतनी आयतन की कोठरी में कैदियों को खड़ा कर दो तो कितनी देर में डिटीरीओरेशन हो जाएगा। कितनी देर में खो देगा वह अपने दिमाग को। फिर उसमें एक विशेष ध्‍वनि भी पैदा करो तो और जल्‍दी खो देगा। खाज जगह उसके मस्‍तिष्‍क पर हेम रिंग करो तो और जल्दी खो देगा।

वे कुछ नहीं करते, एक मटका ऊपर रख देते है और एक-एक बूंद पानी उसकी खोपड़ी पर टपकता रहता है। उसकी अपनी लय है रिदिम है…..बस, टप-टप वह पानी सर पर टपकता रहता है। चौबीस घंटे वह आदमी खड़ा है, बैठ भी नहीं सकता, हिल भी आयतन इतना है कोठरी का लेट भी नहीं सकता। वह खड़ा है। मस्‍तिष्‍क में पानी टप-टप गिरता जा रहा है। आधा घंटा पूरे होते-होते तीस मिनट पूरे होते-होते सिवाय टिप-टिप की आवाज के कुछ नहीं बचता। आवाज इतनी जोर से मालूम होने लगेगी जैसे पहाड़ गीर रहा है। अकेली आवाज रह जाएगी उस आयतन में और चौबीस घंटे में वह आपके दिमाग को अस्‍त–व्‍यस्‍त कर देगी। चौबीस घंटे के बाद जब आपको बाहर निकालेंगे तो आप वहीं आदमी नहीं होगें। उन्‍होंने आपको सब तरह से तोड़ दिया है।

ये सारे के सारे प्रयोग पहली दफा तीर्थों में खोजें गए, मंदिरों में खोजें गए। जहां से आदमी को सहायता पहुँचाई जा सके। मंदिर के घंटे है, मंदिर की ध्वनियों है, धूप है, गंध है, फूल है, सब नियोजित था। और एक सातत्य रखने की कोशिश की गई। उसकी कंटीन्यु टी न टूटे, बीच में कहीं कोई व्‍यवधान न पड़े अहर्निश धारा उसकी जारी रखी जाती रही। जैसे सुबह इतने वक्‍त आरती होगी, इतनी देर चलेगी। इस मंत्र के साथ होगी। दोपहर आरती होगी। इतनी देर चलेगी। इस मंत्र के साथ होगी। सांझ आरती होगी: दोपहर आरती होगी, इतनी देर चलेगी,यह क्रम ध्‍वनियों का उस कोठरी में गूंजता रहेगा। पहला क्रम टूटे उसके पहले दूसरा री प्लेस हो जाए। यह हजारों साल तक चलेगा।

जैसा मैंने कहा—पानी के अगर लाख दफा पुन: पुन: पानी बनाया जाए भाप बनाकर, तो जैसे उसकी क्‍वालिटी बदलती है अल्‍केमी के हिसाब से उसी प्रकार एक ध्‍वनि को लाखों दफा पैदा किया जाए एक कमरे में तो उस कमरे की पूरी तरंग, पूरी गुणवत्‍ता बदल जाती है। उसकी पूरी क्वालिटी बदल जाती है। आस के बीच व्‍यक्‍ति को खड़ा कर देना उसके पास खड़ा कर देना,उसके रूपांतरित होने के लिए आसानी जुटा देगा। और चूंकि हमारा सारा का सारा व्‍यक्‍तित्व को बदलने लगते है। और आदमी इतना बाहर है कि पहले बाहर से ही फर्क उसको आसान पड़ते है, भीतर के फर्क तो पहले बहुत कठिन पड़ते है। दूसरा उपाय था पदार्थ के द्वारा सारी ऐसी व्‍यवस्‍था दे देना कि आपके शरीर को जो-जो सहयोगी हो, वह हो जाए।
ओशो
हिंदी लेखन
स्वामी आनंद प्रसाद

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

Feb 24, 2013

एक समय की बात है। चाणक्य अपमान भुला नहीं पा रहे थे। शिखा की खुली गांठ हर पल एहसास कराती कि धनानंद के राज्य को शीघ्राति शीघ्र नष्ट करना है। चंद्रगुप्त के रूप में एक ऐसा होनहार शिष्य उन्हें मिला था जिसको उन्होंने बचपन से ही मनोयोग पूर्वक तैयार किया था।

अगर चाणक्य प्रकांड विद्वान थे तो चंद्रगुप्त भी असाधारण और अद्भुत शिष्य था। चाणक्य बदले की आग से इतना भर चुके थे कि उनका विवेक भी कई बार ठीक से काम नहीं करता था।

चंद्रगुप्त ने लगभग पांच हजार घोड़ों की छोटी-सी सेना बना ली थी। सेना लेकर उन्होंने एक दिन भोर के समय ही मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। चाणक्य, धनानंद की सेना और किलेबंदी का ठीक आकलन नहीं कर पाए और दोपहर से पहले ही धनानंद की सेना ने चंद्रगुप्त और उसके सहयोगियों को बुरी तरह मारा और खदेड़ दिया।

चंद्रगुप्त बड़ी मुश्किल से जान बचाने में सफल हुए। चाणक्य भी एक घर में आकर छुप गए। वह रसोई के साथ ही कुछ मन अनाज रखने के लिए बने मिट्टी के निर्माण के पीछे छुपकर खड़े थे। पास ही चौके में एक दादी अपने पोते को खाना खिला रही थी।

दादी ने उस रोज खिचड़ी बनाई थी। खिचड़ी गरमा-गरम थी। दादी ने खिचड़ी के बीच में छेद करके गरमा-गरम घी भी डाल दिया था और घड़े से पानी भरने गई थी। थोड़ी ही देर के बाद बच्चा जोर से चिल्ला रहा था और कह रहा था- जल गया, जल गया।

दादी ने आकर देखा तो पाया कि बच्चे ने गरमा-गरम खिचड़ी के बीच में अंगुलियां डाल दी थीं।

दादी बोली- 'तू चाणक्य की तरह मूर्ख है, अरे गरम खिचड़ी का स्वाद लेना हो तो उसे पहले कोनों से खाया जाता है और तूने मूर्खों की तरह बीच में ही हाथ डाल दिया और अब रो रहा है...।'

चाणक्य बाहर निकल आए और बुढ़िया के पांव छूए और बोले- आप सही कहती हैं कि मैं मूर्ख ही था तभी राज्य की राजधानी पर आक्रमण कर दिया और आज हम सबको जान के लाले पड़े हुए हैं।

चाणक्य ने उसके बाद मगध को चारों तरफ से धीरे-धीरे कमजोर करना शुरू किया और एक दिन चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाने में सफल हुए।

दंभी व्यक्ति





एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’

नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’
दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’
थोड़ी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?”
नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा।

दंभी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“
मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया।
नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’

सवारी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’
“फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया।
मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए।

शिवरात्रि अथवा महाशिवरात्रि

शिवरात्रि अथवा महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का बहुत महत्त्व माना गया है और इस पर्व पर रुद्राभिषेक करने से सभी रोग और दोष समाप्त हो जाते हैं।

शिवरात्रि से आशय

शिवरात्रि वह रात्रि है जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का महत्त्व है। महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परमसुख, शान्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
शिव भक्तों का महापर्व

महाशिवरात्रि का पर्व शिवभक्तों द्वारा अत्यंत श्रद्धा व भक्ति से मनाया जाता है। यह त्योहार हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चौदहवीं तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह दिन फ़रवरी या मार्च में आता है। शिवरात्रि शिव भक्तों के लिए बहुत शुभ है। भक्तगण विशेष पूजा आयोजित करते हैं, विशेष ध्यान व नियमों का पालन करते हैं । इस विशेष दिन मंदिर शिव भक्तों से भरे रहते हैं, वे शिव के चरणों में प्रणाम करने को आतुर रहते हैं। मन्दिरों की सजावट देखते ही बनती है। हज़ारों भक्त इस दिन कावड़ में गंगा जल लाकर भगवान शिव को स्नान कराते हैं।

महादेव शिव के पूजन का महापर्व
भारतीय त्रिमूर्ति के अनुसार भगवान शिव प्रलय के प्रतीक हैं। त्रिर्मूति के दो और भगवान हैं, विष्णु तथा ब्रह्मा। शिव का चित्रांकन एक क्रुद्ध भाव द्वारा किया जाता है। ऐसा प्रतीकात्मक व्यक्ति भाव, जिसके मस्तक पर तीसरी आंख है; जो जैसे ही खुलती है, अग्नि का प्रवाह बहना प्रारम्भ हो जाता है। पुराणों के अनुसार जब कामदेव ने शिव के ध्यान को तोडने की चेष्टा की थी, तो शिव का तीसरा नेत्र खोलने से कामदेव जलकर राख हो गया था।

गर्तेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा
Garteshwar Mahadev Temple, Mathura
पौराणिक कथाएँ

महाशिवरात्रि के महत्त्व से संबंधित तीन कथाएँ इस पर्व से जुड़ी हैं:-

प्रथम कथा
एक बार मां पार्वती ने शिव से पूछा कि कौन-सा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्ध्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत-उपवास से।

द्वितीय कथा
इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान आकार प्रकट हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार – श्रीब्रह्मा व श्रीविष्णु को अपने अच्छे कर्मों का अभिमान हो गया। इससे दोनों में संघर्ष छिड़ गया। अपना महात्म्य व श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दोनों आमादा हो उठे। तब शिव ने हस्तक्षेप करने का निश्चय किया, चूंकि वे इन दोनों देवताओं को यह आभास व विश्वास दिलाना चाहते थे कि जीवन भौतिक आकार-प्रकार से कहीं अधिक है। शिव एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। विष्णु और ब्रह्मा ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया। विष्णु नीचे पाताल की ओर इसे जानने गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ ऊपर गए। वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके। वे वापस आए, अब तक उनक क्रोध भी शांत हो चुका था तथा उन्हें भौतिक आकार की सीमाओं का ज्ञान मिल गया था। जब उन्होंने अपने अहम् को समर्पित कर दिया, तब शिव प्रकट हुए तथा सभी विषय वस्तुओं को पुनर्स्थापित किया। शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को ही हुआ था। इसलिए इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।

तृतीय कथा
इसी दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। भगवान शिव का ताण्डव और भगवती का लास्यनृत्य दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है, अन्यथा ताण्डव नृत्य से सृष्टि खण्ड- खण्ड हो जाये। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन है।

महान अनुष्ठानों का दिन

शिव की जीवन शैली के अनुरूप, यह दिन संयम से मनाया जाता है। घरों में यह त्योहार संतुलित व मर्यादित रूप में मनाया जाता है। पंडित व पुरोहित शिवमंदिर में एकत्रित हो बड़े-बड़े अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। कुछ मुख्य अनुष्ठान है- रुद्राभिषेक, रुद्र महायज्ञ, रुद्र अष्टाध्यायी का पाठ, हवन, पूजन तथा बहुत प्रकार की अर्पण-अर्चना करना। इन्हें फूलों व शिव के एक हज़ार नामों के उच्चारण के साथ किया जाता है। इस धार्मिक कृत्य को लक्षार्चना या कोटि अर्चना कहा गया है। इन अर्चनाओं को उनकी गिनती के अनुसार किया जाता है। जैसे –

लक्ष: लाख बार
कोटि: एक करोड बार ।
ये पूजाएं देर दोपहर तक तथा पुन: रात्रि तक चलती हैं। इस दिन उपवास किये जाते हैं, जब उनकी नितांत आवश्यकता हो।

शिवरात्रि कैसे मनाएं?

रात्रि में उपवास करें। दिन में केवल फल और दूध पियें।
भगवान शिव की विस्तृत पूजा करें, रुद्राभिषेक करें तथा शिव के मन्त्र
देव-देव महादेव नीलकंठ नमोवस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तब॥
तब प्रसादाद् देवेश निर्विघ्न भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडांकुर्वन्तु नैव हि॥

का यथा शक्ति पाठ करें और शिव महिमा से युक्त भजन गांए।

‘ऊँ नम: शिवाय’ मन्त्र का उच्चारण जितनी बार हो सके, करें तथा मात्र शिवमूर्ति और भगवान शिव की लीलाओं का चिंतन करें।
रात्रि में चारों पहरों की पूजा में अभिषेक जल में पहले पहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घी और चौथे में शहद को मुख्यत: शामिल करना चाहिए।
शिवरात्रि या शिवचौदस नाम क्यों?

भूतेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा
Bhuteshwar Mahadev Temple, Mathura
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की महादशा यानी आधी रात के वक़्त भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे, ऐसा ईशान संहिता में कहा गया है। इसीलिए सामान्य जनों के द्वारा पूजनीय रूप में भगवान शिव के प्राकट्य समय यानी आधी रात में जब चौदस हो उसी दिन यह व्रत किया जाता है।

बेल (बिल्व) पत्र का महत्त्व

बेल (बिल्व) के पत्ते श्रीशिव को अत्यंत प्रिय हैं। शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है। एक बार उसे जंगल में देर हो गयी, तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची- वह सारी रात एक-एक कर पत्ता तोडकर नीचे फेंकता जाएगा। कथानुसार, बेलवृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख, शिव प्रसन्न हो उठे। जबकि शिकारी को अपने शुभ कृत्य का आभास ही नहीं था। शिव ने उसे उसकी इच्छापूर्ति का आशीर्वाद दिया। यह कथा न केवल यह बताती है कि शिव को कितनी आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है, बल्कि यह भी कि इस दिन शिव पूजन में बेल पत्र का कितना महत्त्व है।

शिवलिंग क्या है?

वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्माण्ड का अक्स ही लिंग है। इसीलिए इसका आदि और अन्त भी साधारण जनों की क्या बिसात, देवताओं के लिए भी अज्ञात है। सौरमण्डल के ग्रहों के घूमने की कक्षा ही शिव तन पर लिपटे सांप हैं। मुण्डकोपनिषद के कथानुसार सूर्य, चांद और अग्नि ही आपके तीन नेत्र हैं। बादलों के झुरमुट जटाएं, आकाश जल ही सिर पर स्थित गंगा और सारा ब्रह्माण्ड ही आपका शरीर है। शिव कभी गर्मी के आसमान (शून्य) की तरह कर्पूर गौर या चांदी की तरह दमकते, कभी सर्दी के आसमान की तरह मटमैले होने से राख भभूत लिपटे तन वाले हैं। यानी शिव सीधे-सीधे ब्रह्माण्ड या अनन्त प्रकृति की ही साक्षात मूर्ति हैं। मानवीकरण में वायु प्राण, दस दिशाएँ, पंचमुख महादेव के दस कान, हृदय सारा विश्व, सूर्य नाभि या केन्द्र और अमृत यानी जलयुक्त कमण्डलु हाथ में रहता है। लिंग शब्द का अर्थ चिह्न, निशानी या प्रतीक है। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है । धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया है।

शिवलिंग मंदिरों में बाहर क्यों?
जनसाधारण के देवता होने से, सबके लिए सदा गम्य या पहुँच में रहे, ऐसा मानकर ही यह स्थान तय किया गया है। ये अकेले देव हैं जो गर्भगृह में भक्तों को दूर से ही दर्शन देते हैं। इन्हें तो बच्चे-बूढे-जवान जो भी जाए छूकर, गले मिलकर या फिर पैरों में पड़कर अपना दुखड़ा सुना हल्के हो सकते हैं। भोग लगाने अर्पण करने के लिए कुछ न हो तो पत्ता-फूल, या अंजलि भर जल चढ़ाकर भी खुश किया जा सकता है।

जल क्यों चढ़ता है?
रचना या निर्माण का पहला पग बोना, सींचना या उडेलना हैं। बीज बोने के लिए गर्मी का ताप और जल की नमी की एक साथ जरुरत होती है। अत: आदिदेव शिव पर जीवन की आदिमूर्ति या पहली रचना, जल चढ़ाना ही नहीं लगातार अभिषेक करना अधिक महत्त्वपूर्ण होता जाता है। सृष्टि स्थिति संहार लगातार, बार–बार होते ही रहना प्रकृति का नियम है। अभिषेक का बहता जल चलती, जीती-जागती दुनिया का प्रतीक है।

जब मंदिर न जा सकें
लिंग पदार्थ

कामना
मिट्टी

सब कामनाएँ
कलावा

विरोधशमन
कपूर,कुंकुम

सुख

फूल

राज्य
आटा

वंशवृद्धि
गुड़, चीनी

स्वास्थ्य
फल

संतान
अनाज

बरकत
दूब घास

अपमृत्यु बचाव
तिल की पीठी

ख़ास इच्छा
लिंग पुराण आदि ग्रन्थों में कहा गया है कि घर पर लकड़ी, धातु, मिट्टी, रेत, पारद, स्फटिक आदि के बने लिंग पर अर्चना की जा सकती है। अथवा साबुत बेल फल, आंवला, नारियल, सुपारी या आटे या मिट्टी की गोल पर घी चुपडकर अभिषेक पूजा कर सकते हैं। विशेष मनोरथ के तालिका दे रहे हैं कपड़े बांध कर या लपेटकर इनसे लिंग बना सकते हैं।

शिव महादेव क्यों हैं?

बड़ा या महान बनने के लिए त्याग, तपस्या, धीरज, उदारता और सहनशक्ति की दरकार होती है। विष को अपने भीतर ही सहेजकर आश्रितों के लिए अमृत देने वाले होने से और विरोधों, विषमताओं को भी संतुलित रखते हुए एक परिवार बनाए रखने से शिव महादेव हैं। आपके समीप पार्वती का शेर, आपका बैल, शरीर के सांप, कुमार कार्तिकेय का मोर, गणेशजी का मूषक, विष की अग्नि और गंगा का जल, कभी पिनाकी धनुर्धर वीर तो कभी नरमुण्डधर कपाली, कहीं अर्धनारीश्वर तो कहीं महाकाली के पैरों में लुण्ठित, कभी मृड यानी सर्वधनी तो कभी दिगम्बर, निमार्णदेव भव और संहारदेव रुद्र, कभी भूतनाथ कभी विश्वनाथ आदि सब विरोधी बातों का जिनके प्रताप से एक जगह पावन संगम होता हो, वे ही तो देवों के देव महादेव हो सकते हैं।

बेलपत्र, भाँग, धतूरा का चढ़ावा

गोकरन नाथ महादेव, मथुरा
Gokaran Nath Mahadeva, Mathura
शब्द रूप में ओंकार होने से ‘अ’ यानी सत्वगुण या निर्माण रचना या सृष्टि, ‘उ’ रूप में स्थित रजोगुण या पालन करना और ‘म’ यानी तमोगुण रूप में संहार, समापन या उपसंहार करके फिर नूतन निर्माण का सूत्रपात करने जैसे जेनरेशन, आपरेशन और डिस्टृक्शन, या सृष्टि स्थिति संहार की एक साथ समन्वित शक्ति सम्पन्नता के प्रतीक रूप में तीन दलों वाले, त्रिगुणाकार बेलपत्र और विष के प्रतिनिधि रूप में भांग धतूरा आदि अर्पण किया जाता है।

शनि को शिवपुत्र क्यों कहतें हैं?

संस्कृत शब्द शनि का अर्थ जीवन या जल और अशनि का अर्थ आसमानी बिजली या आग है। शनि की पूजा के वैदिक मन्त्र में वास्तव में गैस, द्रव और ठोस रूप में जल की तीनों अवस्थाओं की अनुकूलता की ही प्रार्थना है। खुद मूल रूप में जल होने से शनि का मानवीकरण पुराणों में शिवपुत्र या शिवदास के रूप में किया गया है। इसीलिए कहा जाता है कि शिव और शनि दोनों ही खुश हों तो निहाल करें और नाराज़ हों तो बेहाल करते हैं। सूर्य जीवन का आधार, सृष्टि स्थिति का मूल, वर्षा का कारण होने से पुराणों में खुद शिव या विष्णु का रूप माना गया है। निर्देश है कि शिव या विष्णु की पूजा, सूर्य पूजा के बिना अधूरी है। खुद सूर्य जलकारक दायक पोषक होने और शनि स्वयं जल रूप होने इस बात में कोई विरोध नहीं हैं।

शिव को पंचमुख क्यों कहते हैं?

पांच तत्त्व ही पांच मुख हैं। योगशास्त्र में पंचतत्वों के रंग लाल, पीला, सफ़ेद, सांवला व काला बताए गए हैं। इनके नाम भी सद्योजात (जल), वामदेव (वायु), अघोर (आकाश), तत्पुरुष (अग्नि), ईशान (पृथ्वी) हैं। प्रकृति का मानवीकरण ही पंचमुख होने का आधार है।

रामायण की किन चौपाइयों से दूर होती हैं घर या काम की कौन सी परेशानियां

रामायण की किन चौपाइयों से दूर होती हैं घर या काम की कौन सी परेशानियां?

1. सिरदर्द या दिमाग की कोई भी परेशानी दूर करने के लिए-

हनुमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।

2. नौकरी पाने के लिए -

बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।

धन-दौलत, सम्पत्ति पाने के लिए -

जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।

3. पुत्र पाने के लिए -

प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।

सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।

4. शादी के लिए -

तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि संवारि कै।

मांडवी श्रुतकीरति उर्मिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥

5. खोई वस्तु या व्यक्ति पाने के लिए -

गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।

6. पढ़ाई या परीक्षा में कामयाबी के लिए-

जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥

मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥

7. जहर उतारने के लिए -

नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।

8. नजर उतारने के लिए -

स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।

9. हनुमानजी की कृपा के लिए -

सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।

10. यज्ञोपवीत पहनने व उसकी पवित्रता के लिए -

जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।

पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।

11. सफल व कुशल यात्रा के लिए -

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥

12. शत्रुता मिटाने के लिए -

बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥

13. सभी तरह के संकटनाश या भूत बाधा दूर करने के लिए -

प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।

जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥

14. बीमारियां व अशान्ति दूर करने के लिए -

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥

15. अकाल मृत्यु भय व संकट दूर करने के लिए -

नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।

लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि

शिव को प्रसन्न करने के लिए

शिव को प्रसन्न करने के लिए डमरू जरूर बजाएं और बम बम भोले बम बम भोले कहने से कृपा मिलेगी
बिल्व पत्र व बिल्व फल चढाने से धन की प्राप्ति के साथ साथ शिव को सरलता से रिझाया जा सकता है
शिवरात्रि पर धतुरा,भांग,और आक चढ़ना शिव की पूरी साधना करने के बराबर फलदायी होता हैं
शिलिंग को प्रतिष्ठित कर करें शिवलिंग का पूजन तो जीवन सफल हो जाता है
ज्ञान एवं विद्वत्ता की इच्छा वाले साधकों को स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
गृहस्थ सुख चाहने वालों को पत्थर के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
मुकद्दमों एवं युद्ध में प्रतियोगिताओं में सफलता पाने वालों को अष्ट धातु शिवलिंग का पूजन करना चाहिए
सब सुख चाहने वाले को सोने चांदी अथवा रत्नों से बना शिवलिंग पूजना चाहिए
सबसे स्रेष्ठ तो केवल पारे का शिवलिंग होता है जिसकी पूजा से जन्म मरण से मुक्ति प्राप्त होती है शिव की अमोघ कृपा बरसती है
शिवरात्री के दिन शिव मंदिर के दर्शन,कैलाश मानसरोवर के दर्शन,शिवभक्तों के दर्शन अथवा सुमिरम से शिव भोले बरदान देते हैं
शिवरात्रि को शिवपुराण की पूजा और पाठ से शिव प्रसन्न हो कर अपने भक्त के साथ साथ रहने लगते हैं
इस पुराण में 24,000 श्लोक है तथा इसके क्रमश: 6 खण्ड है
पहला खंड -विद्येश्वर संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से समस्त भयों और अपशकुनो का नाश होता है
दूसरा खंड-रुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से अकाल मृत्यु टलती है और ज्ञान प्राप्त होता है
तीसरा खंड-कोटिरुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से भौतिक सुखों के साथ साथ अद्यात्म का ज्ञान भी मिलता है
चौथा खंड-उमा संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से शक्ति सिद्धियाँ तो मिलती ही हैं मायाजाल से बक्त मुक्त हो जाता है
पांचवा खंड-कैलास संहिता-जिसके पाठ से साधक मानव योनी से उपार हो कर शिव का गण हो जाता है तीनो लोकों में उसे निर्भयता प्राप्त होती है
छठा खंड-वायु संहिता-जिसके पाठ से धार अर्थ काम सहित मोक्षः मिलता है साधक शिव में समाहित हो पूरण हो जाता है
शिव को स्तुति प्रिय है अतः स्तुतियों से करें शिव आराधना
शिव सहस्त्रनामावली का पाठ करें
शिव की सबसे प्रचलित स्तुति है

ॐ कर्पूर गौरं करुणावतारं
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं
सदा वसन्तं हृदयारवृन्दे
भवं भवानी सहितं नमामि !!

देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व सब शिव को गा कर प्रसन्न करते है
रुद्राष्टक,पंचाक्षर,मानस,द्वादश ज्योतिर्लिंग जैसे स्तोत्रों का पाठ करने से अद्भुत कृपा प्राप्त होगी
सस्कृत स्तोत्र शीग्र फलदायी होते हैं.

डेंगू बुखार का इलाज -गिलोय


कमड़ तोड़ती मंहगाई के समय मे आम आदमी का कुछ तो पैसा बचाये ! जरूर शेयर करे !
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डेंगू बुखार का इलाज !
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गिलोय बेल की डंडी ले ! डंडी के छोटे टुकड़े करे !
2 गिलास पानी मे उबाले ! जब पानी आधा रह जाये !
ठंडा होने पर रोगी को पिलाये !
मात्र 45 मिनट बाद cell बढ़ने शुरू हो जाएँगे !!
इससे अच्छा और सस्ता कोई इलाज नहीं डेंगू बुखार का !

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वन्देमातरम !

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

Feb 22, 2013

गौ माता की अद्भुत महिमा


 


गौ माता की अद्भुत महिमा

महामहिमामयी गौ हमारी माता है उनकी बड़ी ही महिमा है वह सभी प्रकार से पूज्य है गौमाता की रक्षा और सेवा से बढकर कोई दूसरा महान पुण्य नहीं है .

१. गौमाता को कभी भूलकर भी भैस बकरी आदि पशुओ की भाति साधारण नहीं समझना चाहिये गौ के शरीर में "३३ करोड़ देवी देवताओ" का वास होता है. गौमाता श्री कृष्ण की परमराध्या है, वे भाव सागर से पार लगाने वाली है.

२. गौ को अपने घर में रखकर तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिये, ऐसा कहा गया है जो तन-मन-धन से गौ की सेवा करता है. तो गौ उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करती है.

३. प्रातः काल उठते ही श्री भगवत्स्मरण करने के पश्चात यदि सबसे पहले गौमाता के दर्शन करने को मिल जाये तो इसे अपना सौभाग्य मानना चाहिये.

४. यदि रास्ते में गौ आती हुई दिखे, तो उसे अपने दाहिने से जाने देना चाहिये .

५. जो गौ माता को मारता है, और सताता है, या किसी भी प्रकार का कष्ट देता है, उसकी २१ पीढियाँ नर्क में जाती है.

६. गौ के सामने कभी पैर करके बैठना या सोना नहीं चाहिये, न ही उनके ऊपर कभी थूकना चाहिये, जो ऐसा करता है वो महान पाप का भागी बनता है .

७. गौ माता को घर पर रखकर कभी भूखी प्यासी नहीं रखना चाहिये न ही गर्मी में धूप में बाँधना चाहिये ठण्ड में सर्दी में नहीं बाँधना चाहिये जो गाय को भूखी प्यासी रखता है उसका कभी श्रेय नहीं होता .

८. नित्य प्रति भोजन बनाते समय सबसे पहले गाय के लिए रोटी बनानी चाहिये गौग्रास निकालना चाहिये.गौ ग्रास का बड़ा महत्व है .

९. गौओ के लिए चरणी बनानी चाहिये, और नित्य प्रति पवित्र ताजा ठंडा जल भरना चाहिये, ऐसा करने से मनुष्य की "२१ पीढियाँ" तर जाती है .

१०. गाय उसी ब्राह्मण को दान देना चाहिये, जो वास्तव में गाय को पाले, और गाय की रक्षा सेवा करे, यवनों को और कसाई को न बेचे. अनाधिकारी को गाय दान देने से घोर पाप लगता है .

११. गाय को कभी भी भूलकर अपनी जूठन नहीं खिलानी चाहिये, गाय साक्षात् जगदम्बा है. उन्हें जूठन खिलाकर कौन सुखी रह सकता है .

१२. नित्य प्रति गाय के परम पवित्र गोवर से रसोई लीपना और पूजा के स्थान को भी, गोमाता के गोबर से लीपकर शुद्ध करना चाहिये .

१३. गाय के दूध, घी, दही, गोवर, और गौमूत्र, इन पाँचो को 'पञ्चगव्य' के द्वारा मनुष्यों के पाप दूर होते है.

१४. गौ के "गोबर में लक्ष्मी जी" और "गौ मूत्र में गंगा जी" का वास होता है इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में उपयोग करने से पापों का नाश होता है, और गौमूत्र से रोगाणु नष्ट होते है.

१५. जिस देश में गौमाता के रक्त का एक भी बिंदु गिरता है, उस देश में किये गए योग, यज्ञ, जप, तप, भजन, पूजन , दान आदि सभी शुभ कर्म निष्फल हो जाते है .

१६ . नित्य प्रति गौ की पूजा आरती परिक्रमा करना चाहिये. यदि नित्य न हो सके तो "गोपाष्टमी" के दिन श्रद्धा से पूजा करनी चाहिये .

१७. गाय यदि किसी गड्डे में गिर गई है या दलदल में फस गई है, तो सब कुछ छोडकर सबसे पहले गौमाता को बचाना चाहिये गौ रक्षा में यदि प्राण भी देना पड़ जाये तो सहर्ष दे देने से गौलोक धाम की प्राप्ति होती है.

१८ . गाय के बछड़े को बैलो को हलो में जोतकर उन्हें बुरी तरह से मारते है, काँटी चुभाते है, गाड़ी में जोतकर बोझा लादते है, उन्हें घोर नर्क की प्राप्ति होती है .

१९. जो जल पीती और घास खाती, गाय को हटाता है वो पाप के भागी बनते है .

२०. यदि तीर्थ यात्रा की इच्छा हो, पर शरीर में बल या पास में पैसा न हो, तो गौ माता के दर्शन, गौ की पूजा, और परिक्रमा करने से, सारे तीर्थो का फल मिल जाता है, गाय सर्वतीर्थमयी है, गौ की सेवा से घर बैठे ही ३३ करोड़ देवी देवताओ की सेवा हो जाती है .

२१ . जो लोग गौ रक्षा के नाम पर या गौ शालाओ के नाम पर पैसा इकट्टा करते है, और उन पैसो से गौ रक्षा न करके स्वयं ही खा जाते है, उनसे बढकर पापी और दूसरा कौन होगा. गौमाता के निमित्त में आये हुए पैसो में से एक पाई भी कभी भूलकर अपने काम में नहीं लगानी चाहिये, जो ऐसा करता है उसे "नर्क का कीड़ा" बनना पडता है .

गौ माता की सेवा ही करने में ही सभी प्रकार के श्रेय और कल्याण है

सपनों के पाँच प्रकार

सपनों के पाँच प्रकार
पहला प्रकार—

पहले प्रकार के स्‍वप्‍न तो मात्र कूड़ा करकट होते है। हजारों मनो विश्लेषक बस कूड़े पर कार्य कर रहे है; यह बिलकुल व्‍यर्थ है। ऐसा होता है क्‍योंकि सारे दिन में, दिन भर काम करते हुए तुम बहुत-कुड़ा कचरा इकट्ठा कर लेते हो। बिलकुल ऐसे ही जैसे शरीर पर आ जमती है धूल। और तुम्‍हें होती है स्‍नान की जरूरत, एक सफाई की। इसी ढंग से मन इकट्ठा कर लेता है धूल को। लेकिन मन के स्‍नान कराने को कोई उपाय नहीं। इसलिए मन के पास होती है एक स्‍वचलित प्रक्रिया सारी धूल और कूड़े करकट को बहार फेंक देने की। पहली प्रकार का स्वप्न कुछ नहीं है सिवाय उस धूल को उठाने के जिसे मन फेंक रहा होता है। यह सपनों को बड़ा भाग होता है। लगभग नब्‍बे प्रतिशत। सभी सपनों का करीब-करीब नब्‍बे प्रतिशत तो फेंक दि गई धूल होती है। मत देना ज्‍यादा ध्‍यान उनकी और। धीरे-धीरे जैसे-जैसे तुम्‍हारी जागरूकता विकसित होती जाती है। तुम देख पाओगे की धूल क्‍या होती है।

दूसरी प्रकार के स्‍वप्‍न—

दूसरे प्रकार का स्‍वप्‍न एक प्रकार की इच्‍छा की परिपूर्ति है। बहुत सी आवश्‍यकताएं होती है। स्‍वभाविक आवश्‍यकताएं। लेकिन पंडित-पुरोहितों ने और उन तथाकथित धार्मिक शिक्षकों ने तुम्‍हारे मन को विषैला बना दिया है।

जितनी इच्छाएं है चेतन मन की। अचेतन किन्‍हीं इच्‍छाओं को नहीं जानता है, इच्‍छाओं की फिक्र अचेतन को नहीं है। होती क्‍या है इच्‍छा?इच्‍छा फूटती है तुम्‍हारे सोचने-विचारे से, शिक्षा से, संस्‍कारों से। तुम देश के राष्‍ट्रपति होना चाहोगे; अचेतन को इस बात की फिक्र नहीं है। राष्‍ट्र के राष्‍ट्रपति हो जाने में अचेतन की कोई रूचि नहीं है। अचेतन को तो मात्र इसमें रूचि है कि एक परितृप्‍ति जीवंत समग्रता किस प्रकार हुआ जाए। लेकिन चेतन मन कहता है। राष्‍ट्रपति हो जाओ। और यदि राष्‍ट्रपति होने में तुम्‍हें तुम्‍हारी स्‍त्री को त्‍यागना पड़े तो त्‍याग देना उसे। यदि तुम्‍हारी देह की बलि देनी पड़े तो दे देना। यदि तुम्‍हें बाकी सुख चैन त्‍यागना पड़े तो त्‍याग देना।

दूसरे प्रकार के स्‍वप्‍न के पास तुम्‍हारे सम्‍मुख उद् धटित करने को बहुत कुछ होता है। दूसरे प्रकार के साथ तुम परिवर्तित करने लगते हो अपनी चेतना को, तुम बदलने लगते हो आने व्यवहार को, तुम अपने जीवन का ढांचा बदलने लगते हो। अपनी आवश्‍यकता ओर की सुनो जो कुछ अचेतन कह रहा हो, उसे सुनो।

हमेशा याद रखना कि अचेतन सही होता है। क्‍योंकि उसके पास युगों-युगों की बुद्धिमानी होती है। लाखों जन्‍मों से अस्‍तित्‍व रखते हो तुम। चेतन मन तो इसी जीवन से संबंध रखता है। यह प्रशिक्षित होता रहा है विद्यालयों में और विश्‍व विद्यालओं में। परिवार और समाज में जहां तुम उत्‍पन्‍न हुए हो, संयोगवशात उत्‍पन्‍न हुए हो। अचेतन साथ लिए रहता है तुम्‍हारे सारे जीवनों के अनुभव। यह वहन करता है उसका अनुभव जब तुम एक चट्टान थे, यह वहन करता है उसका अनुभव जब तुम एक वृक्ष थे। वह साथ बनाए रखता हे उसका अनुभव जब तुम पशु थे—यह सारी बातें साथ लिए रहता है। सारा अतीत। अचेतन बहुत बुद्धिमान है और चेतन बहुत मुर्ख। ऐसा होता है क्‍योंकि चेतन मन तो मात्र इसी जीवन का होता है। बहुत छोटा, बहुत अनुभवहीन। वह बहुत बचकाना होता है। अचेतन है प्राचीन बोध उसकी सुनो।

अब पश्‍चिम में सारा मनोविश्‍लेषण केवल यही कर रहा है और कुछ नहीं। दूसरे प्रकार के स्‍वप्‍न पर ध्‍यान दे रहा है। और उसी के अनुसार तुम्‍हारे जीवन ढाँचे को बदल रहा है। और मनोविश्‍लेषण ने मदद की है बहुत लोगों की। इसकी कुछ अपनी सीमाएं है, तो भी इसने मदद दी है। क्‍योंकि कम से कम यह बात, दूसरे प्रकार के स्‍वप्‍न को सुनना। तुम्‍हारे जीवन को बना देती है अधिक शांत, कम तनावपूर्ण।

तीसरे प्रकार का स्‍वप्‍न—

फिर होता है तीसरे प्रकार का स्‍वप्‍न। यह तीसरे प्रकार का स्‍वप्‍न अति चेतन से आया संकेत होता है। दूसरे प्रकार का स्‍वप्‍न अचेतन से आया संप्रेषण है। तीसरे प्रकार का स्‍वप्‍न बहुत विरल होता है। क्‍योंकि हमने अति चेतन के साथ सारा संपर्क खो दिया है। लेकिन फिर भी यह उतरता है, क्‍योंकि अति चेतन तुम्‍हारा है। हो सकता है कि यह बादल बन चुका हो और आकाश में बढ़ गया हो, विलीन हो गया हो। हो सकता है, कि दूरी बहुत ज्‍यादा हो, लेकिन यह बस भी तुम्‍हारी पकड़ में है, और सदा से था। यह लंगर डाले है अब भी तुम में।

अति चेतन से आया संप्रेषण बहुत विरल होता है। जब तुम बहुत-बहुत जागरूक हो जाते हो केवल तभी तुम इसे अनुभव करने लगोगे। अन्‍यथा। यह उस धूल में खो जायेगा जिसे मन फेंकता है सपनों में। और जाएगा उस आकांक्षा पूर्ति में जिसके सपने मन बनाये चला जाता है;वे अधूरी दबी हुई चीजें। यह उनमें खो जायेगा। लेकिन जब तुम जागरूक होते हो तो यह बात हीरे के चमकने जैसी होती है—वे सारे कंकड़ जो चारों और है उनसे नितांत भिन्‍न।

जब तुम अनुभव कर सकते हो और वह स्‍वप्‍न पा सकते हो जो अति चेतन से उतर रहा होता है। तो उसे देखना,उस पर ध्‍यान करना। वहीं तुम्‍हारा मार्गदर्शन बन जाएगा। वह तुम्‍हें सद्गुरू तक ले जाएगा। वह तुम्‍हें ले जाएगा जीवन के उस ढंग तक जो कि तुम्‍हारे अनुकूल पड़ सकता है। जो तुम्‍हें ले जाएगा सम्‍यक् अनुशासन की और। वह सपना भीतर एक गहन मार्ग दर्शन बन जाएगा। चेतन के साथ तुम ढूंढ सकते हो गुरु को। लेकिन गुरु और कुछ नहीं होगा सिवाय शिक्षक के। अचेतन के साथ तुम खोज सकते हो गुरु को। लेकिन गुरु एक प्रेमी से ज्‍यादा कुछ नहीं होगा–तुम एक निश्‍चित व्‍यक्‍तित्‍व के, एक निश्‍चित ढंग के प्रेम में पड़ जाओगे। केवल अति चेतन तुम्‍हें सम्‍यक गुरु तक ले जा सकता है। तब वह शिक्षक नहीं होता; जो वह कहता है उससे तुम सम्‍मोहित नहीं होते; जो वह है उसके साथ अंधे सम्‍मोहन में नहीं पड़ते हो तुम। बल्‍कि इसके विपरीत तुम निर्देशित होते हो तुम्‍हारे परम चेतन के द्वारा कि इस व्‍यक्‍ति से तुम्‍हारा तालमेल बैठेगा और विकसित होने के लिए इस व्‍यक्‍ति के साथ एक सही संभावना बनेगी तुम्‍हारे लिए, कि वह आदमी तुम्‍हारे लिए आधार है भूमि बन सकता है।
चौथे प्रकार के स्‍वप्‍न–

चौथे प्रकार के स्‍वप्‍न जो कि आते है पिछले जन्‍मों से। वे बहुत विरल नहीं होते है। वे घटते हैं, बहुत बार आते है वे। लेकिन हर चीज तुम्‍हारे भीतर इतनी गड़बड़ी में है कि तुम कोई भेद नहीं कर पाते। तुम वहां होते नहीं भेद समझने को।

पूरब में हमने बहुत परिश्रम किया है इस चौथे प्रकार के स्‍वप्‍न पर। इसी स्‍वप्‍न के कारण हमें प्राप्‍त हो गयी पुनर्जन्‍म की धारणा। इस स्‍वप्‍न द्वारा धीरे-धीरे तुम जागरूक होते जाते हो पिछले जन्‍मों के प्रति। तुम जाते हो पीछे और पीछे की और अतीत काल में। तब बहुत सारी चीजें तुममें परिवर्तित होने लगती है। क्‍योंकि यदि तुम्‍हें स्‍मरण आ सकता है, सपने में भी कि तुम क्‍या थे तुम्‍हारे पिछले जन्‍म में। बहुत सी नयी चीजें अर्थहीन हो जाएंगी। सारा ढांचा बदल जायेगा। तुम्‍हारा रंग-ढंग गेस्‍टाल्‍ट बदल जायेगा।

यदि तुमने पिछले जनम में बहुत सारा धन एकत्रित किया था। यदि तुम देश के सबसे धनी व्‍यक्‍ति होकर मरे थे। और गहरे में तुम भिखारी थे और फिर तुम वही कर रहे हो इस जीवन में, तो अकस्‍मात क्रिया-कलाप बदल जायेगा। यदि तुम याद रख सको कि तुमने क्‍या किया था और कैसे वह सब कुछ हो गया ना कुछ, यदि तुम याद रख सको कि तुमने क्‍या किया था और कैसे वह सब कुछ हो गया। जो नहीं कुछ; यदि तुम याद रख सको बहुत सारे जन्‍म कि कितनी बार तुम वही बात फिर-फिर कर रहे हो—तुम अटके हुए ग्रामोफोन रेकार्ड की भांति हो। एक दुस्चक्र; फिर तुम उसी तरह आरंभ करते हो और उसी तरह अंत करते हो। यदि तुम याद कर सको तुम्‍हारे थोड़ से भी जन्‍म तो तुम एकदम आश्‍चर्यचकित हो जाओगे कि तुमने एक ही बात की बार-बार, फिर-फिर तुमने धन एकत्रित किया; बार-बार तुम ज्ञानी बने;फिर-फिर तुम प्रेम में पड़े; और फिर-फिर चला आया वही दुःख जिसे प्रेम ले आता है। जब तुम देख लेते हो यह दोहराव तो कैसे तुम वहीं बने रह सकते हो। तब यह जीवन अकस्‍मात रूपांतरित हो जाता है। तुम अब और नहीं रह सकते उसी पुरानी लीक में उसी चक्र में।

इसीलिए पूरब में लोग पूछते आये है बार-बार कई शताब्‍दियों से, जीवन और मृत्‍यु के इस चक्र से कैसे बाहर आएं। यह जान पड़ता है वही चक्र। यह जान पड़ती है बार-बार की वहीं कथा—एक दोहराव। यदि तुम इसे नहीं जान लेते तो तुम सोचते हो कि तुम नहीं बातें कर रहे हो। और तुम इतने उत्तेजित हो जाते हो। में देख सकता हूं कि तुम यही बातें करते रहे हो बार-बार।

कुछ नया नहीं है जीवन में; यह एक चक्र है। यह उसी मार्ग पर बढ़ता चला जाता है। क्‍योंकि तुम अतीत के विषय में भूलते चले जाते हो। इसी लिए तुम इतनी अधिक उत्‍तेजना अनुभव करते हो। एक बार तुम्‍हें स्मृति आ जाती है। तो सारी उत्तेजना गिर जाती है। उसी स्मरण में संन्‍यास घटता है।

सन्‍यास एक प्रयास है संसार के चक्र में से बाहर आने का। यह प्रयास है चक्र के बाहर छलांग लगा देने का। यह है कह देना स्‍वयं से बहुत हो गया अब मैं उस पुरानी नासमझी में भाग नहीं लेना चाहता। मैं बाहर हो रहा हूं। उससे। संन्‍यास है इस चक्र से सम्पूर्णता से बाहर हो जाने का रास्‍ता। न ही केवल समाज के बहार, बल्‍कि जीवन मृत्‍यु के तुम्‍हारे भीतर के चक्र के बाहर। यह है चौथे प्रकार के स्‍वप्‍न।

पांचवें प्रकार के स्‍वप्‍न–

पांचवें और अन्‍तिम प्रकार के स्‍वप्‍न आता है तुम्‍हारे अतीत से। भविष्‍य से। संभावना से। ये स्‍वप्‍न एक विरल होता है। बहुत ही विरल। यह केवल कभी-कभी ही घटता है। जब तुम होते हो बहुत संवेदनशील, खुले नमनीय, तो अतीत देता है एक छाया। और भविष्‍य भी देता है एक छाया। यह तुममें प्रतिबिंबित होती है। यदि तुम जागरूक बन सकते हो अपने सपनों के प्रति तो किसी दिन तुम जागरूक हो जाओगे। इस संभावना के प्रति भी कि भविष्‍य तुमसे झाँकता है। एकदम अकस्‍मात ही द्वार खुल जाता है। और भविष्‍य का तुमसे संप्रेषण हो जाता है।

ये होते है पाँच प्रकार के स्‍वप्‍न। आधुनिक मनोविज्ञान समझता है केवल दूसरे प्रकार को। रूसी मनोविज्ञान समझता है केवल पहले प्रकार कोही। तीन प्रकार—बाकी दूसरे तीनों प्रकार करीब-करीब अज्ञात है। लेकिन योग समझता है उन सभी प्रकारों को।

यदि तुम ध्‍यान करो और सपनों वाले तुम्‍हारे आंतरिक अस्‍तित्‍व के प्रति जागरूक हो जाओ तो और बहुत बातें घटेगी। पहली बात तो यह हे कि धीरे-धीर जितना अधिक तुम जागरूक होते जाओगे। अपने सपनों के प्रति। उतने ही तुम कम और कम कायल होओगे अपने जागने के समय की वास्‍तविकता के प्रति। इसीलिए हिंदू कहते है कि संसार एक सपने की भांति है। अभी तो बिलकुल विपरीत है अवस्‍था। सपने देखते हो तो तुम सोचते हो वे सपने भी वास्‍तविक है। जब सपना आ रहा होता है, तो कोई अनुभव नहीं करता कि वह सपना अवास्‍तविक है। जब सपना आ रहा हो तो वह ठीक लगता है। वह बिलकुल वास्‍तविक लगता है। निस्‍संदेह सुबह तुम कह सकते हो कि यह तो बस एक सपना था। लेकिन बात इसकी नहीं क्‍योंकि अब एक दूसरा मन भी कार्य कर रहा है। ये मन साक्षा बिलकुल न था। इस मन ने तो केवल उड़ती खबर सुनी थी। यह चेतन मन जो सुबह जागता है। और कहता है कि वह सब सपना था, यह मन तो बिलकुल साक्षा न था। कैसे यह मन कह सकता है कुछ? इसने तो बस एक खबर सुन ली है। यह ऐसा है जैसे कि तुम सोये हो और दो व्‍यक्‍ति बातें कर रहे हों और तुम नींद में यहां-वहां से कुछ शब्‍द सुन लेते हो क्‍योंकि वे इतनी जोर से बोल रहे होते है। मिला-जुला प्रभाव बचता है।

ऐसा घट रहा होता है—जब अचेतन निर्मित करता है सपने और जबरदस्‍त हलचल चल रही होती है, चेतन मन सोया हुआ होता है। और केवल कोई खबर सुन लेता है। सुबह यह कह देता है, वह सब धोखा था। वह मात्र सपना था। अभी तो जब कभी तुम सपना देखते हो तब तुम अनुभव करते हो कि वह बिलकुल वास्‍तविक है। बेतुकी चीजें भी वास्तविक लगती है। अतर्क पूर्ण चीजें वास्‍तविक दिखाई पड़ती है। क्‍योंकि अचेतन किसी तर्क को नहीं जानता। तुम सड़क पर चल रहे होते हो सपने में, तुम देखते हो किसी घोड़े को आते, और अचानक वह घोड़ा नहीं होता, वह घोड़ा तुम्‍हारी पत्‍नी बन गया होता है। तुम्‍हारे मन को कुछ नहीं घटता वह नहीं पूछता, यह कैसे संभव है। घोड़ा अचानक पत्‍नी कैसे बन गया है? कोई समस्‍या नहीं उठती, कोई संदेह नहीं उठता। अचेतन नहीं जनता किसी संदेह को। इतनी बेतुकी बात पर भी विश्‍वास कर लिया जाता है। उसकी वास्‍तविकता के प्रति संदेह दूर हो जाता है तुम्‍हारा।

बिलकुल विपरीत घटता है जब तुम जागरूक हो जाते हो सपनों के प्रति। तुम अनुभव करते हो कि वे वस्‍तुत: सपने ही है। कोई चीज वास्तविक नहीं है। वे मात्र मन का खेल है। एक मनोनाटक। तुम हो रंगमंच तुम्‍हीं हो अभिनेता और तुम्‍हीं हो कथा लेखक, तुम्‍हीं हो निर्देशक तुम्हीं हो निर्माता और तुम्‍हीं हो दर्शक—दूसरा कोई नहीं है वहां, बस मन का सृजन है। जब तुम इस बात के प्रति जागरूक हो जाते हो। तब तुम जाग रहे होते हो। तब ये सारा संसार अपनी गुणवता बदल देगा। तब तुम देखोगें कि यहां भी वहीं अवस्‍था है, लेकिन लंबे-चौड़े रंगमंच पर। सपना वहीं है।

हिंदू इस संसार को कहते है माया
, भ्रम, स्‍वप्‍न-सदृश, मन की चीजों का धोखा। क्‍या मतलब होता है उनका? क्‍या वे यह अर्थ कहते है कि यह अवास्‍तविक है? नहीं, यह अवास्तविक नहीं है,लेकिन जब तुम्‍हारा मन उसमें धुल-मिल जाता है तो तुम अपना एक अवास्‍तविक संसार बना लेते हो। हम एक तरह के संसार में नहीं जीते; हर कोई अपने ही संसार मे जीता है। उतने ही संसार है जितने कि मन है। जब हिंदू कहते है कि यह संसार माया है। तो उनका अर्थ होता है कि वास्‍तविकता और मन का जोड़ है माया। वास्‍तविकता, जो कि है, हम जानते नहीं है। वास्‍तविकता और मनका जोड़ भ्रम, माया। जब कोई समग्र रूप से जाग जाता है, एक बुद्ध हो जाता है। तब वह जानता है मन से मुक्‍त हो गया वास्‍तविकता को। तब यह होता है सत्‍य, ब्रह्म, परम।

ओशो
हिंदी लेखन स्वामी आनंद प्रसाद

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
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बैंगन

बैंगन नहीं खाते तो ये पढ़िए आपके THOUGHTS बदल जाएंगे -----
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अगर आप भी उन्हीं लोगों में से एक है और बैंगन की सब्जी नहीं खाते हैं तो आज हम आपको अवगत करवाते हैं बैंगन के ऐसे गुणों से जिन्हें जानने के बाद आपकी गलतफहमी दूर हो जाएगी। वैसे बैंगन के रंग का प्रभाव भी उसके गुणों पर पड़ता है। विटामिन 'सी' की उपस्थिति बैंगन के छिलके के रंग पर निर्भर करती है। गहरे रंग के छिलके वाले बैंगन में अधिक विटामिन 'सी' रहता है जबकि हल्के रंग के छिलके वाले बैंगन में विटामिन 'सी'की मात्रा कम रहती है। वसा, प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट्स ये तीनों ही पोषक तत्व बैंगन में कम पाए जाते हैं।

100 ग्राम बैंगन में नीचे लिखे पोषक तत्व पाए जाते हैं प्रोटीन - 1.4 ग्राम वसा- 0.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स -4.0ग्राम कैल्शियम - 18 ग्राम फस्फोरस - 47 (मि. ग्राम) लौह तत्व - 0.38(मि.ग्राम) विटामिन सी - 12(मि.ग्राम) पोटेशियम - 20(मि.ग्राम) -मैग्नीशियम - 16(मि.ग्राम)।

कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करता है- बैंगन के सेवन से रक्त में बैंगन के सेवन से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर गिरता है। इस तरह के प्रभाव का प्रमुख कारण है। बैंगन में पोटेशियम व मैंगनीशियम की अधिकता। बैंगन की पत्तियों के रस का सेवन करने से भी रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम किया जा सकता है।इससे रक्त संचार सही रहता है।

रूखी त्वचा के लिए बैंगन- बैंगन स्किन को मॉइश्चर प्रदान करता है। इसीलिए अगर आपकी स्किन ड्राय या बाल ड्राय हो तो बैंगन जरूर खाएं। उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिये यही कारण है कि बैंगन उपयोगी माना जाता है।इसी कारण यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है और बैंगन का सेवन करने वालों को दिल की बीमारियों से बचाता है।

दांत के दर्द में- बैंगन का रस दांत के दर्द में लाभदायक प्रभाव दिखलाता है। बैंगन की पुल्टिस बनाकर फोड़ों पर बांधने से फोड़े जल्दी पक जाते हैं। अस्थमा के उपचार के लिये बैंगन की जड़ें प्रयुक्त की जाती हैं।बैंगन में फाइबर अधिक मात्रा में पाए जाते हैं इसीलिए इसे सेवन करने वालों को कब्ज नहीं होती है।

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कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जनक-महर्षि पाणिनि





कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जनक (father of computer programing )

महर्षि पाणिनि के बारे में जाने

पाणिनि (५०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टा


ध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्य

ाकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मि
लता है। इनका जीवनकाल 520 – 460 ईसा पूर्व माना जाता है ।
एक शताब्दी से भी पहले प्रिसद्ध जर्मन भारतिवद मैक्स मूलर (१८२३-१९००) ने अपने साइंस आफ थाट में कहा -

"मैं निर्भीकतापूर्वक कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी या लैटिन या ग्रीक में ऐसी संकल्पनाएँ नगण्य हैं जिन्हें संस्कृत धातुओं से व्युत्पन्न शब्दों से अभिव्यक्त न किया जा सके । इसके विपरीत मेरा विश्वास है कि 2,50,000 शब्द सम्मिलित माने जाने वाले अंग्रेज़ी शब्दकोश की सम्पूर्ण सम्पदा के स्पष्टीकरण हेतु वांछित धातुओं की संख्या, उचित सीमाओं में न्यूनीकृत पाणिनीय धातुओं से भी कम है । .... अंग्रेज़ी में ऐसा कोई वाक्य नहीं जिसके प्रत्येक शब्द का 800 धातुओं से एवं प्रत्येक विचार का पाणिनि द्वारा प्रदत्त सामग्री के सावधानीपूर्वक वेश्लेषण के बाद अविशष्ट 121 मौलिक संकल्पनाओं से सम्बन्ध निकाला न जा सके ।"

The M L B D News letter ( A monthly of indological
bibliography) in April 1993, में महर्षि पाणिनि को first softwear man without hardwear घोषित किया है। जिसका मुख्य शीर्षक था " Sanskrit software for future hardware "
जिसमे बताया गया " प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाने के तीन दशक की कोशिश करने के बाद, वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी हम 2600 साल पहले ही पराजित हो चुके है। हालाँकि उस समय इस तथ्य किस प्रकार और कहाँ उपयोग करते थे यह तो नहीं कह सकते, परआज भी दुनिया भर में कंप्यूटर वैज्ञानिक मानते है कि आधुनिक समय में संस्कृत व्याकरण सभी कंप्यूटर की समस्याओं को हल करने में सक्षम है।

व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संगृहीत हैं।

NASA के वैज्ञानिक Mr.Rick Briggs.ने अमेरिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और पाणिनी व्याकरण के बीच की शृंखला खोज की। प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाना बहुत मुस्किल कार्य था जब तक कि Mr.Rick Briggs. द्वारा संस्कृत के उपयोग की खोज न गयी।
उसके बाद एक प्रोजेक्ट पर कई देशों के साथ करोड़ों डॉलर खर्च किये गये।

महर्षि पाणिनि शिव जी बड़े भक्त थे और उनकी कृपा से उन्हें महेश्वर सूत्र से ज्ञात हुआ जब शिव जी संध्या तांडव के समय उनके डमरू से निकली हुई ध्वनि से उन्होंने संस्कृत में वर्तिका नियम की रचना की थी।

पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर विद्वानों के विचार

"पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है" (लेनिन ग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी)।
"पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं" (कोल ब्रुक)।
"संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है... यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है" (सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर)।
"पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा"। (प्रो. मोनियर विलियम्स)

।। जयतु संस्कृयतम् । जयतु भारतम् ।।

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कुछ सोचने वाली बाते

कुछ सोचने वाली बाते::

ज्यादातर लोग आज की बनी रोटी कल खाना पसंद नहीं करेंगे, कुछ तो ऐसे भी है जो सुबह की बनी रोटी शाम को भी नही खाते, अब मैं अगर आपसे बोलूँ की आज रोटी बनाकर उसको पौलिथीन में पैक कर देता हूँ, उसको ४ दिन बाद खाने को कौन राजी होगा?
आप सोच रहे होंगे की क्या बेतुकी बातें कर रहा हूँ, अब जरा सोचो की आटे को सड़ाकर बनाई हुई ब्रेड और पाँव रोटी जो पता नही कितने दिन पहले की बनी हुई है, उसको इतना मजे ले कर क्यों खाते हो ? क्यों बर्गर और ब्रेड पकोड़ा खाते वक्त ये बातें दिमाग में नही आती हैं ?

अगर हम ताजा रोटी खाने की परम्परा को दकियानुसी मान कर ४-५ दिन पहले बनी बासी रोटी खाने को अपनी शान समझते है तो हम पढ़े लिखे मूर्खो के सिवा और कुछ नही है, यूरोप के गधों के पीछे आँख बंद कर चलने वाली भेड़ चाल को हमें छोड़ना ही होगा, यूरोप में ब्रेड खाना उनकी मज़बूरी है, वहाँ का तापमान इतना कम रहता है की रोटी बनाना संभव ही नही है, आटा गूँथने के लिए पानी चाहिए लेकीन वहाँ छः महीने तो बर्फ जमी रहती है, इसीलिए वहाँ ब्रेड बनाई जाती है जिसमें आटा गूँथने की जरुरत नहीं होती है, आटे को सड़ाकर ब्रेड बना दी जाती है, और अत्यंत कम तापमान की वजह से वो चा
र पांच दिनों तक खराब नही होती है, भारतीय जलवायु के हिसाब से ब्रेड उचित नहीं है, भारतीय जलवायु में ब्रेड जैसे नमीयुक्त खाद्य पदार्थ जल्दी खराब होते हैं, तापमान बहुत कम होने के कारण उनके शरीर में मैदे से बनी ब्रैड पच जाती है पर भारत में तापमान बहुत अधिक होता है जो भारतीयों के लिये सही नही, इससे कब्ज की शिकायत होती है और कब्ज होने से सैंकडों बीमारियां लगती है, हजारों सालों से भारत में ताजे आटे को गूंथकर ही रोटी बनाई और खाई जाती है, हमारे पूर्वज इतने तो समझदार थे जो उन्होने ब्रैड आदि खाना शुरू नही किया तो आप भी समझदार बनिये,
इसीलिए सभी राष्ट्रभक्त भाई बहनों से निवेदन है की ब्रेड, पाँव रोटी जैसी चीजों से बने खाद्य पदार्थ का पूरी तरह से बहिष्कार करें और अन्य को भी प्रेरित करें।

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रूसी इलाज के लिए आयुर्वेदिक तरीके

रूसी इलाज के लिए आयुर्वेदिक तरीके ::

बाल हमारी पर्सनेलिटी को निखारने का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बालों को अच्छा और सुंदर बनाने के लिए पौष्टिक भोजन के साथ ही जरूरी है बालों की सही देखभाल। बालों की देखभाल न करने से कई तरह की समस्याएं खड़ी हो जाती है। इनमें से एक है डैंड्रफ यानी रूसी, जो खुश्की और बालों में रूखेपन की वजह से होती है लेकिन बालों की थोड़ी सी देखभाल से आप न सिर्फ बालों की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं साथ ही डेंड्रफ से भी छुटकारा पा सकते हैं। रूसी में आयुर्वेद से इलाज बहुत अच्छा रहता है। आइए जानें आयुर्वेद के अनुसार रूसी दूर करने के लिए क्या करना चाहिए और रूसी इलाज के लिए आयुर्वेद में कौन-कौन से तरीके अपनाएं जाते हैं।

• बालों की समस्याएं सिर्फ महिलाओं में ही नहीं बल्कि पुरूषों में भी देखने को भी मिलती है। डैंड्रफ के ज्यादा बढ़ जाने पर चेहरे, माथे, गर्दन और पीठ आदि पर एक्ने की समस्या भी हो सकती है। शुरूआत में यह स्कॉल्प की ऊपरी परत पर होती है, लेकिन धीरे-धीरे यह इसकी भीतरी तहों तक पहुंच जाती है।
• दरअसल, डैंड्रफ हमारे सिर की त्वचा में स्थित मृत कोशिकाओं से पैदा होती है। डैंड्रफ से सिर में खुजली रहती है और बाल गिरने लगते हैं।

डेंड्रफ के कारण ::

• बालों की ठीक तरह से सफाई न करना, बालों को सही पोषण न मिलना या फिर बालों में तेल न लगाने से डेंड्रफ हो सकती है।
अधिक तनाव या पसीने के कारण भी ये समस्या पनप सकती है।
• हालांकि डेंड्रफ का कोई पुख्ता कारण मौजूद नहीं है, लेकिन सीबम उत्पन्न करने वाली ग्रंथियों के ज्यादा सक्रिय होने की वजह से डेंड्रफ होता है।
• कम पानी पीने या फिर भोजन में पोषक तत्वों की कमी के कारण भी डेंड्रफ हो सकता है।
• युवावस्था में अधिक मात्रा में हॉर्मोंन्स रिलीज होने से भी डैंड्रफ हो सकती है।

आयुर्वेद से डैंड्रफ दूर करने के उपाय ::

• डैंड्रफ की समस्या होने पर स्कॉल्प की सफाई का ध्यान रखना आवश्यक है। इसीलिए सप्ताह में दो-तीन बार अच्छा हर्बल शैंपू करना चाहिए और बालों को अच्छी तरह से मालिश करनी चाहिए।
• रोज रात को बालों की जड़ों में सरसों के तेल से मालिश कीजिए। सुबह शिकाकाई पानी में उबाल कर उस पानी से बाल धो लें।
• एंटी-डेंड्रफ हर्बल शैंपू का इस्तेमाल डैंड्रफ को कम करने में उपयोगी होता है या फिर विटामिन ई ऑयल से स्कॉप्ल की मालिश की जा सकती है।
• ग्लीसरीन और गुलाब जल को रोज बालों की जड़ों में लगाने से ये समस्या दूर हो सकती है।
• डैंड्रफ से बचने के लिए जैतून के तेल में अदरक के रस की कुछ बूंदे मिलाकर इसे बालों की जड़ों में लगाकर एक घंटे के लिए छोड़ दें और फिर शैंपू से धो दें।
• बालों में तेल लगाने के बाद स्टीम्ड तौलिए का प्रयोग करना भी अच्छा रहता है या फिर गर्म तेल से स्कॉल्प की मसाज करने से सिर की त्वचा को पोषण मिलता है।
• बालों को बार-बार कंघी मत कीजिए, नहीं तो स्कॉल्प से ज्यादा ऑयल निकलने से डेंड्रफ की समस्या भी बढ़ जाती है।
• खाने-पीने का खासा ध्यान रखना जरूरी होता है। ऐसे में खूब पानी पीना चाहिए।
• दही को बालों में कम से कम आधे घंटे तक लगाने से डैंड्रफ को दूर किया जा सकता है।
• नीबू का रस और काली मिर्च पाउडर मिलाकर बालों की जड़ों में लगाना भी अच्छा रहता है।
• अधिक स्ट्रांग तेल बालों का झड़ना बढ़ा सकता है। ऐसे में जड़ीबूटी युक्त नीम और काले तिल का तेल मिलाकर अधिक डैंड्रफ होने पर सप्ताह में कम से कम तीन बार लगाएं।
• आयुर्वेदिक शैंपू डैंड्रफ दूर करने के लिए अच्छा विकल्प है।
• नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाने से डैंड्रफ दूर होता है।
• दही से सिर धोने पर भी डेंड्रफ से छुटकारा पाया जा सकता है।
• खान-पान बालों की सेहत के लिए मायने रखता है। हरी पत्तेदार सब्जियां, अंकुरित अनाज, ककड़ी, उबली हुई सब्जियां, फलियां, गाजर आदि को भोजन में शामिल करें। कोलेस्ट्रॉल बालों की ग्रोथ में भी बाधक है। इसीलिए इसकी मात्रा कम ही होनी चाहिए।

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श्री पद

दुनियाभर में आज भी कई ऐसे स्थान हैं, जिनका रहस्य अब तक अनसुलझा है. विज्ञान की लाख तरक्की के बावजूद कई गुत्थियां ऐसी हैं, जिनका सही-सही जवाब दे पाना आज भी संभव नहीं हो पाया है. हालांकि, धर्मग्रंथों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये रहस्य न होते हुए ईश्वरीय शक्ति के निशान हैं. ऐसी ही एक रहस्यमयी जगह श्रीलंका के सुदूर इलाके में मौजूद इस जगह को 'एडम्स पीक' और 'श्री पद' भी कहते हैं. श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में एक बहुत रोमांचित करने वाली जगह 'एडम्स पीक' है। इसे रहुमाशाला कांडा कहते हैं। इस पहाड़ का अपना पौराणिक इतिहास रहा है। कहते हैं राम-रावण युद्ध के दौरान मेघनाद की शक्ति लक्ष्मण निशाना बने और उनकी जान पर बन आई। उनके प्राण सिर्फ संजीवनी बूटी से बचाए जा सकते थे। इसे लाने का काम राम भक्त हनुमान को दिया गया। हनुमान हिमालय की कंदराओं में संजीवनी बूटी खोजते रहे, लेकिन उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। तब उन्होंने पहाड़ के एक टुकड़े को ही ले जाने का फैसला किया। मान्यताओं के अनुसार यह वहीं पहाड़ है। वहीं, इस पर बना मंदिर भी एक खास चीज के लिए प्रसिद्ध है। एडम्स पीक पर बने मंदिर में एक देवता के पैरों के निशान हैं। हिंदू धर्म की मानें तो यह देवों के देव शंकर के पैरों के निशान है। शिव को विनाशक भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शंकर मानव जाति को अपना दिव्य प्रकाश देने के लिए यहां प्रकट हुए थे। इसलिए इसे सिवानोलीपदम (शिव का प्रकाश) भी कहा जाता है। 2,224 मीटर की ऊंचाई पर लाखों भक्त और सैलानी आकर सिर झुकाते हैं। यहां से एशिया का सबसे अच्छा सूर्यउदय देखा जा सकता है।
 
 

पारद शिवलिंग

करोड़ों शिवलिंगों के पूजन से जो फल प्राप्त होता है, उससे भी करोड़ों गुणा ज्यादा फल पारद शिविलिंग की पूजा और दर्शन से प्राप्त होता है।
पारद शिवलिंग के स्पर्श मात्र से ही मुक्ति हो जाती है, ऐसा स्वयं महादेव जी ने पारद संहिता के तीसरे अध्याय में कहा है।
पारद जिसे हम पारा के नाम से भी जानते हैं, ए
क तरल पदार्थ है। यह लोहे से 16 गुणा भारी होता है। जरा-सी भी तपिश से पिघल जाता है।
इसे ठोस बनाना और कोई भी रूप देना बहुत ही कठिन है। इसे ठोस बनाने के लिए बहुत से संस्कारों से गुजरना पड़ता है। कोई सिद्ध पुरुष ही इस शुद्ध किये हुए पारे (पारद) को पवित्र शिवलिंग के रूप में परिवर्तित कर सकता है।

ऐसा ही अद्भुत अलौकिक शक्तियों से संपन्न शिवलिंग जालंधर की पावन धरती पर परम पूज्य अवधूत बाबा शिवानंद जी महाराज द्वारा पूजनीय गुरु मां जी एवं ईशान शिवानंद के सान्निध्य में 11 महीने की अनथक तपस्या व मंत्रों द्वारा तैयार किया गया है। भारत वर्ष में भगवान शिव व जगत
जननी मां जगदम्बा जी के अनेक मंदिर व सिद्धपीठ हैं। जालंधर की पावन धरती पर पहले ही पुरातन मंदिर जैसे कि मां अन्नपूर्णा मंदिर,
महासती वृंदा (तुलसी) का मंदिर, सिद्ध शक्तिपीठ श्री देवी तालाब मंदिर मौजूद हैं।

इसी जालंधर की धरती को एक और पावन तीर्थस्थल की सौगात मिली है। यहां पहले से ही स्थित श्री गौरी शंकर मंदिर से संलग्न परिसर
में साधकों के अनुपम सहयोग द्वारा सुंदर मंदिर का निर्माण हुआ है, जिसमें सृष्टिï के सृजनकर्ता भगवान शिव का अवधूत बाबा शिवानंद जी
द्वारा बनाया गया शुद्ध पारे का अलौकिक शिवलिंग ‘शिव गुफा’ में व उन्हीं के द्वारा बनायी गयी जगदंबा जी की अष्टïधातु को भव्य
अलौकिक मूर्ति ‘श्री चक्र’ के रूप में ‘शक्ति गुफा’ में 16 सखियों व 16 नृत्यांगनाओं के साथ विराजमान हैं।

यह विश्व का पहला ऐसा मंदिर है, जहां पर नीचे ‘शिव गुफा’ में शुद्ध पारे से निर्मित अद्भुत शिविलिंग और उसी के ठीक ऊपरी तल ‘शक्ति गुफा’ में मां जगदंबा की अष्टïधातु की भव्यमूर्ति ‘श्री चक्र’ के रूप में स्थित है जिसे ‘मां चक्रेश्वरी देवी’ भी कहते हैं।
पवित्र अलौकिक अद्भुत पारद शिवलिंग के दर्शनों से आए हुए सभी प्रभु भक्तों के पूर्व जन्म में संचित कर्म कटते हैं। वहीं ‘मां चक्रेश्वरी’ के
दर्शनों से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पारद शिवलिंग की पूजा करने से भगवान ब्रह्मïा जी, श्री विष्णु जी व महेश जी की पूजा एक
साथ हो जाती है।

ऐसा कहा गया है कि पारद शिवलिंग के मूल भाग में श्री ब्रह्मïा जी, मध्य भाग में श्री विष्णु जी व अग्रभाग में भगवान शंकर निवास करते हैं।

पारदेश्वर सिद्धपीठ श्री गौरी शंकर मंदिर में स्थित पारद शिवलिंग पर सिर्फ हरिद्वार से लाया गया गंगाजल ही चढ़ाया जाता है, जो कि पवित्र शिवलिंग पर चढऩे के बाद अमृत रूप हो जाता है। पूरी आस्था और निष्ठïा से साधना-अर्चना करने वाले भक्तों को अपने पूर्व जन्मों के कर्मों से मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि अमृत जल में अनंतशक्ति मौजूद है, जो कि आरोग्यता प्रदान करती है।

‘शिव गुफा’ में स्थित पवित्र ‘पारद शिवलिंग’ व ‘शक्ति गुफा’ में प्रतिष्ठिïत ‘मां श्री श्री ललिता महात्रिपुर सुंदरी’ के स्वरूपों के पास जाना सख्त मना है।
स्नान करने के उपरांत ही पुरुष धोती-कुर्ता व स्त्रियां साड़ी पहन कर मंदिर कमेटी की अनुमति व पुजारी जी की देख-रेख में मूर्ति के पास जाकर दर्शन कर सकती हैं। दोनों ही मंदिर सुबह 5 से दोपहर 12 बजे तक व शाम 4 से रात्रि 10 बजे तक खुले रहते हैं।

यहां पर दीपदान और महारुद्राभिषेक का विशेष महत्व है जिसकी व्यवस्था मंदिर कमेटी द्वारा ही करवाई जाती है।
जालंधर से अमृतसर की ओर बाईपास पर वेरका मिल्क प्लांट के पास, पठानकोट चौक से अमृतसर की तरफ 2 किलोमीटर व
मकसूदां चौक से एक किलोमीटर फोकल ïप्वाइंट की तरफ यह अद्भुत मंदिर भक्तों की आस्था के बड़े दैवीय तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हो रहा है।

पपीता

ये हैं रोजाना पपीता खाने से होने वाले 3 गजब के हेल्दी फायदे -----
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स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि हम प्रतिदिन फल भी खाने में शामिल करें। कई बीमारियां पेट की खराबी से शुरू होती है अत: पेट को ठीक रखने के लिए पपीता बहुत अच्छा फल है। यहां दिए गए PHOTOS से जानिए पपीता खाने से क्या-क्या लाभ मिलते हैं शरीर को...

आधे पपीते में करीब 59 कैलोरीज और तीन ग्राम रेशे होते हैं। विटामिन ए, सी, ई और कुछ मात्रा बी और डी का यह अच्छा स्रोत होता है।

पपीते में मौजूद केरोटिन आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए नियमित रूप से पपीता खाना चाहिए।जो लोग नियमित रूप से पपीते का सेवन करते हैं उन्हें कैंसर का खतरा कम रहता है।
पपीते में कैल्शियम भी पाया जाता है, जो शरीर की हड्डियां मजबूत करता है तथा जोड़ के दर्द में फायदा करता है।वैसे तो पपीता बहुत भी फायदेमंद फल है लेकिन कुछ बीमारियों और स्थितियों में पपीता नहीं खाना चाहिए। जैसे गर्भवती महिला को पपीता नहीं खाना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में चिकित्सक से परामर्श लेकर ही पपीता खाना चाहिए।

पपीता में दिल एवं डायबिटीज के मरीजों के लिए लाभप्रद फाइबर भरपूर होता है, जो कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करने में मदद करता है। पपीते में पपेन नामक एंजाइम होता है, जो पाचन-शक्ति बढ़ाता है। इससे मिलने वाला विटामिन ए त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाने में सहायक होता है।

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

Feb 21, 2013

Morari Bapu

Katha Quotes

 
The following are regularly updated quotations by Morari Bapu, mostly from kathas. English translations are given where possible.


मानस हरि मंदिर, पोरबंदर कथा - Manas Hari Mandir, Porbandar Katha

16th - 24th February 2013
अपना जीवन ही एक मंदिर है ।
Our life itself is a temple.
मंदिर में दो चीजे बहुत जरुरी है बाहरी स्वच्छता और भीतरी पवित्रता ।
Two essential elements in a temple are outer cleanliness and inner purity.

मानस तीरथराज, अलाहाबाद(कुंभ) कथा - Manas Tirathraj, Allahabad(Kumbh) Katha

19th - 27th January 2013
जीवन में सत्य हो और समर्पण हो तो घटना घट जाती है ।
With satya (truth) and samarpan (surrender) in life, the incident occurs.
विचारों का दान श्रेष्ठ दान है ।
The sharing of thoughts and ideas is the ultimate form of giving.
यह मानस मेरा गुलदस्ता है । इसमे सब फूल रखता हू । बीच में तुलसी का पौधा रखता हू ।
Manas is my flower pot; inside, I keep all kinds of flowers and at the centre is the Tulsi plant.
आदर सब को दो । आत्मा किसी एक को दो ।
Give respect to all; give your atma (soul) to one.
संत समाज के तीरथराज में प्रसन्न मन से स्नान करने जाये सुनो और समझो । फिर अनुराग के साथ उसमे डूबो तो चारो फल शारीर होते हुए प्राप्त कर लोगे ।
With a content mind, bathe in the Tirathraj of Sant Samaj; listen and contemplate. Immerse yourself with devotion and the four aims of life (dharma, artha, karma, moksha) are achieved in this very body.
जो जागृत होता है उसका स्मरण वो करता है ।
God remembers those who are awakened and alert.
यह तीरथराज है । यह तीर्थो का सम्राट है ।
This is Tirathraj (Prayag), king amongst all pilgrimages.

मानस सिव, बैद्यनाथ कथा - Manas Siv, Baidyanath Katha

29th December 2012 - 06th January 2013
मानस स्वयं शिव है ।
Manas itself is Shiva.
गुरु और वेदांत वाक्यो में विश्वास करना ही श्रद्धा है ।
Trust in the words of one's Guru and the Vedanta is itself faith.
श्रद्धा का स्थान हो आदमी का ह्रदय ।
The heart is where faith should reside.
पार्वती माने श्रद्धा । हमारे ह्रदय में होनी चाहिये । बोधिक श्रद्धा नहीं हार्दिक श्रद्धा हो ।
Parvati represents faith. Our heart should be filled with faith - faith of the heart, not of the mind.
आनंद खोजिये । या तो खुद खोजिये या गुरु पे छो़ड दीजीये ।
Find joy and bliss; either do it yourself or let your Guru do it for you.
रामचरित मानस के हर सौपान में शिव की महिमा उजागर हुई है ।
The importance of Shiva is displayed in each saupan of the Ramcharitmanasa.
विश्राम पाना है तो शंकर का नाम लो ।
Take the name of Shankara if you want rest and repose.
शिव विश्व की औषधि है । वैद्यनाथ वैद्यो का नाथ है । हमारा सब इलाज करने वाला देवता है ।
Shiva is the remedy of the world. Vaidyanath is the master of all doctors. He is the God that can cure each one of us.
शिव स्वयं सदगुरु है । सदगुरु स्वयं शिव है ।
Shiva himself is Sadguru and Sadguru himself is Shiva.

मानस केन्सर, अहमदाबाद कथा - Manas Cancer, Ahmedabad Katha

08th - 16th December 2012
आठ प्रकार की अहंकार की ग्रंथि :-
- बल का अहंकार
- रुप का अहंकार
- विद्या का अहंकार
- धन का अहंकार
- प्रतिष्ठा का अहंकार
- कुल का अहंकार
- त्याग का अहंकार
- वर्ण का अहंकार

Eight types of knots of the Ego:
- ego of power
- ego of beauty
- ego of knowledge
- ego of money
- ego of fame
- ego of family, descent
- ego of renunciation
- ego of caste and colour
हम खुद की खोज करे, दूसरों की सेवा करे और कोई परम तत्व से प्रेम करे ।
Let us try to find ourselves, be in service to others and love whomsoever we take to be the Supreme Being.
अहंकार का नाश केवल हरि कृपा से ही होता है ।
It is only with God's blessing that the ego can be killed.
प्रसन्नता भी रोग का एक इलाज है । प्रसन्नता भी एक औषधि है ।
Happiness is one remedy for mental illness, and is also a cure.
तुम प्रसन्न रहो तो भी मनोंरोग कम हो जाये ।
Mental diseases can decrease by the simple act of being satisfied and happy.
अहंकार को अपने बारे में सुनने की बहुत इच्छा होती है ।
The ego loves to hear about itself and loves to be spoken about.
सेवा ना हो कोई चिंता नहीं । मानसिक रुप से किसी बुद्ध पुरुष के निकट जीयो ।
Let us not worry if we cannot do seva or service. Let us through our minds be living close to an enlightened being.
कई वैद्य है । तुलसी ने एक समर्थ वैद्य बताया है और वो है सदगुरु ।
There are many doctors; Tulsidasji has revealed the most capable and that is the Sadguru.
सच्चा श्रवण कानों से नहीं आखों से होता है ।
True listening happens through the eyes, not the ears.
तुलसीदासजी ने अहंकार को Cancer कहा है ।
Tuslsidasji has said ego is Cancer.

अहंकार Cancer अति दुखद । अत्यंत पीड़ा दाई है ।
The cancer of ego is most sorrowful and gives much pain.

मानस सुर धेनू, गोवर्धन कथा - Manas Sur Dhenu, Govardhan Katha

17th - 25th November 2012
गो हमारी इंद्रिय है उसे संभाले ।
Gau (cow) signifies our sense organs; we must take care of it.
गो माता की हत्या ना हो वेदों ने सबसे पहेले यह घोषणा की ।
The Vedas were the first to speak against the killing of cows.
गो माता बुद्ध का प्रतीक है ।
The Mother Cow symbolises Buddha.
माँ जन्म देती है, गो माता जीवन देती है ।
A mother gives birth; Mother Cow gives life.
अमृत तो कथा है कानो से पीया जाता है ।
Nectar is Katha and is drunk through the ears.
प्रभु की पुर्ण कृपा हो जाये तब साधु संगती मिलती है ।
We are able to get the company of a Saint through God's blessing.
लक्ष्य प्राप्ती के लिये कदम उठाना चाहिये ।
Concrete steps need to be taken to reach one's goal.
जो सेवक बनेगा उसके लिये राम स्वयं सुरधेनू है ।
Ram is Surdhenu (wish fulfilling cow) for one who is willing to serve.
गुरु के बंधन में जीना परम स्वतंत्र है ।
Living under the shelter of one's Guru is supreme freedom.

मानस सत्य, धरमशाला कथा - Manas Satya, Dharamshala Katha

22nd - 30th September 2012
सत्य नियम नहीं व्रत है । नियम रखे जाते है व्रत अंदर से उभरता है ।
Truth is not a rule, it is vow; rules are kept, a vow comes from within.
सन्मान सब का करो श्रद्धा अपने में रखो ।
Give respect to all, but keep faith in your own (faith).
सबसे ब़डा पाप असत्य है ।
The biggest sin is being untrue.
सत्य स्वाभाविक हो, सत्य के लिए कोई योजना नहिं बनाइ जाए ।
The truth should be natural, for truth there should be no planning.
हमारा सत्य जब दुसरे को परेशान करे ऐसा जब आपको महेसुस हो तब चुप हो जाओ प्लि़ज, ना बोलो ।
When you feel that your truth will trouble or hurt another, then please become quiet; do not speak it.
सत्य समझने को चाहिये धैर्य ।
Patience is required to understand the Truth.
प्रतिक्षा भी एक तपस्या है ।
Waiting is also a penance.
जिसके विचार में सत्य होता है, उसके चहेरे पर आभा बहुत होती है, बोले भले ना ।
He who has truth in his thoughts will have a glow on the face, even if he does not speak.
सत्य विनम्रता से पेश हो आक्रमकता से नहीं ।
Truth should be conveyed humbly not aggressively.
सत्य समर्पण करता है त्याग करता है ।
Truth brings about surrender and sacrifice.
मानस का सत्य पंच मुखी है । एक ही सत्य पाँच रुप में मानस में प्रकट होता है ।
विचार का सत्य । उच्चार का सत्य । आचार का सत्य । स्वीकार का सत्य । सत्य का साक्षात्कार ।

Truth according to the Manas is five-headed. One Truth is presented in five forms:
Truth in thoughts, Truth in words, Truth in actions, Truth in acceptance, witnessing Truth.

मानस प्रेम, नाथद्वारा कथा - Manas Prem, Nathdwara Katha

18th - 26th August 2012
गुरु के पास जाते समय सही में जिसको गुरु को पाना है, उसको खाली हाथ ही जाना चाहिए. हाथ की मुठ्ठी में कुछ ना हो, ईन लकीरो में अपना प्रारब्ध ना हो ।
When going to the Guru, one who truly wants to attain the Guru should go empty handed. There should be nothing clenched in the hands; even the palms should be free of destiny.
उपनीषदी परंपरा में गुरु के पास जब साधक जाता तब समीध लेकर ’समीध पान’ गुरु के यज्ञ के लिए लकडियाँ लेकर जाता, यह परंपरा प्यारी है ।
In the traditions set out in the Upnishads, when a devotee goes to the Guru they would take some wood with them; they would take wood for the sacrificial fire. This is a beloved tradition.
जीवन साधना के लिए बहुत जरुरी है हनुमंत आश्रय ।
The shelter of Hanumanji is very important in the spiritual practice of life.
गुरु के द्वार से आश्रित को सही रुप में विवेक की प्राप्ति होती है ।
An aspirant can gain the true form of discrimination from their Guru's abode.
गुरु के घर से आदमी को सहि रुप में वैराग्य मिलता है ।
An individual can attain the true form of renunciation from their Guru's home.
प्रेम परमात्मा है ।
Love is God.
एक बार व्यक्ति के ह्रदय में प्रेम प्रगट हो जाए तो कुछ बाकि नहीं रहता ।
Once love appears in the heart of an individual, then there is nothing left (to be attained).
प्रेम प्रसाद से प्रगट होता है और प्रमाद से विलीन हो जाता है ।
Love appears through prasad (kripa) and it disappears due to laziness.
व्यक्ति का जीवन त्याग और प्रेम के बिना पूर्ण नहीं होता ।
One's life is not complete without renunciation and love.
३०० से ज्यादा बार मानस में प्रेम शब्द आया है मतलब १०० प्रतिशत नहीं ३०० प्रतिशत ।
The word 'Love' has appeared more than 300 times in the Ram Charit Manas, giving it not 100% but 300% approval.
प्रेम में काम और लोभ बाधक नहीं होते । प्रेम के प्रगटीकरण में क्रोध बाधा डालता है ।
Desire and greed are not barriers in the manifestation of Love; anger puts an obstruction in its appearance.
प्रामाणिक प्रेम प्रसन्नता की जनेता है ।
True love gives birth to contentment.
प्रेम किसी भी हाल में आदमी को प्रसन्न रख सकता है ।
Love has the ability to keep a person happy in any circumstance.
प्रेम हम सब में है जैसे आत्मा हम सब में है ।
Love is within each of us, just as we all have a soul.
गोस्वामीजी मानस में लिखते है राम को एक ही चीज पसंद है और वो है प्रेम ।
Goswāmiji writes in the Mānas that Rām likes only one thing and that is love.

मानस करुणा, जापान कथा - Manas Karuna, Japan Katha

5th - 13th August 2012
मैं लोगो की मनसिकता पर काम कर रहा हू ।
I am working on the mentality of people.
अध्यात्म मार्ग में दो चीजो से बचना - शिकायतों से और चतुराई से ।
On the spiritual path stay away from these two - complaints and cleverness.
भक्ति भी पूर्ण नहीं होती जब तक विश्वास द्ऱढ नहीं हो ।
Without firm faith (vishwas), devotion (bhakti) is not complete.
मैं यहाँ शबरी के मीठे बेर बोने आया हू की इसमे से मीठे फ़ल ऊगे ।
I have come here to sow the seeds of Shabri's sweet berries (a devotee from the Ramayana) so that sweet fruit will grow from this.
ब्रह्म कैसा है रहने दो । हमें तो उसका नाम लेना है और गुणगान करना है ।
Don't worry or wonder about what Brahma is like; let us just take His name and sing His glories.
विश्व और विश्वनाथ करुणा के बगैर प्रगट नहीं होता ।
The universe and the Creator manifest only through compassion.
कथा सुनो क्योकि कथा हरि स्मरण है ।
Listen to katha, as this is Hari smaran - remembering God.
मृत्यु के डर से बचने का तरीका है हरि स्मरण ।
Remembering God is a way to save oneself from the fear of death.
करुणा माँ का प्रतीक है । बुद्ध विश्व की माँ है । संत माँ है सदगुरु माँ है ।
Compassion is the symbol of a mother; Buddha is the mother of the world; a Saint and a Sadguru is a mother.
आज के जगत को जरुरत है करुणा की ।
The world today needs Compassion.

मानस पंचवटी, जोहनसबर्ग कथा - Manas Panchvati, Johannesburg Katha

7th - 15th July 2012
सदगुरु या कोई जागृत पुरुष के बोले वचन हमारे लिए रेखाए है उनको लाधे मत ।
The spoken words of Sadguru or of a realised man are marked lines for us; we must not cross over them.
गुरु खोजो मत । तुम्हे जब जरुरत होगी वो आजाएगा ।
Don't search for Guru; when the need arises He will appear.
तुम्हारी जागृति ही तुम्हारा भजन है ।
Your awareness itself is your bhajan (prayer).
जो नहीं है छोडो, जो होगा छोडो, जो है उसे enjoy कर लो ।
Don't think about what you don't have; leave what you may have in the future; just enjoy what you do have at this present moment.
मेरी व्यास पीठ का मक्सद है की आप प्रसन्न रहो, आनंद मे रहो ।
The aim of my Vyaas Peeth is that you remain happy and are ever joyful.
पंचभूत का शरीर ही हमारा पंचवटी है ।
Our physical body made up of five elements is our Panchvati.

मानस हनुमान चालीसा (भाग ७), ताम्पा कथा - Manas Hanuman Chalisa (part 7), Tampa Katha

2nd - 10th June 2012
तबियत संभालो, पर डरो मत, भय तुम्हारी भीतरी व्यवस्था को और बिगा़ड देगा ।
Look after your health but don't be scared. Fear will spoil one's internal condition.
मेरी अपील नहीं की आप हनुमान चालीसा करे; पर आप कम से कम हनुमंत तत्व को समझे ।
My appeal to you is not to do Hanuman Chalisa; but do try to understand the essence of the Hanumant tattva.
गुरु कौन - हमें श्रद्धा दे; हमें विचार दे; प्रेम से प्रेम प्रगट करे; आश्रित के गुनाहों को कबूल कर दंड खुद भोगे; हमें अध्यात्मिक बनाये ।
Guru is the one who gives us faith; gives us thoughts / belief; who accepts our faults taking the penalty on himself; lovingly brings out the latent love in us, and makes us spiritual.
’महा’ माने जो तीन प्रकार के मकार को नष्ट कर दे : मद को मिटा दे; मदन को मिटा दे; मत्सर को मिटा दे ।
'Maha' means, one who destroys three kinds of M's: mada (ego), madan (desires), matsar (jealousy).
सुख पूर्ण दुःख झेलना तप है ।
Happily enduring all the hardships in life is Tap (Tapasaya).
पद मुक्त पदाधिकारी का नाम है हनुमानजी ।
Hanumanji is the one who holds no title / position despite being the most worthy.

मानस ईसु, यरुशलेम कथा - Manas Isu, Jerusalem Katha

1st - 9th May 2012
हरि मिलेगा अनुराग से ।
God is attained through devotion and through love.
रोज इन पांचो का दर्शन कुछ समय के लिए करो - देव दर्शन, प्रकृति दर्शन, संत दर्शन, शास्त्र दर्शन, निज ह्रदय दर्शन ।
Every day spend a few moments giving thought and time to God, to nature, your sadguru/ saint, your scripture, and finally your own self.
ईसु का पंचामृत - सादगी, नम्रता, बलिदान, प्रेम, सत्य की उद्घोषणा ।
The Panchamrut or five kinds of nectar of Jesus: simplicity, humility, sacrifice, love, and declaration of truth.
प्रत्येक संबंधो में प्रमाणिक distance जरुरी है ।
Reasonable space / distance in necessary in every relationship.
एकवीसमी सदी का त्याग करुणा से निकालना चाहिए ।
Sacrifices of the twenty-first century should be with compassion.
हर पल उत्सव है, उत्सव ही उत्सव है ।
Each moment is a celebration, filled with celebration.
आंसू इन्द्रियातीत है जैसे इश्वर इन्द्रियातीत है. आंसूओ का रिश्ता केवल ह्रदय से होता है ।
Tears are beyond the sense just as God is beyond the realm of senses. Tears have connection only with the heart.
भक्त सदा ज्ञानी ही होता है, भक्त कभी मूढ़ नहीं होता ।
A devotee is always knowledgeable, he is never dull.

મોરારી બાપુ, મુંબઈ પ્રવચન, ૮ એપ્રિલ ૨૦૧૨ - Morari Bapu, Mumbai Pravachan, 8th April 2012

Topic: જો આ હોય મારુ અંતિમ પ્રવચન, If this was my last speech
જીવન તારા હાથમા છે પણ જીવનને પર્માત્મા નુ વર્દાન માનીને રસમય અને આનંદમય જીવીલેવુ એ મારા હાથમા છે ।
Life is in Your (God's) hands, but taking life as a gift from God and living with joy and to the fullest, that is in my hands.

मानस हरिहर, राजकोट कथा - Manas Harihar, Rajkot Katha

14th - 22nd April 2012
कल जो चला गया और कल जो आएगा दोनो में काल की बात है. काल माने मृत्यु की बात है, जीने वाली बात केवल आज में है ।
That which happened yesterday and what will happen tomorrow, both are attached to time, to death. Only the present moment, today, speaks of life.
अपने पास क्षमता हो लेकिन क्षमता के साथ उदारता नहीं तो यह श्राप है ।
Capability without generosity/big-heartedness is a curse.
यह सभी को जो़डने का उपकरण, जो़डने की कथा है. यह समाज दो चीजो से जु़डता है - भोजन से और भजन से ।
Katha is an apparatus that binds everyone. It connects the Society in two ways - through provision of food and prayers.
प्रसन्न चित्त और प्रशांत चित्त हो कर कथा सुनो ।
Listen to Katha with a content and calm mind.

हनुमान जयन्ति - Hanuman Jayanti

6th April 2012
साहित्य के नवों रस एक हनुमान चलीसा में मिल जाएंगे ।
All the nine ras (flavours) of literature can be found in one Hanuman Chalisa.

मानस गोसाईं, राजापुर कथा - Manas Gosai, Rajapur Katha

24th March - 01st April 2012
तुलसी कहते है संतो का संग स्वर्ग है ।
Tulsidasji says that the company of Saints is Heaven.
निराकार या साकार यह चर्चा छो़ड दो. तुलसी का यह शास्त्र इश्वर का अक्षराकर है ।
Leave the discussion about Nirakar (God without form) or Sakar (God with form). This Shastra (scripture) of Tulsi is the syllable of God.
जो गुरु के चरण में विश्वास रखेगा, उसके विश्व के समस्त भय नष्ट हो जाते है ।
One who keeps faith at the feet of his Guru, all his fears are destroyed.
मानस के यह सात सौपान एक सीडी है. यह सीडी अपने पास रखना, आप यदि नहीं च़ढ पाओ तो ऊपर वाला निचे आने लगता है ।
The seven parts of Manas are a ladder. Keep this ladder with you, for even if you are unable to climb it, the One from above will come down.

मानस महामुनि, वर्धा कथा - Manas Mahamuni, Vardha Katha

03rd - 11th March 2012
अत्यंत सुख से ही विपत्ति का जन्म होता है ।
Extreme happiness can also give rise to adversity and misery.
जो धर्म डराए उसे मै धर्म नहीं मानता. अभय दे वो धर्म ।
Dharma or religion which instils fear, that I do not consider that to be dharma; Religion is one which gives fearlessness.
मेरा काम मंदिर बनाना नहीं, मेरा काम हर घर को मंदिर बनाना है ।
My work is not building temples instead my work is to make each home a temple.
कुछ बाते दिखने में छोटी होती है. एक मंत्र, एक नाम छोटा सा होता है और कितना ब़डा काम कर देता है ।
There are some things that appear to be small. A Mantra, a Naam is so small and yet accomplishes such big things.
जीवन में आया हुआ दुःख हम जब प्रभु का प्रसाद समझ लेते है तब ताप मिट कर तप हो जाता है ।
Our sufferings become austerities, when we accept sorrows of life as God's prasaad, offering.
मनुष्य जीवन सब से बडा चमत्कार है ।
Human life is the biggest miracle of all.
तुलसी कहते है संत सिद्ध नहीं शुद्ध होना चाहिए; शुद्ध को गिरने की कोई संभावना नहीं होती ।
Tusli says that a saint should be shuddha (pure) and not siddha (with accomplishments). There is no possibility of the pure falling.
भय मुक्त करता है राम नाम, रोग मुक्त करता है राम नाम, विकार मुक्त करता है राम नाम ।
Rama naam frees us from fear, Ram naam frees us from disease, and lastly His name frees us from our flaws.

मानस मंगल मूरति, नागपुर कथा - Manas Mangal Murati, Nagpur Katha

11th - 19th February 2012
सुनना बहुत ब़डी भक्ति है ।
Listening is a great Bhakti itself.
प्रत्येक लाभ को शुभ नहीं समझना, लेकिन शुभ को सदेव लाभ ही समझना, चाहे छोटा हो या विरत ।
Don't take every gain to be auspicious, but all that is good and auspicious should be taken as a gain, be it small or large.
समाधि अंतिम स्थिति नहीं है. समाधि का भी कोई फल है वो है राम नाम, हरी नाम ।
Samadhi is not the final stage. Samadhi also has its own fruit and that is Ram Naam, Hari Naam.
निर्भय और निर्लोभ भाव से हनुमान चालीसा करो ।
Recite Hanuman Chalisa without any fear or greed.
राम नाम और राम काम, तुलसी का संदेश है ।
Tulsi's message is the name of Rama and the work of Rama, taking the name of God and fulfilling duty and service.
आदमी का भीतरी खालीपन केवल दो चीजो से भरा जा सकता है, प्रेम से और त्याग से ।
Love and Renunciation are the only two things that can fill the internal emptiness of man.
संघर्ष में कोई निर्णय ना ले, क्योंकी संघर्ष में हमारे चित की दशा ठीक नहीं होती ।
When in conflict don't take a decision, for during conflict we are not in the right state of mind.
जब निकट के लोग निंदा करने लगे तो समझना सत्य परम निकट है ।
When those closest to us start to condemn or denounce us, then understand that Truth is drawing close.

मानस गुरु गृह, गु़डगाँव कथा - Manas Guru Griha, Gurgaon Katha

21st - 29th January 2012
सहजता प्रसन्नता की जनेता है ।
Bliss/ happiness is born out being natural and true to one's own nature.
आज्ञा पालन के समान गुरु की कोई सेवा नहीं ।
Following Guru's instructions/ orders is the highest form of service to Him.
बिना विचार के बोले जाना वाणी का दोष है ।
Speaking without thinking is a defect of speech.
गुरु गृह की तीन मुख्य चीजे - गुरु वचन, गुरु चरण, गुरु नयन ।
The three most important things of Guru Griha: Guru's speech, Guru's feet and Guru's eyes.
सत्य का निवास स्थान है जीभ; प्रेम का निवास स्थान है इंसान का ह्रदय; करुणा का निवास स्थान है इंसान की आंखे ।
The main place for truth is the tongue, love resides in the heart, and compassion lives in one's eyes.
घर में मंदिर रखो अच्छा; लेकिन घर को ही मंदिर बनाओ ।
It is good to keep a temple in your home; but make your house a temple.
हमारा ह्रदय ही गुरु गृह है ।
Our heart is the abode of our Guru.
विश्व मांगता है पंचम युग, ये है प्रेम युग ।
The world is asking for a fifth Yuga, a fifth Age, and that is the Age of Love.
गुरु गृह से नौ निद्धि की प्राप्ति होती है.
विषाद से मुक्ति; विद्या प्राप्ति; विवेक में वृद्धि; विश्वास का द्रढिकरण; भौतिक विकास; विश्राम मिलना; वैराग्य ब़ढना; विस्मय ब़ढना; विचार शून्यता ।

Nine treasures are attained from the abode of Guru:
Freedom from sorrow/ pain; gain of knowledge; increment in discernment/ understanding; growth of faith; materialistic gains; peace and rest; dispassion/ detachment; increase in curiosity; thoughts become nought.

मानस संत समाज, उमरेठ कथा - Manas Sant Samaj, Umreth Katha

31st December 2011- 8th January 2012
कभी एक संत में सारा समाज समाया हुआ होता है, कभी सारे समाज में कोई एक ही संत होता है ।
At times, the entire society is assimilated in one Saint and sometimes there is only one Saint in the whole society.
इश्वर तो सब के पास है, पर ज़हा ego हो तो वो कहेता है, I Go.
God is always with us, but where there is 'ego' He says, 'I Go'.
संत समाज के अवगाहन करने से अपनी वृत्तियों में परिवर्तन आता है ।
Submergence in Sant Samaj brings about a change in our habits.
संत समाज के सेवन से क्लेश समाप्त होता है ।
The company of Saints brings one's delusions and afflictions to an end.
संत समाज चलता फ़िरता प्रयाग है. संत समाज के पाच लक्षण :
१) शांति - जहा शांति होती है.
२) विवेक - विवेक का वर्धन होता है.
३) पवित्रता - उनके चारो ओर पवित्रता होती है.
४) प्रेम भावना - परसपर प्रेम, कोई भेद नहीं होता.
५) सेवा वृत्ति का सर्जन - समाज में सेवा करने की वृत्ति हो.

Sant Samaj ie Society of Saints is a prayag (meeting point). The 5 indicators of Sant Samaj are:
1) Peace - the surroundings radiate peace.
2) Knowledge/ wisdom - they increase the power of discretion.
3) Purity - they are surrounded by purity.
4) Love for all - they have love for all with out any discrimination.
5) Service- they have the desire to do service.

मानस भगत शिरोमणि, वीरपुर कथा - Manas Bhagat Shiromani, VIrpur Katha

10th December - 18th December 2011
भरोसा ही भजन है ।
Faith itself is bhajan.
मूल में नाम तत्व है. उसके ऊपर भजन भवन (बनाने) के पांच अंग :
१) स्मरण - निरंतर स्मृति
२) सेवा - स्मरण करते करते सेवा
३) समता - सबकी समान सेवा
४) समर्पण - त्याग आएगा
५) स्वीकार - सब का स्वीकार

Naam tattva (the Name of God) is the root. A Bhajan Bhavan above this, requires five things:
1) Smaran/ Remembrance - constant remembrance of God.
2) Seva/ Service - doing service while remembering God.
3) Samta/ Equality - there should be no partiality in service.
4) Samarpan/ Surrender - sacrifice will come.
5) Svikar/ Acceptance - acceptance of all.
મારી વ્યાસપીઠ સન્યાસ નથી આપતી; સમજણ આપે છે ।
My vyashpith does not give or advocate renunciation; rather, it offers understanding.
सारी कथा का मूल तत्व नाम है; सारे ब्रह्मांड के मूल में नाम है ।
Naam, the name of God, is the fundamental element of Katha. The essence of creation is in Naam.
बुद्धि को शुद्ध रखने के तीन उपाय, जो गीता में बताये है.
१) यज्ञ - हरी नाम का यज्ञ अपनी बुद्धि को शुद्ध रखता है.
२) दान - अपने से जो हो. मीठी वाणी बोलना भी दान है.
३) तप - कलयुग का तप है निंदा को सहन कर लेना और जिसने निंदा की उसके प्रति दुर्भाव न हो ।

Three ways of keeping the mind/ intellect pure, as shown in the Geeta:
1) Yagya/ Sacrifice: taking the name of God is a yagya which keeps the buddhi pure.
2) Daan/ Giving: whatever we can do as per our ability; speaking nicely and sweetly to others is also a form of giving.
3) Tap/ Penance: tolerating condemnation and not to have any ill-feeling for those who judge us, is a type of penance in this age of Kaliyug.
ગાય ને પૂજો એટલું પૂરતુ નથી; ગાય ને પ્રેમ કરો ।
It is not enough to merely worship the cow; give love to the cow.
राम चरित मानस का कोई सूत्र अच्छा लगे तो, उस सूत्र को :
- अपना मित्र मानना
- उसको पुत्र की तरह पालना
- अपना नैत्र बनाना

If you like any sutra from Ram Charit Manas then:
- accept that sutra as your friend
- nourish it like your son
- let it become your eyes
इस वीरपुरधाम में एक त्रिवेणी है; भजन, भोजन, और भाजन/पात्रता की ।
Virpurdham is a Triveni of bhajan, bhojan and bhaajan (ability/capability).

मानस विवेक, कोलकाता कथा - Manas Vivek, Kolkata Katha

29th October - 6th November 2011
पत्नि का अर्थ है जो पति को पतन से बचाए:
नारी का अर्थ है न अरि ।

The meaning of patni/ wife is one who saves her husband from patan/ falling.
The meaning of nari is na ari, one who is not an enemy.
सम्वेदना का मुख्य स्थान ह्रदय है. भगवान शंकर ने पूरा शास्त्र ह्रदय में रखा है. भले ज्ञान की पीठ में बैठा है लेकिन वो करुणा का अवतार है. उनकी कथा ह्रदय से निकलती है ।
The main place for compassion is in the heart. Shankar Bhagwan has kept the entire shastra within his heart. He might be positioned in the seat of knowledge, but he is the incarnation of compassion. His katha emerges from the heart.
विवेक मतलब समझदारी, जागृति ।
Vivek means understanding, awareness.
विवेकानंदजी: राजनीती मे हिंदुस्तान यदि धर्म छोड देगा तो नष्ट हो जायेगा.
राजनीती मे धर्म होना चाहिये, लेकिन धर्म मे राजनीती नहि होनी चाहिये; और धर्म का अर्थ सत्य, प्रेम और करुणा ।

Vivekanandji said that if Hindustan discards dharma/ righteousness in politics, it will be destroyed.
Bapu added that in politics there should be dharma, but in dharma there should not be politics, and by Dharma he means Satya Prem and Karuna, Truth Love and Compassion.
हमारे देश मे तीन बस्तु आदमी को आदर के साथ मिलनी चाहिये :
- आगम/ शिक्षण: आखिर व्यक्ति अन्तिम व्यक्ति से लेकर सबको शिक्षा मिलनी चाहिये.
- उसको अन्न मिलना चाहिये; कोई आदमी भुखा नहि रहेना चाहिये, बच्चे तो खास.
- आदमी को आदर के साथ आरोग्य की सेवस्थ प्राप्त होनी चाहिये ।

There are three things that each person should receive with respect :
- Education: from the first to the last person, everyone should be educated.
- Food: every individual should have food; noone should remain hungry, especially children.
- Healthcare: everyone should receive healthcare with dignity and respect.
गुरु शिष्य की परंपरा मे यह होता है: आश्रित/शिष्य चरण छुए, और वोह हमारा शिर छुए ।
In the Guru shishya tradition, the disciple pays respect and touches the feet of the guru, and the guru blesses and touches the head of the disciple.
विवेक मानी अग्नि. तुलसीदास जी ने कहा है की विवेक रुपी अग्नि को प्रगट करने के लिए राम कथा एक मंथन है ।
Vivek is in fact a fire. Tulsidasji has said that Ram Katha is a churning for the manifestation of this fire of vivek.
विवेक चार प्रकार से मिलता है:
१) एक मांगने से मिलता है. फ़िर वो कृपा करे तो.
२) मंथन से मिलता है. खुद के चिंतन से.
३) सत्संग करने से.
४) हमारा गुरु बिन बोले हमें विवेक प्रदान करता है ।

Vivek can be attained in four ways:
1) By asking, and then if He (God) showers His grace.
2) Through contemplation and self-introspection.
3) By doing satsang.
4) Our Guru grants us this vivek without us asking.
भारत के युवान की सुबह रुद्राष्टक से हो; स्नान करते समय, आत्म लिन्ग का अभिषेक करे. और संध्या हनुमान चालिसा से हो ।
Let your morning begin with reciting the Rudrashtak, especially the youth of India today, by doing abhishek on the lingam that is the soul; and let the evening end with Hanuman Chalisa.
सत्संग से विवेक का जन्म होगा. यह सत्संग सुलभ होता है हरी कृपा से.
हरी कृपा निराकार, अमृत है. कृपा व्यापक है, कृपा सर्वकालिक है ।

The power of discretion/ discernment is born through satsang. This satsang is only made possible with the grace of God.
Kripa, the grace of God, is without any form; it is nectar. It is present everywhere (not dependent on any particular place) and is present at all times (not limited to time frame).
एवरेस्ट के लिये स्पर्धा जरुरि है; कैलास के लिये केवल श्रद्धा ।
To reach Everest, competitiveness is necessary; but for Kailas, you need only faith.
हरेक ह्रदय में सम्वेदना का परमात्मा प्रकट हो.
May the lord of kindness and compassion appear in all our hearts.

मानस सारनाथ, सारनाथ कथा - Manas Sarnath, Sarnath Katha

29th October - 6th November 2011
परम प्रेम परम धर्म है ।
Supreme love is the supreme religion.
भगवान बुद्ध शुद्ध है, विशुद्ध है. वो हमे शुद्ध होने का सरल उपाय इन चार सूत्रो में प्रदान करते है.
१) तुम यथार्थ (सही) रुप में अपने शरीर का अवलोकन करो (देखो).
२) यथार्थ अवलोकन करो चित्त का. मेरा चित्त जागृत रुप में कहा-कहा जाता है.
३) चित्त की समस्त वृत्तियों को देखो.
४) मुझ को (अपने को) दुःख कहा से आया, उस स्थिति का अवलोकन करो.

Bhagwan Buddha is most pure. In these four sutras, He shows us the easiest way to become purified:
1) Genuinely behold and look at your physical body.
2) Keep an eye on the ways of your mind, and its working in the conscious state.
3) Observe the various tendencies of the consciousness
4) Keenly watch the root cause i.e the origin of your pain and suffering.
कभी किसी के प्रभाव में नहीं जीना, अपने प्रभाव मे जीना.
सत्य जहाँ से मिले ले लो, पर किसी से प्रभावित नहीं होना.

Don't live your life under anyone's influence. Live in your own innate nature.
Truth should be accepted and welcomed from everywhere, but don't let your life be regulated by anyone.
राम के प्रागट्य के लिये पाच चीजे होनी चाहिए:
१) योग - तीनो मे से एक: कर्मयोग, जानयोग, भक्तियोग
२) लगन - मन में लगन
३) गृह - सदगुरु का अनुग्रह
४) वार - एतबार, भरोसा गुरु के वचन पर
५) तिथि - किसी भी तिथि में वो अतिथि बन सकता है.

The birth and arrival of Rama requires the following five elements:
1) Yog - the presence of good deeds, knowledge, or devotion
2) Lagan - connected mind
3) Grah - the grace of your Sadguru
4) Baar - faith and confidence in the command of your Sadguru
5) Teethi - On any given date or time, Rama can be our guest.
चिंता करने वाला आदमी धार्मिक नहीं होता. धार्मिक आदमी कभी चिंता नहीं करता. अगर चिंता करे तो समझना धार्मिक कपड़ो मे अधार्मिक छिपा है.
One who worries cannot be righteous; a true religious man never worries about anything. If he does, then recognise him to be an atheist wearing the garb a religious one.
साधना वाणी से नहीं व्यक्ति के वर्तन से सुनी जाती है ।
Sadhana cannot be spoken of, but is comminicated by one's behaviour/ conduct.
अगर कोई पूछे, सत्य की व्याख्या करो, तो शांत रहो. यह है सत्य की व्याख्या.
अगर कोई पूछे, प्रेम की व्याख्या करो, तो थोडा मुस्करा दो. यह है प्रेम की व्याख्या.
अगर कोई कहे, करुना की व्याख्या करो, आंख मे थोड़ी सी भिनाश (नमी). यह है करुना की व्याख्या ।

If someone asks, what is the definition of Truth, then stay quiet; this is the illustration of Truth.
If someone asks you to define Love, then laugh a little; this itself is Love.
If someone asks you to explain Compassion, then let your eyes moisten; this is the meaning of Compassion.
हरि नाम का आश्रय प्रमाद नहीं है, समस्या के समाधान का महा प्रयत्न है ।
Refuge in God's name is not laziness, but is the ultimate effort to solve a problem.
बुद्ध नाम नहीं है. बुद्ध तो प्रयास से या प्रसाद से पाई गई अवस्था है ।
Buddha is not a name. It is a state of being, which one achieves through one's own efforts or through someone's kind grace.
जहां विरोध है वहां बोध नही. जहां बोध है वहां विरोध नही ।
Where there is contradiction there is no enlightenment. Where there is enlightenment there is no contradiction.

मानस देहोत्सर्ग, सोमनाथ कथा - Manas Dehotsarg, Somnath Katha

08th - 16th October 2011
सब को प्रेम करो...सत्य का उपासक मुस्कराता होना चाहिए ।
Love everyone; a follower of truth, walking on the path of truth, should ever be smiling.
प्राण खोलने की प्रक्रिया का नाम है राम कथा. यह दुसरे के लिये नहि केवल और केवल अपने लिये ।
The process of opening one's life is called Ram Katha. This is not for anyone else but yourself.
हमारे उपनिषद देहोत्सर्ग को ज्यादा महत्व नहीं देते. महत्व प्राण का है. प्रश्न प्राण का है देह का नहीं.
अगर मुझ से कोई पूछे तो में यह ही कहू, पाच चीजे करना:
१) पवित्र जल से स्नान
२) चन्दन करो
३) पवित्र वस्त्र धारण करो
४) आरती के भाव से दीपक जलाओ
५) अग्नि में, भूमि में, जल में, अपने संस्कार के मुताबिक विसर्जन करो

Our Upanishads do not give so much importance to Dehotsarg. Prana is of utmost significance; the question is of prana, not of the physical body.
If someone was to ask me, I would say, do five things:
1) Bathe the body with pure water
2) Do chandan / sandalwood
3) Dress with sacred clothes
4) Light a candle/ lamp with the bhaav of doing aarti
5) Perform rites in Agni, earth or water according to your tradition.
सत्य जब जुवान होता है तो उसका नाम प्रेम है. प्रेम जब बुढा होता है, पक्ता है, तो करुणा बन जाता है. करुणा जब निर्दोष बनती है, बच्चे कि तरह, तो फ़िर सत्य का रुप हो जाता है. यह एक चक्र है ।
When Truth is in its youth, it is called Love. When Love becomes ripe and reaches old age, it takes the form of Compassion. When Compassion becomes innocent like a small child, it again becomes Truth. This is a cycle.
तुम्हारे आगे कौन है ये नहि देखो. तुम्हारे पिछे कौन है ये नहि देखो. तुम्हारे दाएं कौन है, बाएं कौन है, उपर कौन है, नीचे कौन है ये नहि देखो. तुम्हारे अंदर क्या है ये देखो. यह देखने के लिये भगवद कथा है; कथा का अर्थ है अंतर-दर्शन ।
Don’t look at who is in front of you or behind you, who is on your left or right, who is above or below. Instead, understand what is inside you. Bhagvad Katha is for this; its purpose is introspection and understanding one's own self.
शरिर पाँच तत्वो से बना है: पृथ्वि, जल, आग्नि, आकाश, पवन. फिर बाद मे यह इनमे वापस चला जाता है किसि न किसि रूप मे: अग्नि संस्कार, जल समाधि, पृथ्वि मे या किसि योगी कि तरह जो अपना शरिर पवन मे पिघाल देता है ।
The body is made up of five elements: Earth, Water, Fire, Ether, Air. Later it returns to those elements in one form or another: through Agni sanskar, Jal samadhi, in the Earth through burial or like a yogi who becomes one with the Air.

मानस मृत्यु, सिड्नी कथा - Manas Mrutyu, Sydney Katha

17th - 25th September 2011
सदगुरु महा मृत्यु है, भितर के कचरे का प्रलय कर देता है. सदगुरु निर्वाण रुप है. सदगुरु मिल जाये तो इसके आगे कोइ उप्लब्धि नहि है ।
Sadguru is ultimate death. He destroys the impurities present inside us. He is salvation. Once He is attained there can be no further achievement beyond Him.
मृत्यु हि मोक्ष है ।
Death is Salvation.
तीन वस्तु मिट जाये तो हम जीवन मुक्त है.
शोक: भुतकाल का शोक मिट जाये.
मोह: वर्तमान का मोह मिट जाये.
चिंता: भविष्य की चिंता मिट जाये ।

If we can destroy three things then we can become liberated in this life.
Sok: grief of the past.
Moh: attachment for the present.
Chinta: worrying for the future.
शंकर को प्रलय का देवता माना है; महादेव प्रलयन करता है. शिव एक भंडार चलाता है; यहां जाये उसको भक्ति कि रोटी मिलती. सदगुरु भितर के कचरे का प्रलय कर लेता है ।
Shankar is believed to be the God of destruction; Mahadev has the ability to destroy. Shiva holds a charity kitchen, and whosoever goes there receives the roti of bhakti. Sadguru destroys the impurities filled within us.
भाग जाना बहोत आसान है; जाग जाना कठीन है. आप भागो मत; जागो ।
It is very easy to run away from everything, yet difficult to wake up; don’t run from your life, from your duties, from those around you; awake to them!
साधु कौन? जिसमे ये चार हो वह साधु:
- सब का स्विकार करे
- किसी से तकरार ना करे
- जिवन मे किसी का तिरस्कार ना करे
- सब से प्यार

Who is a Sadhu? One who has these four qualities is a Sadhu:
- One who accepts everything and everybody
- One who has no discord with anybody
- One who does not have contempt or disrespect for anyone
- One who has love and affection for everybody
द्वेश मुक्त जीवन और कामना मुक्त जीवन सन्यास है ।
A life free from hatred and all kinds of desires, longings and expectations is itself Sanyas.
आदमी मृत्यु से नहि मरता है; भय से मरता है ।
Man does not die from death; rather, from fear.
मोक्ष के लिये मरना जरुरि नहि है पर अन्दर कोइ चिज़ मर जाये, जैसे द्वेश, इर्शा, राग, आकान्क्षा, तुल्ना, वोहि मोक्ष है ।
Death is not necessary to attain moksha, rather, killing traits such as hatred, jealousy, desire and comparison, that itself is moksha.

मानस सातसो, कैलास कथा - Manas 700, Kailas Katha

22nd - 30th August 2011
जीवन इसी लिये है के हम ज्यादा से ज्यादा शुद्ध जीवन जी सके ।
Life has been given for the purpose and so that we can lead the most pure form of life.
पुण्य करने से आदमी की विवेक बुद्धि बढती है; साहब पाप करने से तो विवेक बुद्धि नष्ट हो जाती है और विवेक बुद्धि नष्ट होने से आदमी वारम्वार पाप करने लगता है. ये साईकिल चलती रहेती है ।
By doing good deeds, a person's power of discrimination increases, but by doing bad deeds, the power of discrimination is destroyed and a person keeps sinning. This cycle continues.
जिस तरह ये पुरा कैलास कथा का आयोजन हुआ है, इस से हम और आप तो प्रसन्न है हि लेकिन मुजे लग रहा है कि यहां कि सभि चेतनाये भि इस से प्रसन्न है ।
The way this Kailas Katha has been organised, you and I are of course pleased, but I also feel that all the souls here are fully content.
गुरुओ से क्या मांगोगे? यदि आपको मांगना हो तो ये मांगो, हमे आपका दर्शन हो. बाप पाप नष्ट हो जायेंगे.
What can you ask from your Guru? If you do ask, then ask for His darshan. Your sins will be destroyed.
हनुमान चालिसा का पाठ करते समय प्रित से पाठ करो, कोइ भि अपेक्षा किये बिना करो; अपेक्षाये भक्ति मार्ग का कलंक है. प्रेम से ये करते करते हमारी कामनाये धीरे धीरे नष्ट होने लगती है, तेरी जो इच्छा हे वो कर. फ़िर दिल कहेता हे कि जो तुज भाये.
When doing Hanuman Chalisa paath, recite them with love, do them without expecting anything; expectations are a negative taint on bhakti. With love these desires will slowly be abolished and we surrender to whatever Your wish is.
साहब एक बात याद रखना: भजन का कोइ फ़ल नहि होता, फ़ल देने वाला भजन तुम्हे फ़सायेगा; इश्वर भी कभि हमे ज्यादा दे तो साधु मे मना करने कि क्षमता होनी चाहिये ।
Remember one thing: there is no fruit when you do bhajan; bhajan that gives fruits will not let you progress. Even if God give us too much then a Sadhu should have the ability to refuse it.
सुख कि कभि ऊपेक्षा मत करो; आ जाये तो प्रभु का प्रसाद समज कर पहेले दुसरो को बांटो और बाद मे उसे भोगो ।
Don't ever have expectations for happiness; if you receive it, then consider it as God's prasad, share it with others and then reap it yourself.
हनुमान चालिसा का तात्विक रूप: शंकर के ५ मुख है, इसि लिये नेत्र १५ है; ये अष्ट मुर्ति देव माना जाता है तो ये ८ हुआ, और ज्योतिर्लींग तो १२ है. इन सबको मिलाओ तो ये ४० होता है, उसिका नाम ही हनुमान चालिसा है ।
The true form of Hanuman Chalisa: Shankar has five faces, therefore 15 eyes; He is considered ashta murti dev or God of 8 murtis, and there are 12 jyotirlings. Adding all these, the total comes to 40, and this is called Hanuman Chalisa.

अगस्त २०११ - August 2011

राम: परम तत्व है, उच्चार मे महामंत्र है, विचार मे महाविचार और व्यवहार मे महा आचार.
Ram: He is Supreme, of all expressions He is the great mantra, of all thoughts He is the highest form, of all behaviour, He has the most virtue.
- मोरारी बापु, तुलसी जयंति अवार्ड, ६ अगस्त २०११
- Morari Bapu, Tulsi Jayanti Award, 6th Aug 2011

जुलाई २०११ - July 2011

नियम कभी व्यापक नहि होता. देश, काल और व्यक्ति पर निर्भर होता है. केन्सर खतम हो जाये तो फिर केमोथेरापी करते रहेने कि जरुरत नहि होति ।
A rule is never permanent. It depends on time, the individual and place. Once the cancer is cured there is no need to continue with chemotherapy.
जितनी शक्ति हम अपने शरीर कि देखभाल मे लगाते है, उतनी हि शक्ति ईश्वर प्राप्ति के लिये चाहिये, उस से ज्यादा नहि ।
The amount of energy we utilise in looking after our physical body, the same amount is enough to realise God, no more.
सदगुरु और ईश्वर जानने वालि चिज नहि, मानने वालि चिज है ।
You don’t need to know and understand Sadguru and God, rather listen to and believe Them.
भक्ति मार्ग मे दो चिज ही जरुरि है: अश्रु और आश्रय ।
Only two things are absolutely necessary on the path of Bhakti: Tears and Refuge.
किसी महापुरुष, सदगुरु के आश्रय मे रहेना, आश्रित की सुरक्षा भि है और शोभा भि है ।
Under the shelter of a Mahapurush or Sadguru, the āashrit (devotee) is provided both security as shobha.
आलोचना संदेश मुलक हो तो आदर्णिय है. आलोचना द्वेश मुलक हो तो व्यक्ति दया का पात्र है ।
Constructive criticism is always welcome but a person criticising out of jealousy is worthy of compassion.
अप्राप्त वस्तु कि इच्छा और प्राप्त वस्तु कि ममता हि बंधन है ।
The desire for the unattained and attachment with already attained possessions leads to bondage.

मानस रावण १०, न्यु योर्क कथा - Manas Raavan 10, New York Katha

2nd - 10th July 2011
हरिनाम बुद्धि को विशुद्ध करता है ।
Taking God's name greatly purifies the mind.
राम और रावण मै बहुत साम्य भि है और विरुधाभास भि है: राम परमार्थि है और रावण पुरुशार्थि है; राम शेतु बंधक है और रावण शेतुभंजक है; लंका के रण मेदान मे राम रथ के बिना है और रावण रथि है; राम सबको स्विकारता है लेकिन रावण सबको निकालता है; और साम्य ये दोनो आराधना तो शिव की हि करते है ।
There many similarities and differences between Rama and Ravana: Rama is paramarthi (one who performs charitable deeds for others) and Ravana is purusharthi (one who does actions for his own self); Rama builds bridges and Ravana destroys bridges; In Lanka's battlefield Rama is without a chariot and Ravana has a chariot; Rama accepts everyone while Ravana dismisses everyone. Despite these differences both Rama and Ravana worship Lord Shiva.
प्राप्ति में मत फ़सो; रस में डुबो ।
Don't get caught up in and worry about attainment; just enjoy to the fullest.
नाम स्मरण से बुद्धि शुद्ध होती है ।
The intellect / mind is purified by naam smaran, by recalling and repeating God's name.
साधना जीवन से बिलग ना हो. जीवन हि साधना है. हर बात मैं साधना है; हर बात मैं सत्संग है ।
Worship is not separate from life. Life itself is worship. In everything there is worship; in everything there is satsang, prayer.
Yuvān or youth do a lot of purushārtha (hard work to try and fulfil actions rightly expected from them) but the parinām (resultant benefits) should be distributed to all.

मानस रावण ९, थाईलेंड कथा - Manas Raavan 9, Thailand Katha

21st - 29th May 2011
दहशत होगी तो कुछ नहीं होगा,
महनत होगी तो कुछ कुछ होगा,
रहमत होगी तो सब कुछ होगा ।

If there is fear/tension, nothing will happen;
If there is effort/ hard work, something will happen;
If there is grace/ blessings, everything will happen.

आछी आछी पुस्तक पढो जिस मे से कुछ मुल्य प्राप्त होते है, अच्छी मग्गज़ीने पढो, कुछ अच्छा मिले जिसमे से ।
Read good books and magazines from which you’re able to get something valuable.
चिंता तन से प्रगट होति है, निवास करती है मन मे और जिवन को बिगाड देती है. आश्रित को चाहिये चिंता न करे; चिंता करने से आश्रयदाता का अपमान होता है ।
Worry is borne from the body, it lives in the heart and ruins one’s life. Aashrit tells us not to worry; by worrying, we are disrespecting our guru.
आदमी को तीन काम करना चाहिये:
- देह सेवा
- देव सेवा
- देश सेवा

A person should do three things:
- service of the body
- service of God
- service of the country

कथा सुने उसको स्वर्ग नहि मिलता; कथा सुने उसको स्व मिलता है ।
He who listens to katha does not achieve heaven; he who listens to katha gets his own self.
रावन को समझने के लिए परम उदार द्रष्टि चाहिए ।
To understand Rāvan, you need supreme intellect/ vision.
हनुमानजी जितना रावण को समझ पाए इतना अंगद नहीं समझ पाया.
हनुमानजी रावण में भी राम को देखते है ।

As much as Hanumanji understood Rāvan, Angad did not understand him.
Hanumanji was able to see Rām even in Rāvan.

एवरेष्ट को पाने के लिये स्पर्धा चाहिये; कैलास को पाने के लिये श्रद्धा चाहिये ।
Competition is needed to reach the Everest; faith is needed to reach Kailas.
सदगुरु जितना शिष्य को जानता है इतना विश्व मे कोइ नहि जानता ।
Noone in the world knows the disciple as well as his Sadguru.
कथा आदमी का रंग नहीं बदलती है, रस बदलती है ।
Katha does not change the nature of a person; rather, it changes his interest.

मानस जोगसूत्र, हरिद्वार कथा - Manas Jogsutra, Haridwar Katha

4th - 12th May 2011
जिसके जीवन में सत्य आए उसके जीवन में समर्पण आ ही जाता है. प्रेम और त्याग को सीखना हो तो मैं पूरे जगत को प्रार्थना करु की रामायण से सीखो ।
In whosoever's life there is truth, that person gets full surrenderance. If you want to learn and understand love and sacrifice, then I pray to the world learn this from the Ramayana.
जगत को प्रभावित करना आसान है, जगत को प्रकाशित करना बहुत मुश्किल है ।
It is very easy to impress the world, but difficult to enlighten the world.
मानस के आधार पर पाच देवो की वंदना:
१) गणेश वंदना यानी विवेक में जीना.
२) सूर्य वंदना यानी उज्जाले (प्रकाश) में जीना.
३) विष्णु वंदना यानी व्यापकता में जीना.
४) दुर्गा वंदना यानी श्रद्धा बनाए रखना.
५) शिव वंदना यानी दूसरो का कल्याण हो ऎसी सोच रखना.
यही एक सेतु-बंध है, यही योग है ।
 
દેવ શ્રાપ આપે પણ ગુરુદેવ શ્રાપ આપીજ ના શકે. એના સ્વભાવ મા કરુણાજ હોય છે ।
God can give punishment but Gurudev can never punish; he only has compassion.

मानस - विचरति जति, एंडला कथा - Manas - Vicharti Jati, Endla Katha

12th - 20th March 2011

કન્યા ની ભ્રુણહત્યા ના થવિ જોઇએ. સ્ત્રી ભ્રુણહત્યા સમાજ માથી બંધ થાય. જેને ઘરે પહેલા દિકરી જન્મે એને બહુ મોટો ઉત્સવ કરવો જોઇએ કે મારે ઘરે નવ દુર્ગા માથી કોઇ એક દુર્ગા ના પગલા થયા ।
Female infanticide should not happen and should stop in society. The birth of a girl as a firstborn is worthy of celebration - that the daughter is the manifestation of one of the nine durgas.

દિકરો જન્મે અને થાળી વગાડો સારી વસ્તુ છે પણ દિકરી જન્મે એના જેવુ કોઇ શુકન નથી. સમજદારી હોય તો ભગવાન પાસે માંગવુ કે મારે ખોડે પહેલી દિકરી જન્મે. જોગ માયા છે, જગદંબા છે. કન્યા નો મહિમા અદભૂત છે ।
It is of course good to celebrate when a boy is born, but there is no good fortune (shukand) equal to a the birth of a girl. The right wisdom would lead one to pray for the firstborn to be a girl. She is jogmaya. She is Jagadamba. The depth and significance of a daughter is extraordinary.
  1. બાલકાંડ - બચપન
  2. અયોધ્યાકાંડ - દર્પણ
  3. આરણ્યકાંડ - ઘડપણ
  4. કિસ્કિંધાકાંડ - સગપણ
  5. સુંદરકાંડ - અર્પણ
  6. લંકાકાંડ - તર્પણ
  7. ઉત્તરકાંડ - સંપન
  1. Balkand - bachpan
  2. Ayodhyakand - darpan
  3. Aranyakand - gadpan
  4. Kiskindhakand - sagpan
  5. Sundarkand - arpan
  6. Lankakand - tarpan
  7. Uttarkand - sanpan