binit's friend

my best friends

binit

binit

binit2.

my kersai life

Temple

om

my tour

Temple

Temple

Temple

Temple

binit

binit

Temple

Temple

binit

binit

Sep 26, 2013

font

पथरी (किडनी / गल ब्लैडर) का आयुर्वेदिक उपचार :

पथरी (किडनी / गल ब्लैडर) का आयुर्वेदिक उपचार :-

एक पौधा होता है जिसे हिंदी मे पत्थरचट्टा, पाषाणभेद, पणफुट्टी, भष्मपथरी कहते है, फोटो देखे निचे ... इसका वैज्ञानिक नाम है "bryophyllum pinnatum" !

सेवन की विधि : दो पत्ते तोड़े, उसको अछि तरह पानी से धोने के बाद सुबह सुबह खाली पेट चबा के खाले, हलके गरम पानी के साथ !

एक हफ्ते के अन्दर पथरी विघटित हो कर शरीर से निकल जाएगी ! पुष्टि के लिए Ultrasound या CT Scan परिक्षण करवाले !

Sep 24, 2013

जरुर पढ़े और समझे की श्राद्ध क्यों, क्या और कैसे ? तर्क - वितर्क के साथ वैज्ञानिक तरीके से समझाया गया है इस पोस्ट में

#श्राद्ध महिमा

#हिन्दू #धर्म में एक अत्यंत सुरभित पुष्प है कृतज्ञता की भावना, जो कि बालक में अपने माता-पिता के प्रति स्पष्ट परिलक्षित होती है। हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है। 'श्राद्ध-विधि' इसी भावना पर आधारित है।

मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) में आता है। स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है।

पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं। चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं। यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है। अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसीलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है। शास्त्रों में आता है कि अमावस के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए।

आधुनिक विचारधारा एवं नास्तिकता के समर्थक शंका कर सकते हैं किः "यहाँ दान किया गया अन्न पितरों तक कैसे पहुँच सकता है?"

भारत की मुद्रा 'रुपया' अमेरिका में 'डॉलर' एवं लंदन में 'पाउण्ड' होकर मिल सकती है एवं अमेरिका के डॉलर जापान में येन एवं दुबई में दीनार होकर मिल सकते हैं। यदि इस विश्व की नन्हीं सी मानव रचित सरकारें इस प्रकार मुद्राओं का रुपान्तरण कर सकती हैं तो ईश्वर की सर्वसमर्थ सरकार आपके द्वारा श्राद्ध में अर्पित वस्तुओं को पितरों के योग्य करके उन तक पहुँचा दे, इसमें क्या आश्चर्य है?

मान लो, आपके पूर्वज अभी पितृलोक में नहीं, अपित मनुष्य रूप में हैं। आप उनके लिए श्राद्ध करते हो तो श्राद्ध के बल पर उस दिन वे जहाँ होंगे वहाँ उन्हें कुछ न कुछ लाभ होगा। मैंने इस बात का अनुभव करके देखा है। मेरे पिता अभी मनुष्य योनि में हैं। यहाँ मैं उनका श्राद्ध करता हूँ उस दिन उन्हें कुछ न कुछ विशेष लाभ अवश्य हो जाता है।

मान लो, आपके पिता की मुक्ति हो गयी हो तो उनके लिए किया गया श्राद्ध कहाँ जाएगा? जैसे, आप किसी को मनीआर्डर भेजते हो, वह व्यक्ति मकान या आफिस खाली करके चला गया हो तो वह मनीआर्डर आप ही को वापस मिलता है, वैसे ही श्राद्ध के निमित्त से किया गया दान आप ही को विशेष लाभ देगा।

दूरभाष और दूरदर्शन आदि यंत्र हजारों किलोमीटर का अंतराल दूर करते हैं, यह प्रत्यक्ष है। इन यंत्रों से भी मंत्रों का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है।

देवलोक एवं पितृलोक के वासियों का आयुष्य मानवीय आयुष्य से हजारों वर्ष ज्यादा होता है। इससे पितर एवं पितृलोक को मानकर उनका लाभ उठाना चाहिए तथा श्राद्ध करना चाहिए।

भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे। पैठण के महान आत्मज्ञानी संत हो गये श्री एकनाथ जी महाराज। पैठण के निंदक ब्राह्मणों ने एकनाथ जी को जाति से बाहर कर दिया था एवं उनके श्राद्ध-भोज का बहिष्कार किया था। उन योगसंपन्न एकनाथ जी ने ब्राह्मणों के एवं अपने पितृलोक वासी पितरों को बुलाकर भोजन कराया। यह देखकर पैठण के ब्राह्मण चकित रह गये एवं उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमायाचना की।

जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष। श्राद्धपक्ष आश्विन के (गुजरात-महाराष्ट्र में भाद्रपद के) कृष्ण पक्ष में की गयी श्राद्ध-विधि गया क्षेत्र में की गयी श्राद्ध-विधी के बराबर मानी जाती है। इस विधि में मृतात्मा की पूजा एवं उनकी इच्छा-तृप्ति का सिद्धान्त समाहित होता है।

प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर देवऋण, पितृऋण एवं ऋषिऋण रहता है। श्राद्धक्रिया द्वारा पितृऋण से मुक्त हुआ जाता है। देवताओं को यज्ञ-भाग देने पर देवऋण से मुक्त हुआ जाता है। ऋषि-मुनि-संतों के विचारों को आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से, उनका प्रचार-प्रसार करने से एवं उन्हे लक्ष्य मानकर आदरसहित आचरण करने से ऋषिऋण से मुक्त हुआ जाता है।

पुराणों में आता है कि आश्विन(गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) कृष्ण पक्ष की अमावस (पितृमोक्ष अमावस) के दिन सूर्य एवं चन्द्र की युति होती है। सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस दिन हमारे पितर यमलोक से अपना निवास छोड़कर सूक्ष्म रूप से मृत्युलोक में अपने वंशजों के निवास स्थान में रहते हैं। अतः उस दिन उनके लिए विभिन्न श्राद्ध करने से वे तृप्त होते हैं।

सुनी है एक कथाः महाभारत के युद्ध में दुर्योधन का विश्वासपात्र मित्र कर्ण देह छोड़कर ऊर्ध्वलोक में गया एवं वीरोचित गति को प्राप्त हुआ। मृत्युलोक में वह दान करने के लिए प्रसिद्ध था। उसका पुण्य कई गुना बढ़ चुका था एवं दान स्वर्ण-रजत के ढेर के रूप में उसके सामने आया।

कर्ण ने धन का दान तो किया था किन्तु अन्नदान की उपेक्षा की थी अतः उसे धन तो बहुत मिला किन्तु क्षुधातृप्ति की कोई सामग्री उसे न दी गयी। कर्ण ने यमराज से प्रार्थना की तो यमराज ने उसे 15 दिन के लिए पृथ्वी पर जाने की सहमति दे दी। पृथ्वी पर आकर पहले उसने अन्नदान किया। अन्नदान की जो उपेक्षा की थी उसका बदला चुकाने के लिए 15 दिन तक साधु-संतों, गरीबों-ब्राह्मणों को अन्न-जल से तृप्त किया एवं श्राद्धविधि भी की। यह आश्विन (गुजरात महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) मास का कृष्णपक्ष ही था। जब वह ऊर्ध्वलोक में लौटा तब उसे सभी प्रकार की खाद्य सामग्रियाँ ससम्मान दी गयीं।

धर्मराज यम ने वरदान दिया किः "इस समय जो मृतात्माओं के निमित्त अन्न जल आदि अर्पित करेगा, उसकी अंजलि मृतात्मा जहाँ भी होगी वहाँ तक अवश्य पहुँचेगी।"

जो निःसंतान ही चल बसें हों उन मृतात्माओं के लिए भी यदि कोई व्यक्ति इन दिनों में श्राद्ध-तर्पण करेगा अथवा जलांजलि देगा तो वह भी उन तक पहुँचेगी। जिनकी मरण तिथि ज्ञात न हो उनके लिए भी इस अवधि के दौरान दी गयी अंजलि पहुँचती है।

वैशाख शुक्ल 3, कार्तिक शुक्ल 9, आश्विन (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) कृष्ण 12 एवं पौष (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक मार्गशीर्ष) की अमावस ये चार तिथियाँ युगों की आदि तिथियाँ हैं। इन दिनों में श्राद्ध करना अत्यंत श्रेयस्कर है।

श्राद्धपक्ष के दौरान दिन में तीन बार स्नान एवं एक बार भोजन का नियम पालते हुए श्राद्ध विधि करनी चाहिए।

जिस दिन श्राद्ध करना हो उस दिन किसी विशिष्ट व्यक्ति को आमंत्रण न दें, नहीं तो उसी की आवभगत में ध्यान लगा रहेगा एवं पितरों का अनादर हो जाएगा। इससे पितर अतृप्त होकर नाराज भी हो सकते हैं। जिस दिन श्राद्ध करना हो उस दिन विशेष उत्साहपूर्वक सत्संग, कीर्तन, जप, ध्यान आदि करके अंतःकरण पवित्र रखना चाहिए।

जिनका श्राद्ध किया जाये उन माता, पिता, पति, पत्नी, संबंधी आदि का स्मरण करके उन्हें याद दिलायें किः "आप देह नहीं हो। आपकी देह तो समाप्त हो चुकी है, किंतु आप विद्यमान हो। आप अगर आत्मा हो.. शाश्वत हो... चैतन्य हो। अपने शाश्वत स्वरूप को निहार कर हे पितृ आत्माओं ! आप भी परमात्ममय हो जाओ। हे पितरात्माओं ! हे पुण्यात्माओं ! अपने परमात्म-स्वभाव का स्मऱण करके जन्म मृत्यु के चक्र से सदा-सदा के लिए मुक्त हो जाओ। हे पितृ आत्माओँ ! आपको हमारे प्रणाम हैं। हम भी नश्वर देह के मोह से सावधान होकर अपने शाश्वत् परमात्म-स्वभाव में जल्दी जागें.... परमात्मा एवं परमात्म-प्राप्त महापुरुषों के आशीर्वाद आप पर हम पर बरसते रहें.... ॐ....ॐ.....ॐ...."

सूक्ष्म जगत के लोगों को हमारी श्रद्धा और श्रद्धा से दी गयी वस्तु से तृप्ति का एहसास होता है। बदले में वे भी हमें मदद करते हैं, प्रेरणा देते हैं, प्रकाश देते हैं, आनंद और शाँति देते

हैं। हमारे घर में किसी संतान का जन्म होने वाला हो तो वे अच्छी आत्माओं को भेजने में सहयोग करते हैं। श्राद्ध की बड़ी महिमा है। पूर्वजों से उऋण होने के लिए, उनके शुभ आशीर्वाद से उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है।

आजादी से पूर्व काँग्रेस बुरी तरह से तीन-चार टुकड़ों में बँट चुकी थी। अँग्रेजों का षडयंत्र सफल हो रहा था। काँग्रेस अधिवेशन में कोई आशा नहीं रह गयी थी कि बिखरे हुए नेतागण कुछ कर सकेंगे। महामना मदनमोहन मालवीय, भारत की आजादी में जिनका योगदान सराहनीय रहा है, यह बात ताड़ गये कि सबके रवैये बदल चुके हैं और अँग्रेजों का षडयंत्र सफल हो रहा है। अतः अधिवेशन के बीच में ही चुपके से खिसक गये एक कमरे में। तीन आचमन लेकर, शांत होकर बैठ गये। उन्हें अंतः प्रेरणा हुई और उन्होंने श्रीमदभागवदगीता के 'गजेन्द्रमोक्ष' का पाठ किया।

बाद में थोड़ा सा सत्संग प्रवचन दिया तो काँग्रेस के सारे खिंचाव-तनाव समाप्त हो गये एवं सब बिखरे हुए काँग्रेसी एक जुट होकर चल पड़े। आखिर अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पड़ा।

काँग्रेस के बिखराव को समाप्त करके, काँग्रसियों को एकजुट कर कार्य करवानेवाले मालवीयजी का जन्म कैसे हुआ था?

मालवीयजी के जन्म से पूर्व हिन्दुओं ने अंग्रेजों के विरुद्ध जब आंदोलन की शुरुआत की थी तब अंग्रेजों ने सख्त 'कर्फ्यू' जारी कर दिया था। ऐसे दौर में एक बार मालवीयजी के पिता जी कहीं से कथा करके पैदल ही घर आ रहे थे।

उन्हें मार्ग में जाते देखकर अंग्रेज सैनिकों ने रोका-टोका एवं सताना शुरु किया। वे उनकी भाषा नहीं जानते थे और अंग्रेज सैनिक उनकी भाषा नहीं जानते थे। मालवीय जी के पिता ने अपना साज निकाला और कीर्तन करने लगे। कीर्तन से अंग्रेज सैनिकों को कुछ आनंद आया और इशारों से धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा किः "चलो, हम आपको पहुँचा देते हैं।" यह देखकर मालवीयजी के पिता को हुआ किः "मेरे कीर्तन से प्रभावित होकर इन्होंने मुझे तो हैरान करना बन्द कर दिया किन्तु मेरे भारत देश के लाखों-करोड़ों भाईयों का शोषण हो रहा है, इसके लिए मुझे कुछ करना चाहिए।"

बाद में वे गया जी गये और प्रेमपूर्वक श्राद्ध किया। श्राद्ध के अंत में अपने दोनों हाथ उठाकर पितरों से प्रार्थना करते हुए उन्होंने कहाः 'हे पितरो ! मेरे पिण्डदान से अगर आप तृप्त हुए हों, मेरा किया हुआ श्राद्ध अगर आप तक पहुँचा हो तो आप कृपा करके मेरे घर में ऐसी ही संतान दीजिए जो अंग्रेजों को भगाने का काम करे और मेरा भारत आजाद हो जाये.....।'

पिता की अंतिम प्रार्थना फली। समय पाकर उन्हीं के घर मदनमोहन मालवीय जी का जन्म हुआ।

साभार ===> यह लेख संत श्री आसारामजी बापू के आश्रम से प्रकाशित पुस्तक श्राद्ध महिमा से लिया गया है

बच्चे इन आठ तरीकों से सोते हैं


1. कुछ बच्चे पीठ के बल सीधे सोते हैं। अपने दोनों हाथ ढीले छोड़कर या पेट पर रख लेते हैं। यह सोने का सबसे अच्छा और आदर्श तरीका है। प्रायः इस प्रकार सोने वाले बच्चे अच्छे स्वास्थ्य के स्वामी होते हैं। न कोई रोग न कोई मानसिक चिंता। इन बच्चों का विकास अधिकतर रात्रि में होता ही है।

2. कुछ बच्चे सोते वक्त अपने दोनों हाथ उठाकर सिर पर ऱख लेते हैं। इस प्रकार शांति और आराम प्रदर्शित करने वाला बच्चा अपने वातावरण से संतोष, शांति चाहता है। अतः बड़ा होने पर उसे किसी जिम्मेदारी का काम एकदम न सौंप दे, क्योकि ऐसे बच्चे प्रायः कमजोर संकल्पशक्तिवाले होते हैं। उसे बचपन से ही अपना काम स्वयं करने का अभ्यास करवायें ताकि धीरे-धीरे उसके अंदर संकल्पशक्ति और आत्मविश्वास पैदा हो जाए।

3. कुछ बच्चे पेट के बल लेटकर अपना मुँह तकिये पर इस प्रकार रख लेते हैं मानो तकिये को चुम्बन कर रहे हों। यह स्नेह का प्रतीक है। उनकी यह चेष्टा बताती है कि बच्चा स्नेह का भूखा है। वह प्यार चाहता है। उससे खूब प्यार करें, प्यारभरी बातों से उसका मन बहलायें। उसको प्यार की दौलत मिल गयी तो उसकी इस प्रकार सोने की आदत अपने-आप दूर हो जाएगी।

4. कुछ बच्चे तकिये से लिपटकर या तकिये को सिर के ऊपर रखकर सोते हैं। यह बताता है कि बच्चे के मस्तिष्क में कोई गहरा भय बैठा हुआ है। बड़े प्यार से छुपा हुआ भय जानने और उसे दूर करने का शीघ्रातिशीघ्र प्रयत्न करें ताकि बच्चे का उचित विकास हो। किसी सदगुरू से प्रणव का मंत्र दिलवाकर जाप करावें ताकि उसका भावि जीवन किसी भय से प्रभावित न हो।

5. कुछ बच्चे करवट लेकर दोनों पाँव मोड़कर सोते हैं। ऐसे बच्चे अपने बड़ों से सहानुभूति और सुरक्षा के अभिलाषी होते हैं। स्वस्थ और शक्तिशाली बच्चे भी इस प्रकार सोते हैं। उन बच्चों को बड़ों से अधिक स्नेह और प्यार मिलना चाहिए।

6. कुछ बच्चे तकिये या बिस्तर की चादर में छुपकर सोते हैं। यह इस बात का संकेत है कि वे लज्जित हैं। अपने वातावरण से प्रसन्न नहीं हैं। घर में या बाहर उनके मित्रों के साथ ऐसी बाते हो रहीं हैं, जिनसे वे संतुष्ट या प्रसन्न नहीं हैं। उनसे ऐसा कोई शारीरिक दोष, कुकर्म या कोई ऐसी छोटी-मोटी गलती हो गयी है जिसके कारण वे मुँह दिखाने के काबिल नहीं हैं। उनको उस ग्लानि से मुक्त कीजिए। उनको चारित्र्यवान और साहसी बनाइये.

7. कुछ बच्चे तकिय, चादर और बिस्तर तक रौंद डालते हैं। कैसी भी ठंडी या गर्मी हो, वे बड़ी कठिनाई से रजाई या चादर आदि ओढ़ना सहन करते हैं। वे एक जगह जमकर नहीं सोते, पूरे बिस्तर पर लोट-पोट होते हैं। माता-पिता और अन्य लोगों पर अपना हुकुम चलाने का प्रयत्न करते हैं। ऐसे बच्चे दबाव या जबरदस्ती कोई काम नहीं करेंगे। बहुत ही स्नेह से, युक्ति से उनका सुधार होना चाहिए।

8. कुछ बच्चे तकिये या चादर से अपना पूरा शरीर ढंककर सोते हैं। केवल एक हाथ बाहर निकालते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि बच्चा घर के ही किसी व्यक्ति या मित्र आदि से सख्त नाराज़ रहता है। वह किसी भीतरी दुविधा का शिकार है। ऐसे बच्चों का गहरा मन चाहता है कि कोई उनकी बातें और शिकायतें बैठकर सहानुभूति से सुने, उनकी चिंताओं का निराकरण करे।

ऐसे बच्चों के गुस्से का भेद प्यार से मालूम कर लेना चाहिए, उनको समझा-बुझाकर उनकी रूष्टता दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। अन्यथा ऐसे बच्चे आगे चलकर बहुत भावुक और क्रोधी हो जाते हैं, जरा-जरा सी बात पर भड़क उठते हैं।

ऐसे बच्चे चबा-चबाकर भोजन करें, ऐसा ध्यान रखना चाहिए। गुस्सा आये तब हाथ की मुट्ठियाँ इस प्रकार भीँच देनी चाहिए ताकि नाखूनों का बल हाथ की गद्दी पर पड़े.... ऐसा अभ्यास बच्चों में डालना चाहिए। ॐ शांतिः शांतिः... का पावन जप करके पानी में दृष्टि डालें और वह पानी उन्हें पिलायें। बच्चे स्वयं यह करें तो अच्छा है, नहीं तो आप करें।

संसार के सभी

बच्चे इन आठ तरीकों से सोते हैं। हर तरीका उनकी मानसिक स्थिति और आन्तरिक अवस्था प्रकट करता है। माता-पिता उनकी अवस्था को पहचान कर यथोचित उनका समाधान कर दें तो आगे चलकर ये ही बच्चे सफल जीवन बिता सकते हैं।

Sep 17, 2013

देवताओं के नाम के आगे लार्ड शब्द (Lord Word) का प्रयोग बंद करो

** देवताओं के नाम के आगे लार्ड शब्द (Lord Word) का प्रयोग बंद करो **

कभी सोचा है लार्ड (अँग्रेज़ी शब्द) और भगवान (हिन्दी शब्द) में क्या अंतर है...?

कभी सोचा है आखिर अग्रेजों ने हिन्दू धर्म के देवताओं के नाम के आगे भगवान के बाजय लार्ड अँग्रेज़ी शब्द (
Lord English Word) को प्रयोग क्यों किया...?

हिन्दी शब्द भगवान का अर्थ:
भ - भूमि,
ग- गगन,
व- वायु,
आ- अग्नि,
न-नीर

मैकाले की संस्कार विहीन शिक्षापद्दती देश के विकास में बाधक है। शिक्षा व्यवस्था में संस्कारों का अभाव तथा इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने के कारण ही देश का युवा अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान से विमुख होकर पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण को विवश है। अंग्रेज़ चले गये पर उनके मानसपुत्रों की कमी नहीं है। भारत में, भारतीय संसद के सभी सदस्यों के लिए, चाहे वे लोक सभा के सदस्य हों या राज्य सभा के, सांसद शब्द का प्रयोग किया जाता है।

॥ यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन), हाउस ऑफ़ लार्ड्स के सदस्य 'लार्ड्स ऑफ़ पार्लियामेंट' कहे जाते हैं। इंग्लैंड सरकार की ओर से लॉर्ड एक उपाधि है ॥

लॉर्ड की उपाधि प्राप्त भारत के वाइसरॉय एवं गवर्नर जनरल ::::::

• लॉर्ड विलियम बैन्टिक, भारत के गवर्नर जनरल(1833–1858)
• लॉर्ड ऑकलैंड
• लॉर्ड ऐलनबरो
• लॉर्ड डलहौज़ी
• लॉर्ड कैनिंग, भारत के वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल (1858–1947)
• लॉर्ड कैनिंग
• लॉर्ड मेयो
• लॉर्ड नैपियर
• लॉर्ड नॉर्थब्रूक
• लॉर्ड लिट्टन
• लॉर्ड रिप्पन
• लॉर्ड डफरिन
• लॉर्ड लैंस्डाउन
• लॉर्ड कर्जन
• लॉर्ड ऐम्प्थिल
• लॉर्ड मिंटो
• लॉर्ड हार्डिंग
• लॉर्ड चेम्स्फोर्ड
• लॉर्ड रीडिंग
• लॉर्ड इर्विन
• लॉर्ड विलिंग्डन
• लॉर्ड माउंटबैटन

इनको अभी भी हमारे इतिहास में लॉर्ड नाम से ही पढ़ाया जाता है और लॉर्ड शब्द का इस्तेमाल देवताओं के नाम आगे भी किया जाता है।

• लार्ड कृष्णा Lord Krishna
• लार्ड राम Lord Ram
• लार्ड गणेशा Lord Ganeshaa
• लार्ड शिवा Lord Shiva
• लार्ड ब्रह्मा (Lord Brahma)
• लार्ड विष्णु Lord Vishnu

अब क्या देवताओं के नाम के आगे लॉर्ड लगाना न्यायोचित है...??

जहाँ एक ओर भारतीय संस्कृति का पूरे विश्व मैं बोल बाला था और इसके लिए भारत की पूरी दुनिया मैं एक अलग पहचान है, वहीँ कुछ गैर ज़िम्मेदार लोग इस संस्कृति को धूमिल करने पर तुले हुए हैं।

जागो हिन्दूऔ जागो !! जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!

Sep 8, 2013

लाइलाज नहीं डिप्रेशन

लाइलाज नहीं डिप्रेशन


डिप्रेशन यानी हताशा या अवसाद। मेडिकल साइंस में इस रोग को सिंड्रोम माना जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को अकेलापन खलता है, उदासी घेरे रहती है। यह आज के आधुनिक युग का प्रसाद है हर व्यक्ति के लिए, आज के युग के साधन जहाँ आराम देते हैं ,वही इन साधनों को जुटाने की चाह देती है चिंता। टेंशन और चाह पूरी न हो या कुछ अधूरा सा जीवन लगने लगे तो डिप्रेशन हावी हो जाता है| कई बार मन अवसाद ग्रस्त होता है और अपने आप ठीक हो जाता है| लेकिन कई बार अवसाद मन में कहीं गहरे तक बैठ जाता है। किसी बात को लेकर मन उदास होना या तनाव होना सामान्य बात है। लेकिन, जब यह उदासी और तनाव लंबे समय तक बना रहे, तो आप कहीं डिप्रेशन के शिकार न हो जाएं , इसके लिए पहले इन लक्षणों को देखें :-

लक्षण:
- उन बातों में रूचि कम हो जाना, जिनमें आप पहले आनंद लेते थे।
- बेचैनी अनुभव करना।
- बहुत अधिक सोना अथवा नींद न आना।
- हर समय थकान अथवा शक्तिहीनता का अनुभव करना।
- वजन बढ़ना अथवा घटना।
- भूख कम होना।
- ध्यान केंद्रित करने अथवा याद करने में कठिनाई।
- आशाहीनता, अपराध बोध, बेकार अथवा असहाय होने का अनुभव करना।
- सिर दर्द, पेट दर्द, शौच में समस्या अथवा ऎसा दर्द होना, जिसमें उपचार से लाभ नहीं होता।

यदि आपके ऎसे लक्षण दो सप्ताह से अधिक समय तक रहते हैं अथवा यदि आपके मन में स्वयं को अथवा अन्य लोगों को क्षति पहुंचाने के विचार आते हैं, तो आप अवसाद (डिप्रेशन) से ग्रस्त हो सकते हैं।

कारण:
डिप्रेशन के पीछे जैविक आनुवांशिक और मनोसामाजिक कारण होते हैं। यही नहीं बायोकेमिकल असंतुलन के कारण भी डिप्रेशन घेर सकता है। ऐसे में दिमाग हमेशा नकारात्मक बातें सोचने लगता है। यह भी देखा गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में डिप्रेशन की परेशानी ज्यादा और जल्दी घर करती है। मोटे अनुमान के अनुसार 10 पुरुषों में एक जबकि 10 महिलाओं में हर पांच को डिप्रेशन की आशंका रहती है। दरअसल, पुरुष अपना डिप्रेशन स्वीकार करने में संकोच करते हैं जबकि महिलाएं दबाव और शोषण के चलते जल्दी डिप्रेशन में आ जाती हैं। यह समस्या महानगरों में ज्यादा तेजी से पैर पसारती जा रही है। महिलाओं में डिप्रेशन होने की कुछ खास वजहें हैं। इसमें मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर और बायपोलर मूड डिसऑर्डर खास हैं। मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर में ध्यान एकाग्र करने में परेशानी, आत्म सम्मान में कमी महसूस होना और ऊर्जा की कमी का अहसास होता है। वहीं, बायपोलर मूड डिसऑर्डर में गुस्सा जल्दी आता है। चिड़चिड़ापन महसूस होता है और दिल इस बात को नहीं मानता कि वह परेशान है। महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले हर उम्र में डिप्रेशन के ज्यादा मामले होने के पीछे बचपन से मानसिक और शारीरिक शोषण, अपनी बात कहने की झिझक, यौवन में प्रवेश, प्रेगनेंसी और रोज के तनाव जैसे कारण अहम हैं। इसके चलते कभी-कभी उनमें आत्महत्या की इच्छा जोर मारने लगती है। इसलिए पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का डिप्रेशन ज्यादा खतरनाक होता है। हालांकि मंदी और कॉम्पटीशन के दौर में डिप्रेशन अब युवाओं को भी अपना शिकार बनाने लगा है इसलिए कोशिश यह रखनी चाहिए कि आप खुशनुमा पलों की तलाश करें और पॉजिटिव सोच रखें। डिप्रेस्ड मूड के दौरान कोई भी शख्स खुद को लाचार और निराश महसूस करता है। दरअसल दिमाग में मौजूद रसायन नर्वस सिस्टम के जरिए शरीर को संदेश भेजने में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन इन रसायनों में असंतुलन पैदा होने से दिमाग में गड़बड़ हो जाती है। डिप्रेशन अक्सर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर की कमी के कारण भी होता है। न्यूरोट्रांसमीटर वह रसायन होते हैं जो दिमाग और शरीर के दूसरे हिस्से के बीच तालमेल कायम करते हैं खुशी के दौरान न्यूरोट्रांसमीटर्स नर्वस सिस्टम को केमिकल भेजता है। जब यह केमिकल कम हो जाता है तो डिप्रेशन के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं। इसके अलावा नोरएपिनेफ़्रिन नाम के रसायन से हममें चौकन्नापन और उत्तेजना आती है और इसके असंतुलन से थकान और उदासी आती है और चिड़चिड़ाहट होने लगती है। इसके अलावा सेरोटोनिन हारमोन भी एक वजह है जब इस हारमोन का स्तर खून में कम हो जाता है तो हमारा मूड बिगड़ने लगता है और हार्ट अटैक तक की आशंका हो सकती है। शरीर में मौजूद कुछ और हारमोन के बीच भी जब असंतुलन होता है तो इसका असर हमारे मूड और खुशी पर पड़ता है जिनमें एड्रेलिन और डोपामाइन खास हैं।

बेहतरी के लिए कदम:
बेहतर महसूस करने के लिए पहला कदम किसी ऎसे व्यक्ति से बातचीत करना हो सकता है, जो आपकी सहायता कर सके। वह कोई चिकित्सक अथवा परामर्शदाता (काउंसलर) हो सकता है। आपकी देखभाल में दवाएं तथा काउंसलिंग शामिल हो सकते हैं।
क्या करें:
- स्वास्थ्यप्रद भोजन करें तथा जंक फूड से परहेज करें।
- भरपूर मात्रा में पानी पिएं।
- वाइन और नशीले पदार्थो के सेवन से बचें।
- हर रात 7 से 8 घंटे सोने का प्रयास करें।
- सक्रिय रहें, भले ही आपका ऎसा करने का मन न हो।
- अपनी दिन भर की गतिविधियों की योजना बनाएं।
- प्रतिदिन अपने लिए एक छोटा सा लक्ष्य निर्धारित करें, जो आप कर सकते हैं।
- अकेले रहने से बचें, किसी सहायक समूह में शामिल हों।
- प्रार्थना करें अथवा ध्यान लगाएं।
- स्पोर्ट्स, पेंटिंग्स, गार्डनिंग, टूरिज्म, म्यूजिक या रीडिंग जैसी हॉबीज विकसित करें।
- अपनी भावनाएं परिजनों अथवा मित्रों को बताएं। अपने परिवार तथा मित्रों को अपनी सहायता करने दें।
- 'क्षमा करो भूल जाओ' यानी 'फॉरगिव एंड फॉरगेट' का सिद्धांत अपनाएँ।

होम्योपैथी किस तरह है कारगार
डिप्रेशन कि स्थिति में होम्योपैथी अत्यन्त कारगर है। चूँकि होम्योपैथी में व्यक्तित्व विशेषता के आधार पर चिकित्सा की जाती है अतः यह अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इससे मस्तिष्क के उच्च केंद्र जो सोचने और समझने का कार्य करते हैं में उल्लेखनीय वृद्वि होती है। पहले यह माना जाता था कि डिप्रेशन में दी जाने वाली दवाईयां चाहे वह एलोपैथी हो या होम्योपैथी नशीली होती हैं और इनकि आदत बन जाती है परंतु आजकल अच्छी नई दवाईयां निकल रही है जो बिल्कुल सुरक्शित है। सामान्यत: इन दवाईयों का दो से तीन हफ्ते बाद असर चालू होता है और कम से कम 6 माह तक लगातार यह दवाईयां लेनी पड़ती है। इस स्थिति में सामान्यतः उपयोगी दवाएँ कालि फोस, ईग्नेशिया, नेट्र्म म्युर, औरम मेट, लैकेसिस, स्ट्रामोनियम, मेडोराइनम आदि हैं। मेमोरि बूस्टर नाम कि दवा के दो चम्म्च सुबह-शाम लगातार तीन महिने लेने पर काफ़ि लाभ होता है और वह भी बिना किसी दुस्प्रभाव के। यह ब्राह्मि, शन्खपुश्पी, अश्व्गन्धा एवं चार अन्य होम्योपैथिक दवाईयों का अद्भुत मिश्र्ण हे जो दिमाग को ताकत प्रदान करता हे और याद्दाश्त भी बढाता हे। यह जान ले कि ये दवाईयां आपको प्राकृतिक दिमागी संतुलन बनाने में मदद करती है। इन्हें केवल डॉक्टरी सलाह के अनुसार लेना चाहिए। इस प्रकार चुनी हुई दवा को जब उचित पोटेंसी में दिया जाता है तब वांछित परिणाम अवश्य प्राप्त होते हैं। होम्योपैथी सहज, सस्ती और संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है। ये औषधियाँ शरीर के किसी एक अंग या भाग पर कार्य नहीं करतीं, बल्कि रोगी के संपूर्ण लक्षणों की चिकित्सा करती है।

जुलपित्ति
चिचिमाहट
शरीर पर छोटे छोटे दाने उगना धुप मे जाने पर
का होमोपैथिक(Homeopathic) इलाज
1st- nux vomika -1 Milan- ek bar
2nd -s



हिन्दी गानो को पाने का सहज उपाय
लिन्क ये है